Tuesday 31 January 2017

फिर वही गुलाबो के महक..फिर वही फरवरी है..!!!

वही बचपन का प्यार,
वही गुलाबो का इकरार...
किसी को ढूंढती हमारी आँखों की कशिश,
वही सिद्दत कि मिल जाये कोई,
तो न्योछावर जन्मो का प्यार...
बचपना ही तो था,पागलपन था,
पर बहुत खूबसूरत किसी के ना होने,
पर उसके मिल जाने का इंतजार...
फिर वही गुलाबो की महक है,
फिर वही आँखों की कशिश है...
फिर वही फरवरी है....!!!

Monday 23 January 2017

मेरे शब्द भी तो तुमसे ही है....!!!

आखिर तुमने आज कह ही दिया,
कि तुम मुझे क्यों लिखती हूँ,
मैंने पूछा फिर क्या लिखूं...
तुमने कहा...
तुम देखो तुम्हारे आस-पास,
बहुत कुछ है लिखने को.... सूरज,चाँद,तारे,फूल,बारिश,शामें,राते...
सब कुछ तो तुम्हारे लिए इनको लिखो...
मैं हँस पड़ी....
मेरा तो सब कुछ तुमसे ही है...
तुम हो तो मुझे....
दिन,रात,पहर,शामें महसूस होते है...
जो तुम नही तो,
बारिश तो होती है, पर मुझे भिगोती नही है...
कैसे लिख दूँ....
तुमसे परे कुछ भी...
कि मेरे शब्द भी तो तुमसे ही है....!!!

Thursday 19 January 2017

झरते गुलमोहर.....

उस रोज बगीचे में...
गुलमोहर के पेड़ के नीचे,
जब तुम अपना सर मेरी गोद में,
रख कर लेटे  ना जाने आसमान में,
गुम कुछ ढूंढ रहे थे...
तब मैं जमी पर अपनी,
इक छोटी सी दुनिया की,
तस्वीर खीच रही थी...
जब तुम उस पल अपनी मंजिले,
अपने सफर,अपने सपने देख रहे थे..
तब ही मैं हम पर झरते,
उन गुलमोहर के फूलों को,
शुक्रिया कर कह रही थी...
जब तुम आसमान की उच्चाईयां छूने को,
सीढ़ियां बना रहे थे,
तब ही मैं तुम पर छुक कर तुम्हारे मस्तक पर,
अपने होठो का स्पर्श दे कर,
आसमान में उड़ रही थी...
तभी तुम अचानक से उठे,
और कहने लगे बहुत हो गया,
अब मैं चलता हूँ,और भी काम है...
तुम इस तरह कहते देख ,
मैं कुछ नही कह पायी,
क्या कहती कि...
गर तुम यूँ ही...
मेरी गोद में लेटे रहते तो,
मुझे जिंदगी से और,
कुछ चाईए ही नही था..
फिर तुम अपनी मंजिलो,
की तरफ बढ़ गए,
और मैं हम पर झरते गुलमोहर के,
फूलों को समेटती रही,
क्यों मेरे पास,
तुम्हे संजोने से जरुरी,
कोई काम नही था......!!!

Monday 9 January 2017

'आहुति"लिखती है...!!!

मैंने आज खुद को किताबो के,
बाजार में देखा,
मोल मिल गया उन शब्दों को,
जो मेरे लिए अनमोल थे,
सभी पढ़ रहे है तुमको,
इक सिवा तुम्हारे,सभी जानते है,
तुमको,इक तुम्ही अंजान रहे...
मेरे इक-इक शब्द में,
इक-इक पंक्ति में,
सभी अपने प्रिय की,
तस्वीर खीचते है,
जो सिर्फ और सिर्फ,
तुम्हारे लिए थी,उन रचनाओं को,
सभी अपनी-अपनी पंक्ति मानते है...
मैं अब मैं ना रही,
मुझे अब कहाँ लोग,
पहचानते है,तुमको ही पढ़ते है,
तुम्ही से अब मुझे,
सभी जानते है...
कभी फुरसत हो,
तो पूछ लेना किसी से "आहुति"को..
कह देंगे वो भी,
कि वो भी खूब है
वो जिसे "आहुति"लिखती है...!!!

Wednesday 4 January 2017

आज तक सफर में हूँ...!!!

इक नदी जब चलती है,
तो सागर में गिरेगी यही,
उसकी नियति होती है,
सागर ही उसकी मंजिल होती है...
यही पढ़ती आयी थी,देखती आयी हूँ...
मुझे मंजिल नही मिली....क्यों कि,
मैं चली तो नदी की तरह ही थी,
पर सागर में मैं गिरी नही,
सागर के साथ चलना तय किया....
कि आज तक सफर में हूँ...!!!

Sunday 1 January 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-33

301.
कविता मैं लिख दूंगी कहानी
तुम लिख लेना..
मैं तुम्हारे लम्हो को जी लुंगी,
तुम मेरी जिंदगी जी लेना..

302.
मैं तो पूरी दुनिया को,
शब्दों में बांध लुंगी,
अगर तुम मुझे पढ़ने की ठान लो....

303.
मुझमे तुम में सिर्फ इतना फर्क है,
मैंने तुम्हे उम्मीदों से बंधा है,
तुमने मुझे शर्तो से बांधा है.....

304.
कभी-कभी यूँ ही जिन्दगी की.
हर बात अच्छी लगती है.....
जानते हो क्यों.....
क्यों की तुम अच्छे लगते हो....

305.
इतना भी मुश्किल नही था,
सब कुछ आसान कर देना,
जितना आसान था तुम्हारे लिये,
आसान को मुश्किल कर देना.....

306.
मैं कब से उन शब्दों का,
इन्तजार कर रही हूं,
जिन्हें मैं लिखूं भी नही...
और तुम मेरे मौन में पढ़ लो...

307.
जब से तुमसे मिली...
मैं प्रेम को लिखने लगी...
जब तुम्हारी आखों की,
गहराईयों में उतरी तो...
अंतहीन..अद्रश्य...
प्रेम को मैं लिखने लगी..

308.
मुझसे अभी तक यूँ ही,
बहुत कुछ लिख़ गया है....
तुम्हे लिखते-लिखते......

309.
नही पता कि ये लगाव,
ये अपनापन क्या होता है,
पर जब-जब तुम्हारा,
दिल धड़कता है,
मुझे मेरे होने का एहसास होता है....

310.
अपनी तलाश पर निकलूं,
भी तो क्या फायदा...
तुम बदल गये हो...
खो गये होते तो...
कुछ और बात होती...

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-32

291.
फिर इक बार.....
मैं शब्दों को गढ़ लूँ,
कि शब्द अब मिलते नही मुझे...
तुम जो पढ़ लो इक बार,
तो....मैं फिर कविता बन जाऊं..

292.
मुझे सुकून है कि,
मैंने हर मुमकिन कोशिश की,
तुम्हे रोकने की....
तुम पछताओगे कि,
तुम ठहरे क्यों नही...

293.
तुम क्या समझोगे प्यार क्या होता है,
जहां दिल की चलती है,
वहां तुम दिमाग चलाते हो...

294.
मैं तो हर दिन तुम्हारे लिये,
करवाचौथ रहती आई हूँ...
सुना है उम्र बढती है...
इसके व्रत रखने से...
मैं तो हर पल अपनी साँसों क,
तुम्हारी सांसो से जोडती आयी हूँ...
अब भी क्या कोई रस्म,
अदा करनी पड़ेगी..........!

295.
मेरा तुम्हारे साथ होना मेरी मर्जी है,
गर तुमने मेरी मज़बूरी समझ लिया
ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है....

296.
अपना धड़कता दिल,
तुम्हारे सीने में,
छोड़ आयी हूँ...
तुम्हारे होटों पर निशानी अपनी,
मुस्कराहटो की छोड़ आयी हूँ...
सभी पढ़ लेंगे अब तुम्हारी आखों में...
कहानी अपनी उनमे छोड़ आयी हूँ....

297.
कभी मैं प्यार के लिये,
लिखा करती थी,
अब लिखने के लिये,
प्यार लिखती हूँ...

298.
इक शाम मेरी धड़कनो की,
तुम्हारी धड़कनो से बात हो...
ना लबों को हो इजाज़त,
कुछ कहने की..
सिर्फ इशारो में...
जाहिर जज्बात हो..
बस यूँ ही....इक शाम..
तुम्हारे साथ हो..

299.
किसी का साथ पसंद है तो फिर,
ये नही देखा जाता की साथ कितनी देर का है.....
देखा तो बस इतना जाता है,
की दो पल भी अगर साथ है....
तो मुकम्मल साथ रहे......!!

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-31

281.
नही याद की उसके साथ पी थी,
चाय और कॉफ़ी का स्वाद क्या था...
सिर्फ ये याद रह गया....
कि उस शख्स की आखों में क्या-क्या था..

282.
मैं चाहती हूँ इक चांदनी रात,
जो सिर्फ मेरी और तुम्हारी हो...
हो चांदनी कुछ नाराज चाँद से,
उस रात चांदनी सिर्फ हमारी हो.....

283.
कितना कुछ हो जाता है,दुनिया में यूँ ही बेवजह....
फिर तुम्हे मेरा बनने में क्यों चाइये कोई वजह...

284.
कितना इतराते हो,
तुम मेरी रचनाओं को पढ़ कर,
इस एहसास से की,
मेरे सारे शब्द सिर्फ तुम्हारे है...
तब मैं भी थोड़ा इतरा लेती हूँ,
तुमको अपने शब्दों में गढ़ कर,.....

285.
ढलती शामे,चाँद,तारे,राते,चाँदनी..
साँसे,अहसास,दिल,धड़कन...
सौं बातों का इक ही मतलब ...
सिर्फ तुम...और तुम ही तुम..

286.
तुम्हारी आँखों की बाते,
तुमसे ही कह देती हूँ...
तुम हँस कर पढ़ कर लेते हो,
मैं मुस्करा कर तमको ही लिख देती हूँ...

287.
तेरी बातो से मेरी..
हर इक रचना रच जाती है...
कविता तो मैं लिखती हूँ...
कविता जैसी बाते..
तुमको आती है..

288.
इक पूरी जिंदगी गुजार दी हमने,
इक अच्छी जिंदगी,
जीने की तैयारी में......

289.
रात भर दिये की रौशनी लिये,
तुम्हारी राहो में तुम्हारी राह तकती रही...
ना दिये को बुझने दिया,
बाती संग मैं भी जलती रही...

290.
इक लम्हा तेरी नजरो में मैं ठहर जाऊं,
इक लम्हा मेरी साँसों से गुजर जाये....
बस इन्ही दो लम्हो में,
हमारी जिंदगी गुजर जाये...

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-30

270.
तुम रहने दो मेरे मन को बहलाने को,
तुम बिन ही....
मैंने मन को मना लिया है..

271.
उसके हाथो की गिरिफ्त ढीली,
पड़ी तो महसूस हुआ...
यही वो जगह है..
जहाँ रास्ता बदलना है...

271.
गुस्ताखियां भी आपकी
नाराजगिया भी आपकी...
गज़ब अंदाज़ है....
आपकी चाहत के...........

272.
प्यार,एहसास,उम्मीद....जीवन विश्वास...
कुछ यूँ हो तुम मेरे आस-पास...
इक खत में लिखूं...
क्या-क्या दिल की बात..

273.
इन लम्हो को कैद करके,
कुछ तो आसान कर ली है जिंदगी.....!!!

274.
हमने जिंदगी को,खुद को,
कोई विकल्प नही दिया,
तुम हो तो हो...
नही तो कुछ नही चाहिए...
जिंदगी से....

275.
तुम्हारी मुस्कराहटे....
मेरी दम तोड़ती जिन्दगी में.....
साँसों का काम करती है....

276.
तुम्हारे हर झूठ को,
मैं सच मान लेती हूँ,
झूठ के पीछे का भी,
सच जान लेती हूँ...
जब तुम सोचते हो कि,
तुमने मुझे झूठ से बहला दिया,
उस पल मैं तुम्हारे लिए,
सिर्फ तुम्हारे लिए....
खुद को पागल मान लेती हूँ..

277.
तेरी कायनात में ए-खुदा,
कही भी मेरा दिल लगा नही......
मेरे दिल को जो तस्सलिया दे....
ऐसा कोई मिला नही.... .......!!

278.
जब तुम पढ़ लेते हो मुझको,
मैं शब्दो से निकल कर,
सज जाती हूँ तुम्हारे होठो पर...

279.
एक नाम जिस में हमारी,
पूरी दुनिया सिमट जाती है.....
जिसकी एक ख़ुशी के लिए,
हम कुछ भी करने को,
तैयार रहते है....
जिसके इक इशारे पर,
हम पूरी दुनिया,
जीत कर उसके कदमो में,
ला सकते है...
आखिर हम उसी से क्यों,
हार जाते है..... !!

280.
कभी तुम्हारी बातो से बुनी थी,
जो कहानी...पुरी हो ना हो...
तुम्हारी मुस्कराहटों से,
पुरी जिंदगी हो जायेगी..
मेरी आँखों से शुरू तुम्हारी,
आँखों पर खत्म..
ये कहानी मेरे शब्दो में,
सदियों तक पढ़ी जायेगी..

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-29

261.
तुम्हारे ही ख्वाब मेरी आँखों में बसते है...
तुम्हारी ही बाते मेरे होंठो पर हँसती है..

262.
जब भी मुझे तुम्हारी याद आती है.....
मुझे और भी यकीन हो जाता है...
कि तुमने मुझे याद किया है.....

263.
तुम्हारा होना ऐसा होता है......
जैसे शामिल करे कोई,
मेरे होने में तुम्हारा होना.......

264.
तुम्हारी याद में गुलाल आज भी,
अपने हाथों से गालो पर,
लगा लेती हूँ....
चेहरे की उदासी को तुम्हारे नाम के,
रंगो में छुपा लेती हूँ...आहुति

265.
इस बार होली में,
मुझ पर रंग सभी तुम्हारे नाम के होंगे....

266.
रंग तुम्हारी पसंद के सभी लगा लिये मैंने,
इस उम्मीद में ना जाने किस,
रंग में तुम्हे पसंद आऊं मैं....

267.
वो मेरे इतने करीब से हो,
कर गुजरा है...
उसके जाने के बाद भी...
मेरे आस-पास..इक अरसे तक,
उसका एहसास बिखरा रहा....

268.
कुछ ख्वाब अधूरे थे...
कुछ बाते पूरी थी...
तुम्हारे साथ प्यार तो पूरा था...
तुम्हारे बिन जिन्दगी अधूरी थी..

269.
कोई सफ़र तुम्हारे बैगेर,
अब मुमकिन नही...
ये और बात है कि,
किसी सफ़र पर तुम मेरे साथ नही..