Tuesday 6 March 2012

इस बार होली कुछ ऐसे ही खेलूंगी मैं.....!!!


इन रंगों से थोड़े रंग
खुशियों के लेकर,                                                
सबके जीवन में घोलूँगी मैं.....
इस बार होली कुछ ऐसे ही खेलूंगी मैं.....

भूल से दुःख दिया हो जो किसी को,
अपनी हर भूल की माफ़ी मांग लूँगी मैं....
रिश्तो में रंग ऐसे घोलूँगी मैं,
हर रिश्ते को एक धागे में बांध लूँगी मैं,
इस बार होली कुछ ऐसे ही खेलूंगी मैं.....

जो छूट गये हैं उनको भी साथ ले लूँगी मैं,
जो रूठ गये हैं उनको भी मना लूँगी मैं.... 
हर रंग को अपने रंग में मिला लूँगी मैं,
इस बार होली ऐसे ही खेलूंगी मैं.....

पल-पल जाते इन पलो से कुछ पल,
अपनी मुट्ठी में समेट लूँगी मैं...
नहीं भूलूंगी ये होली,
इन पलों में जी भर जी लूँगी मैं....
इस बार होली ऐसे ही खेलूंगी मैं.....






Saturday 3 March 2012

मैं ही नारी हूँ......!!!

मैं ही नारी हूँ....                                                                   
सदियों से मुझ पर बहुत कुछ 
लिखा गया, पढ़ा गया....
कहने वालो को भी देखा है मैंने.... 
सुनने वालो को भी देखा है मैंने.....
सोच में हूँ..........
क्यों मुझे इतना समझने....
समझाने की जरुरत पड़ी है दुनिया को?

क्या मैं अबला हूँ?
क्या मैं मजबूर हूँ?
क्या मैं कमजोर हूँ?
या सिर्फ इसलिए कि.....मैं नारी हूँ....

मैं नही समझ पायी कभी कि,
मैं तो संसार के हर घर में जीतीजागती मौजूद हूँ......
फिर मुझे समझने के लिये लोग घर के बाहर
किताबो को क्यों पढ़ रहे है....?
क्या मैं सिर्फ पढने,लिखने-सुनने का ही 
विषय बन कर रह गयी हूँ.....???????

मुझे महान देवी जैसी उपाधि देकर,
कुछ लोग एक दिन महिला दिवस तो मना लेते है,
पर घर में ही मौजूद नारी को ही भूल जाते है......

मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि "मैं भी नारी हूँ"
मुझे बड़े-बड़े सम्मान नही,
अपने परिवार का साथ और प्यार चहिये....
मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो....
त्याग और  समपर्ण सब मेरे कर्त्तव्य है...
इनके लिये कोई पुरूस्कार रहने दो.....

मैं क्या हूँ?
ये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ"..... 
सिर्फ इतना समझना है......