Tuesday, 22 November 2016

मैं तुम्हारी तरह परफेक्ट तो नही हूँ..!!!

हाँ मैं तुम्हारी तरह परफेक्ट तो नही हूँ,
नही आता सलीका मुझे,
अपनी उम्र के हिसाब से जीने का...
मैं तो बचपने में ही जीती हूँ,
बड़ी खुशियों का मुझे इन्तजार नही,
हर को खुशियो से भर देती हूँ...
तुम्हारे दर्द में मै नही दे पाती,
वो बड़े-बड़े शब्दो की सांत्वना,
मैं तो संग तुम्हारे रो लेती हूँ.....
नही समझ आते मुझे परिपक्वता,
गंभीरता जैसे भारी-भारी शब्दो का अर्थ..
मैं तो बड़ो को आदर,
छोटो के बचपन के साथ जीती हूँ...
कोई दिखावा नही,
निश्छल नदी सी बहती हूँ....
कोई विकल्प नही दिया जिंदगी को,
तुम्हारे सिवा..
इसी विस्वास की आँखों में चमक लिए,
मैं हर तुमसे मिलती हूँ...!!!

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.11.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2536 पर दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. सुन्दर रचना

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