Saturday 27 February 2016

धागों को उलझा रही हूँ..कि सुलझा रही हूँ....!!!

फिर उँगलियों के पोरो में,
धागों को उलझा रही हूँ...
कि सुलझा रही हूँ....
उलझे तो तुम्हारे ख्याल हो,
सुलझे तो तुम्हारे जवाब हो.....
मैं फिर धागों में,
हमारे एहसासों को पिरो रही हूँ.....
बिना किसी शर्त के,
बिना किसी वादों के,
मैं बुन रही हूँ,..
इन रेशमी धागों को...
तुम खींचो चाहे जितना,
उँगलियों के पोरो में....
पकड़ मजबूत कर रही हूँ...
इन धागों की...
जब भी तुम्हारी यादो में टूटती हूँ....
तो चुपके से सिल लेती हूँ खुद को...
इन्ही धागों से...
जब भी कुछ मांगना चाहती हूँ तुमसे,
बना के मौली,मांग कर कोई मन्नत जैसे,
बांध आती हूँ...किसी मंदिर में....
इन धागों को.....
जब भी तुम दूर जाते हो,
मैं तुम्हारे साथ रहूँ हर पल,
तुम्हे हर नजर से बचाने को,
तो अपनी दुआएं सभी,
खुद को बनाकर ताबीज़,
तुम्हारे बाहों पर बांध देती हूँ...
इन धागों की..
फिर उँगलियों के पोरो में,
धागों को उलझा रही हूँ...
कि सुलझा रही हूँ....
उलझे तो तुम्हारे ख्याल हो,
सुलझे तो तुम्हारे जवाब हो.....
मैं फिर धागों में,
हमारे एहसासों को पिरो रही हूँ.....!!!

Sunday 21 February 2016

तुम्हे लिखना....!!!

मेरी पंक्तियों को पढ़ कर,
जितना आसान था...
तुम्हारे लिये खामोश होना,
उतना ही मुश्किल था...
मेरे लिये, तुम्हे लिखना....
जितना आसान था..
तुम्हारा मुझे देख कर भी,
नजरअंदाज करना,
उतना ही मुश्किल था,
मेरे लिये तुम्हारे अंदाज़ लिखना...
जितना आसान था...
तुम्हारा मेरी मुस्कराहटों पर,
सवाल करना..
उतना ही मुश्किल था,
मेरे लिए तुम्हे जवाब लिखना...
जितना आसान था,
तुम्हारे लिये मुझे भूल जाना..
उतना ही मुश्किल था,
मेरे लिये तुम्हारी यादे लिखना...!!!

Friday 19 February 2016

कुछ यादे है...!!!

वो राज तुम्हारी आँखों का,
वो जादू तुम्हारी बातो का,
वो खूबसूरती ढलती शामो की,
वो तन्हाई गहराती रातो की,
वो छुअन तुम्हारे एहसासों की,
वो तूफान तुम्हारे जज्बातों का,
सभी कुछ तो वही है,
कुछ बदला नही है,
यही कुछ यादे है,
हमारी मुलाकातो की..!!!

Saturday 13 February 2016

दीवानापन अच्छा लगेगा.....!!!

मैं यूँ ही बेचैन सी,
प्यार को लिखने बैठी हूँ...
तुम्हे क्या अच्छा लगेगा...
मैं लिख दूँ यूँ ही कुछ भी...
क्या प्यार में मेरे,
तुम्हे मेरा कुछ भी,
लिखना सच्चा लगेगा....
मैं तो आसमान से सितारे,
तोड़ लाने की बाते करुँगी,
मैं तो तुम्हारा हाथ थाम,
कर उड़ जाने की बाते करुँगी..
मैं तो तुम्हे ही सफ़र,
तुम्हे ही मंजिल समझे बैठी हूँ...
तुम्हे क्या मेरा,
ये दीवानापन अच्छा लगेगा...
क्या प्यार में मेरे,
तुम्हे मेरा कुछ भी,
लिखना सच्चा लगेगा....
मैं तो झल्ली,मुस्कराती सी..
तुम्हारी समझदारी से कोसो दूर,
हर लम्हे में प्यार को सजाने,
तुम्हारे साथ...
वलेंटाइन-डे मनाने बैठी हूँ,
तुम्हे क्या मेरा,
ये पागलपन अच्छा लगेगा....
क्या प्यार में मेरे,
तुम्हे मेरा कुछ भी,
लिखना सच्चा लगेगा....!!!

Sunday 7 February 2016

Valentine day खतो की डायरी...!!!

जब भी तुम्हारा खत मिलता था,
तो यूँ लगता की जैसे इस खत,
मेरे दिल का कोई राज छुपा हो,
मैं जैसे हर वो बात तुमसे,
सुनना चाहती थी...जो कभी,
मैं तुमसे कहना चाहती थी..
आज भी ये खत...
मेरी डायरी दे बाहर,
खुद-बखुद आ जाते है..
मैं लाख नजरें बचा कर इन्हें,
फिर डायरी में कही छिपा दूँ...
पर इक बैचैनी सी बढ़ा देते है...तुम्हारे शब्द......
मेरी हीर,
तुम्हारी उंगलियो की छुअन का वो एहसास आज भी मेरी उंगलियों को है.....आज जब तुम्हे लिखते-लिखते मेरी उंगलियां ठहरती है,तो आपस में उलझ जाती है..इस सोच में कि किस तरह से मेरी उंगलियां तुम्हारी तुम्हारी उंगलियों से जुदा हुई थी...इस बार जब मिलना तो अपनी उंगलियों को मेरी उंगलियों से उलझा कर मेरी उँगलियों की उलझन सुलझा देना....
                                              तुम्हारा
                                                राँझा

Thursday 4 February 2016

Valentine day खतो की डायरी...!!!

आज रात फिर गुजरी है तुम्हारे ख़तो,
तुम्हारे ख़्यालो में,तुम्हारे ख़तो के,
इक-इक शब्द जैसे मेरे दिल की,
इक-इक बात कहते है.....
गुजरता है हर इक दिन इस ख्याल में,
कि कल तुम्हारा खत,
कितने लम्हों को संजो कर,
मेरे पास होगा..सच ही है ये ख़तो में,
तुम्हारे प्यार का अंदाज़ खूब है...
क़ि फिर आज तुम्हारा खत पढ़ा है...
मेरी हीर,
तुमसे बाते करते-करते मै भूल जाता हूँ,की मुझमे भी तुमसे कुछ कहना है, पर तुम्हारी बाते इतनी प्यारी थी, बस सुनता जाता था,कौन सा रंग तुम्हे पसंद हैं कौन सी बात तुम्हे पसंद है, मेरा कौन सा अंदाज़ तुम्हे पसंद है, सभी कुछ जानना चाहता था, या यूँ कहूँ कि मैं जानना चाहता था की मैं तुम्हारी धड़कनो के साथ धड़कता हूँ या नही....मैं जानना चाहता कि वो पल जब तुम मुझे याद मुस्करा देती हो...मैं तुम्हे बताना चाहता था,कि तुमसे बाते करने के बात भी,मेरे लिये कुछ भी तो गुजरता नही....दिल के किसी कोने में ठहर जाता है...याद बनकर..
                                                   तुम्हारा
                                                     राँझा

Wednesday 3 February 2016

Valentine day खतो की डायरी.....!!!

सुबह से ही कुछ बेचैनी सी है,
कि एक ही बात दिल में जैसे ठहर गयी है,
कि हर रोज तुम अपने ख़तो में,
इक नए राज को बताते हो,
तुम्हारे ख़तो को पढ़ते,पढ़ते,
मैं ना जाने किन ख़्यालो में खोती जाती हूँ....
और तुम्हारा हर खत,
मुझे तुम्हारे और करीब ले जा रहा है...
मेरी हीर,
तुमसे ख़्यालो से शुरू तुम्हारे ख़्यालो पर ही खत्म मेरे शब्दों की सीमा है, मैं ना जाने कैसे तुमसे ही तुम तक ही चला जा रहा हूँ....ना जाने शब्द मुझसे खेल रहे है, या ख्याल तुम्हारे मुझसे शब्दों को संजो रहे है...मैं तो तुम्हारे ख़्यालो की बनायीं हुई, तस्वीर सा हूँ..ना मेरे शब्द मेरे है,ना मैं इनका हूँ, मेरा कुछ भी नही मुझमे, मैं तो तुम जैसा हूँ...
                                                   तुम्हारा
                                                     रांझा

Tuesday 2 February 2016

Valentine day खतो की डायरी...,

तुम्हारे ख़तो के सिलसिलों ने जैसे,
इक एहसासों दे बांध दिया था,
हर रोज तुम्हारा ख़तो का सिलसिला,
मेरी सांसो के चलने का सबब बनता जा रहा है...
जब तक तुम्हारा खत न पढ़ लूँ...
कुछ अधूरा सा लगता है....
मेरी साँसों को तुम्हारी साँसे बनकर,
तुम्हारा खत मिला..
मेरी हीर,
जिंदगी तो मैं पहले भी जी रहा था,ये मौसम,ये हवा,ये फ़ूलो के रंग, ये शाम, ये रात सभी वही है पहले जैसी...फर्क सिर्फ इतना है कि पहले इन सभी को देख कर मैं यूँ  ही गुजर जाता था..अब ना जाने क्यों मुस्करा कर ठहर जाता हूँ....क्यों की अब हर शै में तुम्हारा एहसास महसूस करता हूँ....मैं सोचता हूँ कि अगर तुम मुझे ना मिलती तो शायद मैं जिंदगी की खूबसूरती कभी समझ ही नही पाता....सच कह रहा हूँ..,कि जिंदगी तो मैं पहले भी जी रहा था,पर तुमसे मिलकर जैसे जिंदगी  मुझे जीने लगी.....
                                             तुम्हारा
                                               राँझा

Monday 1 February 2016

Valentine day खतो की डायरी...,

आज से पहले मुझे इतनी बैचेनी कभी नही हुई...
आज उसके ख़त का दूसरा दिन था...
रात भर ना जाने कितने ही ख़्यालो में
खोई रही,तुम्हारे खत के आज से,
पहले मुझे इतनी बैचेनी कभी नही हुई...
आज उसके ख़त का दूसरा दिन था...
रात भर ना जाने कितने ही ख़्यालो में,
खोई रही,तुम्हारे खत के इन्तजार में,
कितने ही शब्दों पिरो कर खुद से बाते करती रही...तुम्हारा खत मिला..
मेरी हीर...
मुझे नही पता कि तुम मेरी हीर कब हो गयी,कब दिल ने तुम्हे सारे अधिकार दे दिये,तुम्हारी आँखों ने कब मुझसे इक रिश्ता कायम कर लिया....शायद तभी जब तुम्हे पहली बार मंदिर की सीढ़ियों पर देखा था, और मैं अनायास ही तुम्हारे पीछे चल पढ़ा था, तुम जब आँखे बंद कर के इबादत कर रही थी, तभी मैंने अपनी आखों में तुम्हारा वो चेहरा उतर गया था...तब से आज तक तुम हीर से मेरी हीर बन गयी...
                                                    तुम्हारा
                                                     राँझा