Friday 30 December 2016

साल बदल रहा है...!!!

मैं क्या जानूँ की कौन सी तारीख है,
क्या पता कि साल बदल रहा है...
मुझे तो तुम्हारी आँखों के बदलते,
अंदाज़ याद रहते है...
जो पल-पल कहती है कि,
तुम किस बात से नाराज होते है,और
कौन सी बात तुम्हे नही भाती..
मुझे तो याद रहते है,
तुम्हारी जुबां के को स्वाद,
जो मैं हर रोज तुम्हारे लिए,
रेसिपी बदल-बदल कर,
तुम्हारे लिए कुछ नया बनाती हूँ...
मुझे तो याद रहती है,
हर रोज बदलती तुम्हारी...
वो शरारत भरी वो बाते,
जो ना जाने कहाँ से सीख कर आते हो....
मैं क्या जानूँ की कौन सी तारीख है,
क्या पता कि साल बदल रहा है..
पर हाँ मुझे याद रहती है,
कैलेंडर की कुछ तारीखे,
जो कभी नही बदलती,
जिस दिन तुम इस दुनिया में आये,
जिस दिन मैं तुमसे मिली थी,
यही कुछ तारीखे है,
जो मेरे लिए कैलन्डर होती है,
मैं पूरा साल इन्ही तारीखों में,
पल,लम्हे,साल,सदियां,...
बदलते देखती हूँ.....!!

Saturday 24 December 2016

छूटता कुछ भी नही है इस जहाँ...!!!

ये साल भी जा रहा है,
हर साल की तरह,
कुछ ख्वाइशें पूरी होते-होते,
अधूरी रह गयी...
कुछ दर्द जिंदगी को जार-जार कर गए,
तो कुछ मरहम होठो पर,
हँसी के साथ आंसू लिए मिल गए...
शिकायत बहुत है,सवाल भी बेहिसाब थे..
सभी यूँ ही उदास अकेले,
पुरानी कैलेंडर की तरह रह गए,
तारीखों में जिंदगी सिमट गयी...
फिर नई यादो की तलाश में,
कुछ पाने की आस लिये,
कुछ बिखरे हुए विश्वास लिये,
इस की दहलीज पर,
हम भी खड़े है...
जो खो दिया है,उस दर्द में,
खुद को समेट कर,
जो पा लिया उस सुकून में
खुद को लपेट कर...
आने वाला साल का,
आगाज हम फिर करँगे,
तारीखे बदलेंगी जरूर,
पलटते कैलन्डर के पन्नो की तरह,
वक़्त के साथ फिर,
दोहराये जायँगे हम सभी,
छूटता कुछ भी नही है इस जहाँ,
सब यही रहता है,
सिर्फ उसकी सूरत बदल जाती है...!!!

Sunday 18 December 2016

तुमकों मैंने ना झुठला पाऊँगी...!!!

अपनी सारी रचनाओं की,
अपनी कल्पनाओ को,
तुम्हारी छवि में ढाल लिया है..
अब तमको मैं ना झुठला पाऊँगी...
तुमसे ही हर ख्वाब को सच मान लिया है...
ख्यालो की बंदिशे खुल कर,
तुम तक ही पहुँची है,
अपनी हथेलियों में रेखाएं,
तुम्हारे नाम की मैंने खींची है,
अब तमको मैं ना झूठला पाऊँगी..
तुमसे ही नसीब अपना मान लिया है....
प्यार वो जो अब तक,
मेरे शब्दो में था,
अब वो तुम्हारी आँखों में देखती हूँ,
इक नाम जिसे सुनने को,
बेचैन रहती थी मेरी साखियाँ,
अब वो मेरी बातों में सुन लेती है..
अब तुमकों मैंने ना झुठला पाऊँगी...
तुमसे ही तुमको मैंने माँग लिया है..."!!!

Tuesday 6 December 2016

तुमसे ही है पहरों,शाम मान लिये थे...!!!

बो इक पल,वो इक लम्हा..
जब तुम्हारी आँखों के सारे फैसले,
मैंने मान लिये थे.....
जब तुम मेरे साथ,
दिनों और सालों का हिसाब लगा रहे थे,
तब ही मैंने तुम्हारे साथ...
जन्मो के बंधन बांध लिये थे...
वो इशारे तुम्हारी मेरी आँखों के,
तुम समझते थे या मैं समझती थी...
जब तुम मुझसे कहने के लिए,
शब्दो को ढूंढ रहे थे...
तब ही तुम्हारे बिन बोले ही,
तुम्हारे दिल के राज मैंने जान लिए थे...
वो सुबह जो तुमसे शुरू होती थी,
तुमसे पूरी होती थी राते...
जब तुम घड़ी की सुइयों से,
मेरे साथ वक़्त जोड़ रहे थे,
तब ही मैंने तुमसे ही है पहरों,
शाम मान लिये थे...!!!

Saturday 3 December 2016

सर्दी की चिठ्ठिया....!!!

काँपती उँगलियों से,
थरथराते शब्दो को लिख रही हूँ....
धुंध में तुम्हे ढूंढती अपनी आँखों की बेचैनियां,
इस बार राजाई में छुप कर,
तुम्हारी पढूंगी,और तुम्हे लिखूंगी,
मैं भी तुम्हे सर्दी की चिठ्ठियां...
#सर्दीकीचिठ्ठियां#

ठिठुरते हुए,कोहरे की आड़ में,
मैं आज फिर तुमसे मिल आऊँगी,
बस तुम देखोगे मुझे,मैं देखूंगी तुम्हे....
बच कर सबकी नजरो से दे दूंगी,
कुछ निशानियां अपनी...
#सर्दीकीचिठ्ठियां#

सुबह काँपते हाथो से,
तुम्हे चाय की प्याली थमाना,
और वो तुम्हारा वो प्याली के साथ,
मेरा हाथ पकड़ लेना....ठंठी बहुत है,
ये कह कर तुम्हारा मुस्कराना देना,
तुम्हारे मुस्कराने पर मेरा शरमा जाना....
यही कुछ नादानियाँ है..,
#सर्दीकीचिठ्ठियां#

Tuesday 22 November 2016

मैं तुम्हारी तरह परफेक्ट तो नही हूँ..!!!

हाँ मैं तुम्हारी तरह परफेक्ट तो नही हूँ,
नही आता सलीका मुझे,
अपनी उम्र के हिसाब से जीने का...
मैं तो बचपने में ही जीती हूँ,
बड़ी खुशियों का मुझे इन्तजार नही,
हर को खुशियो से भर देती हूँ...
तुम्हारे दर्द में मै नही दे पाती,
वो बड़े-बड़े शब्दो की सांत्वना,
मैं तो संग तुम्हारे रो लेती हूँ.....
नही समझ आते मुझे परिपक्वता,
गंभीरता जैसे भारी-भारी शब्दो का अर्थ..
मैं तो बड़ो को आदर,
छोटो के बचपन के साथ जीती हूँ...
कोई दिखावा नही,
निश्छल नदी सी बहती हूँ....
कोई विकल्प नही दिया जिंदगी को,
तुम्हारे सिवा..
इसी विस्वास की आँखों में चमक लिए,
मैं हर तुमसे मिलती हूँ...!!!

Monday 21 November 2016

तुम में कही...!!!

तुम कहते हो ना कि,
मैं तुम्हारी फ़िक्र ना करूँ,
तुम्हे छोड़ दूँ,तुम्हे जरुरत नही मेरी...
चलो इस बार मान लेती हूँ,
तुम्हारी सारी बाते....
नही करुँगी तुम्हारी फ़िक्र,छोड़ दूंगी तुम्हे...
पर शर्त ये की तुम लौटा दो,
मुझे वो शामे जो साथ तुम्हारे गुजरी है,
लौटा दो मुझे वो राते,
जो आज भी मेरे जहन में,
खुशबु की तरह बिखरी है..
मुझे लौटा दो वो मेरे ख्वाब,
जो मैं तुम्हारी आँखों को दे आयी थी,
मुझे लौटा दो वो मेरे तीन शब्द,
जो चुपके से तुम्हारे कानो में,
कह आयी थी....
मुझे लौटा दो  मेरे होठो की वो हंसी,
जो तुम्हारे होठो पर रख आयी थी,
मुझे लौटा दो वो जिंदगी,
जो तुम्हारी धड़कनो को दे आयी थी...
मैं आ तो गयी हूँ,तुम्हे छोड़ कर...
पर मेरा सब...
कुछ छुट गया है तुम में कही...
तुम्हे मिल जाये तो,
मुझमे ही लौटा देना मुझको...!!!

Saturday 12 November 2016

तुम ही तुम हो..!!!

जहाँ मेरी सारी शिकायते,
खत्म हो जाती है,वो तुम ही हो...
जहाँ मेरी ख्वाईशो की बंदिशे,
नही रहती है,वो तुम ही हो...
जहाँ मेरी धड़कने,साँसे कोई मायने,
नही रखती,वो सिर्फ तुम ही हो....
जहाँ मेरे शब्दों के कोई दायरे नही रहते,
मेरे ख्यालो पर कोई,
पहरे नही रहते,वो सिर्फ तुम ही हो...
जहाँ से मेरी मंजिले खत्म हो जाती है,
तलाश कोई और,
राहो नही रहती,वो सिर्फ तुम ही हो..
जहाँ मेरी सोच,मेरे सारे तर्क-वितर्क,
बेअर्थ हो जाते है,
वो सिर्फ तुम ही तुम हो...!!!

Monday 7 November 2016

मैं सिर्फ तुमको ही लिखती रहूँ....!!!

मैं ना मंच से तुम्हे गाना चाहूं,
मैं तो तुम्हारे होठो पर गुनगुना चाहूं....
मैं ना किसी अखबार की,
सुर्खियां बनना चाहूं,...
मैं तो तुम्हारे ह्रदय पर रचना चाहूं...
मैं ना किसी किताब में,
प्रकाशित होना चाहूं,
मैं तो तुम्हारे अंतर्मन में अनकही,
अलिखित,अप्रकाशित,
पंक्तियों सी रहना चाहूं...
मैं ना अब किसी का ख्वाब बनना चाहूं,
बस तुम्हारे ख्वाबो में रहना चाहूं....
मैं ना अब कोई और,
इबादत करना चाहूं....
मैं तो तुम्हारे सजदे में ही सर झुकाना चाहूं...
मैं ना अब कोई राज,
बन कर रहना चाहूं....
मैं तो खुली किताब बन कर,
तुम्हारे हाथो में बिखरना चाहूं....
सौं बातो की..
इक बात मैं कहना चाहूं,
सिर्फ तुम ही मुझे पढ़ते रहो,और
मैं सिर्फ तुमको ही लिखती रहूँ....!!!

Sunday 6 November 2016

मैं आज भी पगली सी हूँ....!!!

वो चाँद की रात,वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कहते मैं लिख रही थी,
तुम को शब्दों में बांध रही थी..
और तुम नाराज भी होते कि,
क्यों लिख रही हूँ मैं...
मैं हर बार कहती कि,
तुम्हे अपने पास संजो कर रख रही हूँ...
और हसँ कर कह देते कि,
तुम बिलकुल पगली हो....
और मैं भी मान लेती की,
हाँ मैं पागल ही सही...
जब तुम बाते करते थे ना,
तुम्हे सुनने चाँद की चांदनी भी,
नंगे पाँव जमी उतर आती थी..
मुझे बिलकुल भी अच्छा नही लगता कि,
तुम्हे कोई भी सुने..
तो मैं तुम्हारी बातो को,
हमेशा के लिए अपने शब्दों में...
बाँध लेती थी...
आज भी वो चाँद की रात है,
वही चांदनी है...
वही तुम्हारी बाते तो है,
मैं आज भी पगली सी हूँ वैसे ही...
पर तुम नही हो...!!!

Friday 28 October 2016

काल चक्र घूमता है....!!!

काल चक्र घूमता है....
कल तक जो हाथ दीया लिए हुए,
दहलीज़ पर खड़े पुरे,
घर को रौशन कर रहे थे...
कि आज उन्ही हाथो ने,
मेरे हाथों में दीया थाम कर,
मुझे दहलीज़ पर खड़ा कर दिया है....
कल तक अंधेरो की,
परवाह किये बैगर,....जिस रौशनी पर,
मैं गुमान कर रहा था,
आज उसी रौशनी की कीमत,
मेरे अंधेरो ने मुझसे ली है....
कल तक जिन हाथो से,
मैं फुलझड़ियों की जिद,
पटाखों के शोर मांगता था...
आज उन्ही फुलझड़ियों की चिंगारी से,
पटाखों के शोर से,
मैं इस घर बचा रहा हूँ...
काल चक्र घूमता है....
कल तक मैं जहाँ महफूज़ था,
गहरी नींद में सो रहा था...
आज देर रात तक जागता हूँ...
काल चक्र घूमता है....
कल तक तुम जहाँ खड़े थे साथ मेरे,
आज वही अकेले मैं खड़ा हूँ..!!!

तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!

मैं आज भी इक दीया,
तुम्हारी दहलीज पर रख आती हूँ,
कि मेरे दीये का उजाला,
तुम्हे अंधेरो से बचायेगा.....
जब भी दीये की लहराती,
जलती बाती पर तुम्हारी नजर जायेगी,
तुम्हे कुछ याद आयेगा और,
होंठो पर तुम्हारे मुस्करायेगा...
मैं कहूँ न कहूँ किसी से,
तुम बताओ या ना बताओ किसी से..
तुम्हारी दहलीज़ पर रखा मेरा दीया,
तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!

Saturday 15 October 2016

तुम्ही मेरे सात जन्मों के साथी बनो....!!!

मांग में सिंदूर की लम्बी रेखा,
माथे पर गोल चाँद सी बिंदी,
गले दो धागों का मंगलसूत्र,
हाथो में चूड़ियां खनकती है,
पैरो में पायल,महावर लगी हुई,
उँगलियों में बिछियां सजी हुई...
ये सभी निशानियां है,तुम्हारे होने की..
तुम नही होते हो...
तब भी तुम्हारे होने का एहसास कराती है,
किसी की भी नजर मुझे नही लगती,
जब मांग के सिंदूर पे उसकी नजर जाती है...
बहुत प्यार से खुद को,
आज सजाया है सिर्फ तुम्हारे लिये,
इसलिए नही कि...
मैं कमजोर हूँ,स्त्री हूँ,अबला हूँ,मजबूर हूँ,
बल्कि इसलिए कि...
तुमसे ही मुझे ये सौभाग्य मिला है..
किसी मज़बूरी में नही...
मैंने आज करवाचैथ रखा है,
बल्कि अपनी मर्जी से
अपनी खुशी से,तुम्हारे लिए कुछ करने का मन है...
मुझे पता ये व्रत,
रखने से किसी की उम्र नही बढ़ जाती,
सब जानती हूँ मैं..
पर तुम्हारे प्यार के आगे,
ये तुम्हारा विज्ञान भी मुझे झूठा लगता है...
बस कुछ नही सुनुगी,
चाँद का इंतजार करुँगी,
चाँद के साथ तुम्हे देख कर,
तुम्हारी सलामती की दुआ करुँगी,
तुम्ही मेरे सात जन्मों के साथी बनो,मांग लुंगी...!!!

Thursday 13 October 2016

नही मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में....!!!

उस दिन शाम को कॉफ़ी पीते-पीते,
तुम वही घिसा-पीटा डायलॉग बोल कर चले गये,कि हर किसी को नही मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में..और कितनी आसानी से कह दिया कि हमे अलग हो जाना चाहिए...पर आज मैंने तुम्हे रोका नही,ना ही मनाने की कोशिश ही की,क्यों की तुम हमारे प्यार के रिश्ते को किस्मत पर छोड़ गये थे,अपनी कमजोरियों को मजबूरियों का नाम देकर तुमने हर रिश्ते से पीछा छुड़ा लिया...मैं सोचती रही ये सब तुम सिर्फ कहते हो,पर कही ना कही तुम भी मुझे नही छोड़ पाओगे,पर मैं गलत थी,तुम्हारे लिये हमारा रिश्ता तो इन चंद लाइनों में ही रहा...सच ही कहा तुमने...हर किसी को नही मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में....!!!

Tuesday 11 October 2016

आज चाँद हठ करके के बैठा है...!!!

आज चाँद हठ करके के बैठा है,
मेरी खिड़की पर...
कि आज मैं कविता उस पर लिखूं....
बहुत उलझन में पड़ गयी हूँ,
जो खुद कविता हो,
उस पर मैं कविता कैसे लिखूं...
कहता है तुम जिस पर कविता लिखती हो,
उसे चाँद सा कहती हूँ...
और मुझ पर कुछ नही लिखती हो,
आज तो मैं तब तक नही जाऊंगा,
जब तक तुम मुझ पर....
कविता नही लिखती हो,
गर रात नही ढलेगी..
तो इल्जाम तुम पर आयेगा,
तुमने चाँद का दिल तोड़ दिया,
यही तुमको कहा जायेगा...
मैं मुस्कराती हूँ,कहती हूँ..
मैंने कब चाहा कि,
तुम मुझे छोड़ कर जाओ,
तुम मुझसे मिलने आते हो,
तभी तो इन्तजार में तुम्हारे,
खिड़की पर बैठी रहती हूँ...
अपनी सारी कविताएं तो,
तमको ही सुनाती हूँ,
तुम ही मेरी कविता वाले चाँद हो,
तुम्हारी चांदनी ना रुठ हो जाये,
तभी तो तुम्हे नही बताती हूँ....!!!

Sunday 9 October 2016

तुम ही तो मेरे हो.....!!!

तुमने मुझे हँसना सिखाया,
उड़ना सिखाया...
तुमने ही बेरंग तस्वीरो में,
रंग भरना सिखाया....
सब जब मैं तुम जैसी हो गयी हूँ,
तुममे ही...तुम तक...दुनिया मेरी है...
तुम्हारा हाथ थाम कर,
तुम्हारे ही सफर पर चल कर,
तुम्हारी ही मंजिल पर आ गयी हूँ...
तुम्हारी पहचान लिए,
तुम्हारा नाम लिए,तुम संग साथ चलती हूँ...
डरती हूँ,तुमसे हाथ न मेरा छूट जाये,
मैं खो जाऊं ना तुमसे...
कोई पूछे जो नाम मेरा,
मैं नाम तुम्हारा ही लेती हूँ..
तुमको ही मैंने अपना माना,
मेरा क्या है?
तुम ही तो मेरे हो.....

Sunday 2 October 2016

अधूरी सी रह गयी हूँ....!

आज यूँ रोजमर्रा के काम करते-करते,
अलमारी की दराज़ में छिपाई,
डायरी अचानक से गिर गई,
साथ ही कुछ फूल,कुछ खत,
कुछ अधलिखी पंक्तिया,
कुछ ख्वाब गिर गये...
कितने ही सालों से,
इन्हें छिपा कर रखा था,
आज ऐसे बिखर गये मेरे सामने,
कि मेरे सामने,मेरा वजूद बिखर गया हो...
जब मैं तुम्हारे साथ इस घर में आयी थी,
तो ये डायरी..
कुछ यादे ले कर आयी थी,
सोचा था कि खूब लिखूंगी..
पर जिंदगी की आपाधापी में,
सब भूल गयी..
तुम्हे क्या पसंद है,तुम क्या चाहते हो,
तुमको कैसे खुश रखूं,
बस तुम ही तुम रह गये,
मैं तो इस डायरी में,
कही गुम सी हो गयी...
ऐसा नही कि...
तुमसे कोई शिकायत हो,
तुमने मुझे बहुत कुछ दिया..
पर क्या ये वही था,जो मैं चाहती थी,
या वो जो तुम चाहते थे...
तुम्हे भी तो मेरी कविताएं ही पसंद थी,
फिर तुमने कभी क्यों नही पूछा,
कि मैं अब क्यों नही लिखती हूँ,
तुमने अब क्यों कुछ सुनने की जिद नही की,
शायद मेरी तरह तुम भी भूल गये थे...
आज ना जाने क्यों,
अपनी अधलिखी पंक्ति पढ़ कर लगता है,
कि मैं भी यूँ ही अधूरी सी रह गयी हूँ....!

कुछ देर मेरे पास बैठो....!!!

सुनो आओ...
कुछ देर मेरे पास बैठो,
मैं लौटा दूंगी तुम्हारा खोया हुआ,
विश्वास...
कुछ देर बैठो...
मेरे हाथों को थाम कर,
मैं लौटा दूंगी तुम्हे जीने का एहसास...
कुछ देर देखो...
तुम मेरी आँखों में,
मैं लौटा दूंगी...
तुम्हारी आँखों के ख्वाब...
कुछ देर सुन लो,
तुम इन धड़कनो की आवाज़,
तुम्हे मिल जायँगे,सवालो के जवाब....

Friday 30 September 2016

अनकही.... आधी-अधूरी!!!

आज सुबह कुछ नयी सी लगी,या यूँ कहूँ की वही कुछ दिल में छिपे एहसासों को लिये,नई सी लगी..मन में इक अनजानी सी ख़ुशी,जैसे मन की ख्वाब में परियों से मुलाकात हुई हो,वही ख़ुशी जब तुमसे पहली बार मिली थी,वही गुदगुदी सी जब तुमने पहली बार मेरे हाथों को अपने हाथों में लिया था...जब से जगी हूँ बस इन्तजार में हूँ कि कि तुम किसी बहाने से मेरी तरफ देखो,और मेरी आँखों में वही चमक देख कर बोलोगे..कि क्या आज कुछ खास है...पर तुम्हारा रोज़ का वही रूटीन,जल्दी-जल्दी वाला,वही कप में आधी चाय छोड़ देना,न्यूज़पेपर यूँ ही आधा पढ़ कर,बिखरा छोड़ देना..यूँ ही आधी-अधूरी बात करके,शाम को लौट आऊँगा, तब बात करूँगा..वो शाम फिर कभी नही आयी, और तुम्हारा बातो को अधूरा छोड़ देना....ऐसा नही कि तुमने देखा नही मेरी तरफ,मेरी ही आँखे तुम्हे बांध नही पायी..तुम्हारे इस आधी-आधी बातो ने मुझे भी अंदर से अधूरा कर दिया है...जब तुमने देखा मेरी आँखों को,वो भी आधी-अधूरी ही अनकही कह रही थी....

Thursday 29 September 2016

मेरे तुम्हारे प्रेम को...!!!

सुनो मुरली मनोहर....
कही दूर चले जाते है.....
नही समझेगा ये समाज,
मेरे तुम्हारे प्रेम को...
इसने हमेशा ही प्रेम पर,
सवाल किये है,
उँगलियाँ उठायी है..
नही समझ सकता,
ये समाज प्रेम की,
निश्छलता को....
सुनो कृष्ण मुरारी..
तुमने तो हमेशा ही,
इस समाज को..
प्रेम का पाठ पढ़ाया...
फिर भी इसने प्रेम को,
इक दायरे में बांध कर,
समझते है..
इतना ही नही....
ये समाज हमें क्या समझेगा,
ये तो मीरा की भक्ति पर,
भी सवाल करते है....

Wednesday 28 September 2016

मेरा तुम्हारा हो गया....!!!

हम तुम जब मिले,
सब ख्वाब हमारे थे,
सब रंग हमारे थे...
सभी तस्वीर हमारी थी,
सभी ख्वाइशें हमारी थी,
राहे हमारी थी...
और मंजिले भी हमारी थी...
हम साथ थे,ये दुनिया हमारी थी....
पर अब जब तुम चले गये हो,
तो कहते हो....
मेरे भी कुछ ख्वाब है,
मेरी भी कुछ ख्वाइशें है,
मेरी भी अपनी मंजिले है..
ना जाने क्यों...
मेरी तस्वीरे,तुम्हारी तस्वीरो से...
मेल नही खाती,
क्यों राहे जो हमारी थी कभी,
अब तुम्हारी मंजिलो तक नही जाती...
मैं अपनी मुठ्ठी में सब कुछ,
हमारा ले कर बैठी थी,
तुम्हारे इन्तजार में..
ना जाने कब सब,
रेत की तरह फिसल गया...
अब हमारा...हमारा ना रहा...
मेरा तुम्हारा हो गया....!!!

Tuesday 27 September 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-29

261.
तुम्हारे ही ख्वाब मेरी आँखों में बसते है...तुम्हारी ही बाते मेरे होंठो पर हँसती है..

262.
जब भी मुझे तुम्हारी याद आती है.....
मुझे और भी यकीन हो जाता है...
कि तुमने मुझे याद किया है.....

263.
तुम्हारा होना ऐसा होता है......
जैसे शामिल करे कोई,
मेरे होने में तुम्हारा होना.......

264.
तुम्हारी याद में गुलाल आज भी,
अपने हाथों से गालो पर लगा लेती हूँ....चेहरे की उदासी को तुम्हारे नाम के,रंगो में छुपा लेती हूँ...

265.
इस बार होली में,
मुझ पर रंग सभी तुम्हारे नाम के होंगे....

266.
रंग तुम्हारी पसंद के सभी लगा लिये मैंने,इस उम्मीद में ना जाने किस,
रंग में तुम्हे पसंद आऊं मैं....

267.
वो मेरे इतने करीब से हो कर गुजरा है...उसके जाने के बाद भी...
मेरे आस-पास..इक अरसे तक,
उसका एहसास बिखरा रहा....

268.
कुछ ख्वाब अधूरे थे...कुछ बाते पूरी थी...तुम्हारे साथ प्यार तो पूरा था...तुम्हारे बिन जिन्दगी अधूरी थी..

269.
कोई सफ़र तुम्हारे बैगेर अब मुमकिन नही...ये और बात है कि,
किसी सफ़र पर तुम मेरे साथ नही..

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-28

251.
तुम नजरो से कह देती,मैं नजरो से सुन लेता...
तुम ख्वाबो में जो आ जाती, तो मैं भी अपनी आँखों में कुछ सपने बुन लेता...
252.
कभी तुम्हारी नजरे हमसे सब कुछ कह देती थी,
आज तुम्हारी बाते भी मेरी समझ में नही आती..
कभी पहरों इन्तजार करती थी,
आँखे,आज तुम्हे देखना भी नही चाहती...
253.
वो आँखों-आँखों में बातो को कह जाना,
वो बातो-बातो में उंगलियों का टकरा जाना...
पहले से ही सब तय होता है...
यूँ ही नही होता बार-बार,
इत्तफाकन मिल जाना....
254.
हमारी जिंदगी हम पर ही बोझ तब हो जाती है,
जब हम किसी इक शख्स को अपनी जिंदगी मान लेते है...
और उस शख्स के लिए हम...
महज उसकी जिंदगी का हिस्सा होते है....
255.
जब तुम प्यार को समझना तो, मुझे भी बता देना,....
 जब कभी बेपरवाह, बेफिक्री से चाहना जीना,
 मुझे हमसफ़र अपना बना लेना....
256.
कुछ इस तरह से तुम्हे बताना चाहती हूँ मैं ..
कि हर बार से कुछ अलग लगे...
कुछ और शब्दों को खोज लूँ....
फिर कहूँगी तुमसे..
 तुम्हे अपना हमसफ़र बनाना चाहती हूँ....मैं..
257.
सवालो में उलझ कर रह गयी है जिन्दगी.....
 जवाब तो कोई मिलता नही...
सवालो के साथ ही,
आज कल मिलता है हर कोई.......
258.
आज इक इतफ़ाक एक साथ हुआ...
बरसो बाद आज वो मिला था,
बरसो बाद ही आज बरसी थी बारिश...
259.
तुम्हारी ख़ामोशी को ही,
मैं आज तक लिखती रही...
तुम कुछ कह देते तो जाने क्या होता...
260.
बेख़ुदी,बेचैनी,उलझन है...
रा मन... तुम हो तो सब कुछ है..
तुम नही तो क्या है जीवन........

Monday 12 September 2016

प्यार में कोई शर्त नही होती....!!!

क्या तुम नही जानते कि,
प्यार में कोई शर्त नही होती....
पर तुमने हर मोड़ पर शर्त रखी,
कि जैसे ये रिश्ता सिर्फ मेरा हो..
तुमने हर लम्हा...
मुझे ये एहसास कराया...
जैसे मुझे इस रिश्ते कि,
तुम्हारी जरुरत है..
हर शर्त रखी की ये मान लूँ,
ऐसे रह सकू जो तुम्हारे साथ..
तो तुम हो मेरे साथ.....
नही तो हमारे रास्ते अलग है....
कितना आसान था ना तुम्हारे लिये,
रास्तो को बदलना,
कितना आसान था ना तुम्हारे लिये,
शर्तो पर रिश्तो को रखना...
मैं मान भी लेती तुम्हारी हर शर्त,
गर तुम्हे मेरी जरुरत होती...
मुझे भ्र्म था कि....
हमे इक-इक दूसरे की जरुरत है..
तुम्हारी शर्तो ने...
वो भ्र्म भी तोड़ दिया,
तुमने भावनाओ का रिश्ता,
जाने कब शर्तो से जोड़ दिया...

Sunday 11 September 2016

उन आँखों की अनकही....!!!

अपनी खूबसूरती तो...
मैंने तुम्हारी आँखों में देखी थी....
जो अपलक मुझे देखे जा रही थी,
कुछ अनकहे शब्द आँखों में,
उतर आये थे तुम्हारे,
होठ बेचैन थे उन शब्दों को कहने के लिये...
पर शायद मैं तैयार नही थी,
उन आँखों की अनकही को सुनने के लिये,
तभी तो तुम्हारे कुछ कहने से पहले,
मैंने अपनी नजरे फेर ली थी..
मुझे पता था ये नजरे मैंने तुमसे नही,
बल्कि अपनी जिंदगी से फेर रही हूँ...
तब से आज तक...
मैं उन आँखों की अनकही सुनने के लिए,
बेचैन हो भटकती रही हूँ...!!!

Thursday 8 September 2016

कुछ पागलपन भी जरुरी था....!!!

कुछ पागलपन भी जरुरी था....
मैं भी तुम्हारे साथ,
कुछ नादानियाँ करना चाहती थी,
बारिश में छाते को फेंक को कर,
तुम्हारे साथ भीगना चाहती थी...
महकती भीगी हवाओं में,
तुम्हे महसूस करना चाहती थी...
यूँ बेवकूफियाँ कुछ,मारमार्जिया कुछ....
कुछ-कुछ मेरा पागल होना,
तुमको पागल कर देना भी जरुरी था....
तुम्हारी आँखों में देखकर,
कुछ झूठ बोलना चाहती थी..
या यूँ कहूँ की कुछ सच,
छिपाना चाहती थी....
यूँ ही बेवजह मुस्करा कर,
तुम्हे भी दीवाना बनाना चाहती थी...
मैं तो थी ही कुछ पागल,
तुम्हे पागल बनाना चाहती थी...
कुछ-कुछ मेरा पागल होना,
कुछ तुमको पागल कर देना भी जरुरी थी...

Tuesday 30 August 2016

सात फेरे....!!!

सात फेरो का साथ मेरा तुम्हारा,
सातो वचन याद थे हम दोनों को,
तुम साथ-साथ चल भी रहे थे,
राहे एक थी हमारी,मंजिल के करीब भी थे हम...
कैसे तुम इतने निर्मोही हो गये,
छोड़ कर मझधार में साथ,
छोड़ कर चले गये...
मुझे गुमान था उन सात फेरो पर,
वचन दिया था तुमने मुझे,
मंजिल पर पहुचँगे हम साथ-साथ,
मुझे गुमान था कि...
तुम जब तक मेरे माथे पर सजते रहे,
मैं सारी दुनिया को हरा सकती थी,
तभीे तुम्हे जीत लिया था मैंने,...
फिर भी तुमने छोड़ा है साथ मेरा,
तुम भूल गए वो सात फेरे,..पर,
मैं अब तुम्हारे हिस्से के,
वचन भी निभाऊंगी....
छोड़ गए हो तुम जो अपने पीछे,
उनकी ढाल बन जाउंगी,
अभी तक थी सिर्फ मैं ममता की मूरत,
अब पत्थर भी बन जाऊंगी...
तुम इंतजार करना मेरा,
मैं तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी करके,
तुमसे उन सात फेरो का,
हिसाब करने आऊंगी....!!!

Wednesday 24 August 2016

मैं तुम्हारी राधा बन जाऊं....!!!

मैं और तुम से कही उस पार,
क्यों ना तुम्हारी राधा बन जाऊं....
तुम जी लो सदियो की तरह मुझे,
मैं पा लूँ जन्मो-जन्मो की तरह तुम्हे...
क्यों ना तुम्हारी राधा बन जाऊं...
तुम रहो ना मेरे साथ जिंदगी भर,
तुम चलो ना मेरे साथ किसी सफर पर...
फिर भी मैं तुम्हारी मंजिल बन जाऊं,
क्यों ना मैं तुम्हारी राधा बन जाऊं....!!!

Tuesday 23 August 2016

और मैं तुम्हे जी लुंगी......!!!

मेरी डायरी से....
अचानक से गिरे तुम्हारे खत,
एकटक जैसे मुझे देखते रहे,
खतो में लिखे तुम्हारे लफ्ज़,
बिना खुले जैसे मुझे पुकारते रहे,
मैं तुम्हे पढ़ लूँ,जी लूँ उन लम्हो को,
जो तुमने मुझे इन खतो में भेजे थे....
पर ना जाने क्यों आज भी,
मैं नही पढूंगी....
यूँ ही मोड़ कर खतो को रख दूंगी,
उसी डायरी में....
इस इन्तजार में....
कि इक दिन तुम आओगे,
इन खतो को पढोगे...
और मैं तुम्हे जी लुंगी......!!!

Monday 22 August 2016

कोई उम्र तय की है क्या तुमने प्यार की...!!!

कोई उम्र तय की है क्या तुमने प्यार की...
क्यों अब इंतजार....
तुम्हारी आँखों में नही दिखता,
क्यों अब वो मुझ पर एतबार,
तुम्हारी बातो में नही मिलता,
क्यों अब तुम रंग,
कैनवास पर नही उतारते,
क्यों अब तुम लफ़्ज़ों को,
कविता में नही उतारते,
क्यों अब तुम ढलती शामो की,
स्याह रातो की यादे नही दुहराते...
कोई उम्र तय की है l,
क्या तुमने प्यार की...
कि अब हम साथ चलते है,
तो भी हमारी उँगलियाँ टकराती नही,
तुम बढे चले जाते हो,
ना जाने किस मंजिल की तरफ,
कि अब तुम्हारी नजर,
मेरी राहो पर जाती नही है...
बच कर गुजरती तुम्हारी नजरे,
मेरी नजरो इस सवाल पर ...
कोई उम्र तय की है,
क्या तुमने प्यार की...!!!

Thursday 18 August 2016

तुम्हारे एहसास को...!!!

रात बेवक़्त जब नींद खुलती है,
मैं तुम्हारे ख्यालो की स्याही से,
आँखों के रत-जगे लिख देती हूँ..
हवा का कोई झोंका,
जब दरवाज़े का सांकल खटखटाती है
मैं तुम्हारे आने की आहट लिख देती हूँ....
अधखुली आँखों से जब अपने,
साथ जागते चाँद को देखती हूँ,
बाते सारी उसे अपने दिल की कह देती हूँ.....
तुम नही रहते हो मेरे आस-पास,
फिर भी तुम्हारे एहसास को,
हर पल मैं जी लेती हूँ....!!!

Friday 12 August 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-27

241.
हमारे प्यार के गवाही देंगे,ये पल,
लम्हे,शाम-ओ-सहर...
गवाह बनेगें..वो ख्वाब की रात,
वो मुस्कराती सुबह,वो दिन के पहर....

242.
सुनो आहुति....
तुम्हारे साथ वो सुबह जो नींद में होकर भी तुम्हे बंद पलकों से चुपके से देख लेना,इस डर से कि कही मैं तुम्हारे साथ हूँ,ये कोई सपना तो नही...तुम पास हो इस यकीन से मुस्कराना...कि मेरे सपने भी सच होते है..

243.
मैं इसलिये नही लिखती कि,
मुझे लिखना अच्छा लगता है...
मैं इसलिए लिखती हूँ कि,
तुम्हे पढ़ना अच्छा लगता है.....

244.
एहसास शब्दों में बयाँ होते तो बताती तुमको,
इन बूंदों संग मैं भी लिपट जाती तुमसे...

245.
खामोशियो से खामोशियों का,
पता लगाना जानते हैं ........
वो जितना कह भी नही पाते,
उतना हम खामोश होना जानते हैं ...!

246.
नही भाती तुम्हारे चेहरे पर उदासियां,
मुझे अंदर से तोड़ती है तुम्हारी खामोशियाँ.....

247.
हाँ सच है तुम्हारे लिये आँखो में आँसू है...
इक सच और भी,
ये आँसू तुम्हारी वजह से नही है......

248.
तुम्हारी ख़ामोशी जो टूटती नही है....
मुझे तोड़ती जाती है....

249.
दो ही वजह है मेरे लिखने की....
तुम्हारे लिये ही मैं लिखती हूँ...
और तुम ही हो जो..
मुझसे लिखवा लेते हो....

250.
तूफानों से कह दो कि आ जाये जैसे आना हो,
मैंने भी उनका हाथ थाम कर रखा है....