Thursday 29 September 2016

मेरे तुम्हारे प्रेम को...!!!

सुनो मुरली मनोहर....
कही दूर चले जाते है.....
नही समझेगा ये समाज,
मेरे तुम्हारे प्रेम को...
इसने हमेशा ही प्रेम पर,
सवाल किये है,
उँगलियाँ उठायी है..
नही समझ सकता,
ये समाज प्रेम की,
निश्छलता को....
सुनो कृष्ण मुरारी..
तुमने तो हमेशा ही,
इस समाज को..
प्रेम का पाठ पढ़ाया...
फिर भी इसने प्रेम को,
इक दायरे में बांध कर,
समझते है..
इतना ही नही....
ये समाज हमें क्या समझेगा,
ये तो मीरा की भक्ति पर,
भी सवाल करते है....

2 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "आदिशक्ति" (चर्चा अंक-2482) पर भी होगी!
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. किताबी प्यार.. वाह! क्या कहने.

    अनुपम प्रस्तुति,मन को छूती.

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