Monday 26 December 2011

एक नया रूप धर कर.........2012

                                
                           हर साल की तरह ये साल भी गुज़र गया,                                       कुछ दिल में  सिमट गया तो कुछ टूट कर बिखर गया...
कभी तो लगा की एक पल में साल गुज़र गया....
तो कभी इस साल के इक-इक पल को,
गुजरने में सदिया गुज़र गयी......

यूँ लगा की बहुत कुछ कहना सा बाकी रह गया,
वक़्त बंद मुट्ठी में रेत की तरह गुज़र गया...
पूरा साल गम और खुशी को संजोती और समेटती रही,
जो संजो न पायी वो मेरे शब्दों में बिखर गया...
कभी ठहरा हुआ सा लगा,
तो कभी दौड़ता हुआ ये साल गुज़र गया......

क्या खोया क्या पाया?
इसी कशमकश ये वक़्त.....पूरा साल गुज़रता गया.....
हम क्यों उदास होते है ये सोच कर कि,
जिन्दगी का एक साल बीत गया 
जब कि वक़्त कभी बीतता नही.....
वो तो हममे जीता है एक नया रूप धर कर..........!!!


Wednesday 14 December 2011

आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं...... !!!


तन्हा बैठी आज कुछ लिखने जा रही हूँ...                          
खुली आखों से कुछ सपने बुनने जा रही हूँ.....
सालो पहले कुछ सवाल किये थे खुद से,
उन सवालो के जवाब लिख रही हूँ मैं....
आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं...... 

जीवन की आपाधापी से दूर दिन वो बचपन के,
जब आखों में सिर्फ ख्वाब हुआ करते थे 
एक जादू की नगरी थी,परियो की बाते थी,
सच्ची न होकर भी वो बाते सच्ची लगती थी....
दिल में छिपे हैं कही अभी भी,
वो एहसास लिख रही हूँ मैं.....
आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं......


भला लगता था पूरी दुनिया को भूल,
खुद में खोये रहना..
उस छोटे से घर को ही सारा संसार समझना...
उन पलो,उन लम्हों में जिन्दगी है गुजरी,
कुछ खास लिख रही हूँ मैं.....
आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं.............


Monday 5 December 2011

रात सपने में तुम आये थे......!!!


रात सपने में तुम आये थे......!                                       
मैं कुछ कह रही थी तुमसे....
तुम सुन रहे थे मुझको,
बाते क्या की थी तुमसे.....
कुछ याद नही...सिर्फ  
मुझे देखती तुम्हारी वो आखें याद रह गयी.....
रात सपने में तुम आये थे......!


मैं चल रही थी तुम्हारे साथ,
गिर रही थी, संभल रही थी तुम्हारे साथ...
वो राहे कौन सी थी...वो सफ़र कौन सा था,
कुछ याद नही....सिर्फ
तुम्हारे हाथो को थाम चल रही थी,
टेड़ी-मेडी वो डगर याद रह गयी......
रात सपने में तुम आये थे.....!


थक कर बैठे थे किसी समंदर के किनारे,
तुम्हारे कंधे पर सर रख कर कुछ सोच रही थी....
क्या सोच रही थी,
कुछ याद नही.....सिर्फ
मुझे अपनी तरफ खींचती वो लहरे याद रह गयी.....
रात सपने में तुम आये थे....... !!!