Tuesday 22 November 2016

मैं तुम्हारी तरह परफेक्ट तो नही हूँ..!!!

हाँ मैं तुम्हारी तरह परफेक्ट तो नही हूँ,
नही आता सलीका मुझे,
अपनी उम्र के हिसाब से जीने का...
मैं तो बचपने में ही जीती हूँ,
बड़ी खुशियों का मुझे इन्तजार नही,
हर को खुशियो से भर देती हूँ...
तुम्हारे दर्द में मै नही दे पाती,
वो बड़े-बड़े शब्दो की सांत्वना,
मैं तो संग तुम्हारे रो लेती हूँ.....
नही समझ आते मुझे परिपक्वता,
गंभीरता जैसे भारी-भारी शब्दो का अर्थ..
मैं तो बड़ो को आदर,
छोटो के बचपन के साथ जीती हूँ...
कोई दिखावा नही,
निश्छल नदी सी बहती हूँ....
कोई विकल्प नही दिया जिंदगी को,
तुम्हारे सिवा..
इसी विस्वास की आँखों में चमक लिए,
मैं हर तुमसे मिलती हूँ...!!!

Monday 21 November 2016

तुम में कही...!!!

तुम कहते हो ना कि,
मैं तुम्हारी फ़िक्र ना करूँ,
तुम्हे छोड़ दूँ,तुम्हे जरुरत नही मेरी...
चलो इस बार मान लेती हूँ,
तुम्हारी सारी बाते....
नही करुँगी तुम्हारी फ़िक्र,छोड़ दूंगी तुम्हे...
पर शर्त ये की तुम लौटा दो,
मुझे वो शामे जो साथ तुम्हारे गुजरी है,
लौटा दो मुझे वो राते,
जो आज भी मेरे जहन में,
खुशबु की तरह बिखरी है..
मुझे लौटा दो वो मेरे ख्वाब,
जो मैं तुम्हारी आँखों को दे आयी थी,
मुझे लौटा दो वो मेरे तीन शब्द,
जो चुपके से तुम्हारे कानो में,
कह आयी थी....
मुझे लौटा दो  मेरे होठो की वो हंसी,
जो तुम्हारे होठो पर रख आयी थी,
मुझे लौटा दो वो जिंदगी,
जो तुम्हारी धड़कनो को दे आयी थी...
मैं आ तो गयी हूँ,तुम्हे छोड़ कर...
पर मेरा सब...
कुछ छुट गया है तुम में कही...
तुम्हे मिल जाये तो,
मुझमे ही लौटा देना मुझको...!!!

Saturday 12 November 2016

तुम ही तुम हो..!!!

जहाँ मेरी सारी शिकायते,
खत्म हो जाती है,वो तुम ही हो...
जहाँ मेरी ख्वाईशो की बंदिशे,
नही रहती है,वो तुम ही हो...
जहाँ मेरी धड़कने,साँसे कोई मायने,
नही रखती,वो सिर्फ तुम ही हो....
जहाँ मेरे शब्दों के कोई दायरे नही रहते,
मेरे ख्यालो पर कोई,
पहरे नही रहते,वो सिर्फ तुम ही हो...
जहाँ से मेरी मंजिले खत्म हो जाती है,
तलाश कोई और,
राहो नही रहती,वो सिर्फ तुम ही हो..
जहाँ मेरी सोच,मेरे सारे तर्क-वितर्क,
बेअर्थ हो जाते है,
वो सिर्फ तुम ही तुम हो...!!!

Monday 7 November 2016

मैं सिर्फ तुमको ही लिखती रहूँ....!!!

मैं ना मंच से तुम्हे गाना चाहूं,
मैं तो तुम्हारे होठो पर गुनगुना चाहूं....
मैं ना किसी अखबार की,
सुर्खियां बनना चाहूं,...
मैं तो तुम्हारे ह्रदय पर रचना चाहूं...
मैं ना किसी किताब में,
प्रकाशित होना चाहूं,
मैं तो तुम्हारे अंतर्मन में अनकही,
अलिखित,अप्रकाशित,
पंक्तियों सी रहना चाहूं...
मैं ना अब किसी का ख्वाब बनना चाहूं,
बस तुम्हारे ख्वाबो में रहना चाहूं....
मैं ना अब कोई और,
इबादत करना चाहूं....
मैं तो तुम्हारे सजदे में ही सर झुकाना चाहूं...
मैं ना अब कोई राज,
बन कर रहना चाहूं....
मैं तो खुली किताब बन कर,
तुम्हारे हाथो में बिखरना चाहूं....
सौं बातो की..
इक बात मैं कहना चाहूं,
सिर्फ तुम ही मुझे पढ़ते रहो,और
मैं सिर्फ तुमको ही लिखती रहूँ....!!!

Sunday 6 November 2016

मैं आज भी पगली सी हूँ....!!!

वो चाँद की रात,वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कहते मैं लिख रही थी,
तुम को शब्दों में बांध रही थी..
और तुम नाराज भी होते कि,
क्यों लिख रही हूँ मैं...
मैं हर बार कहती कि,
तुम्हे अपने पास संजो कर रख रही हूँ...
और हसँ कर कह देते कि,
तुम बिलकुल पगली हो....
और मैं भी मान लेती की,
हाँ मैं पागल ही सही...
जब तुम बाते करते थे ना,
तुम्हे सुनने चाँद की चांदनी भी,
नंगे पाँव जमी उतर आती थी..
मुझे बिलकुल भी अच्छा नही लगता कि,
तुम्हे कोई भी सुने..
तो मैं तुम्हारी बातो को,
हमेशा के लिए अपने शब्दों में...
बाँध लेती थी...
आज भी वो चाँद की रात है,
वही चांदनी है...
वही तुम्हारी बाते तो है,
मैं आज भी पगली सी हूँ वैसे ही...
पर तुम नही हो...!!!