Sunday 29 December 2013

मैं और भी निखरती रही........!!!

साल-दर-साल गुजरते रहे...                      
हम  गिरते रहे सम्हलते रहे, 
यादो के धागे टूटते रहे बंधते रहे.... 
उम्मीदो के सूरज छिपते रहे,
निकलते रहे...... 
कभी मंजिले दूर होती रही,
कभी सिमटती रही.... 
वक़्त के हालातो से मैं टूटती,
और बिखरती रही..... 
गुजर गया ये साल भी, 
गुजरता हर लम्हा मुझे और भी,
कठोर बनाता रहा.... 
इन्ही विपरीत हालातो से,
मैं और भी निखरती रही.... 
साल तो यूँ ही बदलते रहंगे, 
हमारे ठहरने से कुछ भी ठहरेगा नही...
पर हां हमारे बदलने से,
हालत बदल सकते है...... 
कब तक हूँ ही शिकवे शिकायते,
हम खुद से औरो से करते रहंगे.... 
इस बदलते वक़्त के साथ,
हमको भी कुछ बदलना होगा..... 
वक़्त के सांचे में खुद को ढालना होगा 
राहे कितनी भी मुश्किल हो,
मुश्किलो को हल करना होगा...... 
मैं खुद हर बार इन्ही उमीदो के सहारे,
लड़ने के लिए खड़ी करती रही....
इन्ही विपरीत हालातो से,
मैं और भी निखरती रही........!!! 

Saturday 21 December 2013

इक मुलाकात हुई है तुमसे.......!!!


अर्से बाद  मुलाकात हुई है...                                
तुमसे गुजरे हर लम्हे का हिसाब लेना था...तुमसे
पर अफ़सोस चाह कर भी कहाँ बात हुई है तुमसे....
परिचित कहाँ कुछ था हमारे बीच,
इक अजनबी जैसे कोई मुलाकात हुई है तुमसे....
नजरे कही ना मिल जाये..
कोई राज ना मेरा तुमको मिल जाये,
खुद को तुमसे छुपाते-छुपाते..
इक रहस्मयी मुलाकात हुई है तुमसे....
कुछ सवालो में उलझे जवाब थे तुम्हारे,
कुछ जवाबो में उलझे सवाल थे मेरे...
ऐसी ही कुछ उलझी-उलझी सी मुलाकात हुई है...तुमसे
वो एक दूसरे के सच को झूठ बताना,
वो एक दूसरे के सच को झूठ मान लेना....
आधी झूठी आधी सच्ची इक मुलाकात हुई है तुमसे.......
अर्से बाद  मुलाकात हुई है...
तुमसे गुजरे हर लम्हे का हिसाब लेना था...तुमसे
पर अफ़सोस चाह कर भी कहाँ बात हुई है तुमसे......!!!

Saturday 7 December 2013

जब तुम नही होते हो...!!!

कुछ कागज़ एक कलम..                                
कुछ स्याही लेकर फिर बैठी हूँ....
तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगी,
आज ये सोच कर बैठी हूँ....
लिखने के लिए कलम भी बेताब है,
पर कोई ख्याल आता ही नही.... 
तुमको जो छोड़ती हूँ तो,
ये शब्द मुझे छोड़ देते है 
क्यों एहसासो को शब्दो में बांध नही पाती हूँ,
जब तुम नही होते हो...
क्यों शब्दो में विश्वास नही ला पाती,
जब तुम नही होते हो...
क्यों जिंदगी तुमसे शुरू...
तुम पर ही खत्म होती है....
क्यों मुझे सवालो के जवाब नही मिलते,
जब तुम नही होते हो..... 
क्यों गुजरता है सिर्फ सफ़र मंजिल नही मिलती,
जब तुम नही होते हो.... 
ये तुम्हारे प्यार का असर है,
या मेरी जिद है कि खुद में तुमको शामिल करने की....
एक दिवार सी बना रखी है.....तुम्हारे नाम की 
खुद को कैद कर रखा है.......तुम्हारे प्यार में 
तुम तो कब के जा चुके हो... 
मेरी राहो से मेरी मंजिलो को छोड़ कर...
मैं ही हूँ तुमको छोड़ती ही नही,
छोड़ना चाहती ही नही.....
खुद को तुमसे बांध कर बैठी हूँ....
तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगी,
आज ये सोच कर बैठी हूँ.....!!!