तुम्हारी मुस्कराहटो का,
इक ख़त लिख रही हूँ मैं...
तुम्हारे होटों की वो मुस्कराहटे,
मैंने मिस कर दी....
जिनकी वजह मैं थी....लेकिन
मैंने उन्हें महसूस किया है...
वो पल जब पहली बार,
मेरे किसी ख्याल पर,
तुम मुस्कराए थे....
वो पहली बार जब...
तुम्हारे खाने के टिफिन में,
कुछ लाइनें लिख कर दी..
उन्हें पढ़ कर जो,
तुम्हारे होटों पर मुस्कान थी,
वो भी मैंने महसूस की थी....
वो पहली बार,
जब किसी सफ़र पर,
तुम्हारे कांधे पर सर रख कर...
मैं सो गयी थी..
तब भी चुपके से मुस्कराए थे तुम..
मेरी शरारतों पर..
मुझ पर गुस्सा कर,
अकेले में उन्ही पर मुस्कराए हो तुम..
वो भी महसूस की है मैंने...
मेरी लिखी पंक्तियों को,
अकेले में बार-बार पढ़ कर,
तुम्हे इतराते...मुस्कराते....
महसूस किया है मैंने....
मुझे ख़बर है कि..
मेरे इस मुस्कराहटो के,
ख़त को पढ़ते ही..
मन ही मन मुस्कराओगे तुम...
मैं देखूं न देखूं..
तुम्हारी मुस्कराहटो महसूस,
तो किया है मैंने....
तुम्हारी मुस्कराहटो का,
इक ख़त लिखा है...मैंने
इक ख़त लिख रही हूँ मैं...
तुम्हारे होटों की वो मुस्कराहटे,
मैंने मिस कर दी....
जिनकी वजह मैं थी....लेकिन
मैंने उन्हें महसूस किया है...
वो पल जब पहली बार,
मेरे किसी ख्याल पर,
तुम मुस्कराए थे....
वो पहली बार जब...
तुम्हारे खाने के टिफिन में,
कुछ लाइनें लिख कर दी..
उन्हें पढ़ कर जो,
तुम्हारे होटों पर मुस्कान थी,
वो भी मैंने महसूस की थी....
वो पहली बार,
जब किसी सफ़र पर,
तुम्हारे कांधे पर सर रख कर...
मैं सो गयी थी..
तब भी चुपके से मुस्कराए थे तुम..
मेरी शरारतों पर..
मुझ पर गुस्सा कर,
अकेले में उन्ही पर मुस्कराए हो तुम..
वो भी महसूस की है मैंने...
मेरी लिखी पंक्तियों को,
अकेले में बार-बार पढ़ कर,
तुम्हे इतराते...मुस्कराते....
महसूस किया है मैंने....
मुझे ख़बर है कि..
मेरे इस मुस्कराहटो के,
ख़त को पढ़ते ही..
मन ही मन मुस्कराओगे तुम...
मैं देखूं न देखूं..
तुम्हारी मुस्कराहटो महसूस,
तो किया है मैंने....
तुम्हारी मुस्कराहटो का,
इक ख़त लिखा है...मैंने