हर साल की तरह ये साल भी गुज़र गया, कुछ दिल में सिमट गया तो कुछ टूट कर बिखर गया...
कभी तो लगा की एक पल में साल गुज़र गया....
तो कभी इस साल के इक-इक पल को,
गुजरने में सदिया गुज़र गयी......
यूँ लगा की बहुत कुछ कहना सा बाकी रह गया,
वक़्त बंद मुट्ठी में रेत की तरह गुज़र गया...
पूरा साल गम और खुशी को संजोती और समेटती रही,
जो संजो न पायी वो मेरे शब्दों में बिखर गया...
कभी ठहरा हुआ सा लगा,
तो कभी दौड़ता हुआ ये साल गुज़र गया......
क्या खोया क्या पाया?
इसी कशमकश ये वक़्त.....पूरा साल गुज़रता गया.....
हम क्यों उदास होते है ये सोच कर कि,
जिन्दगी का एक साल बीत गया
जब कि वक़्त कभी बीतता नही.....