Thursday 21 September 2017

मुझ तक पहुँच जाओगे...!!!

मैं आज किसी सुकून की तलाश में,
उन जगहों पर जा कर,
पहरों बिता आती हूँ,
जिस जगह तुम घंटो बैठा करते थे..
तुम्हारी खुशबू हर तरफ महसूस करती हूं,
ना जाने क्यों तुम्हारे ना होने में भी..
तुम्हारे होने का एहसास कराती है...
हर इक लम्हा जैसे तुम्हारी ही बाते करता हो,
मैं कहती कुछ नही,
फिर जैसे तुम मुझे सुन रहे होते हो....
बेवजह जो वक़्त गुजरता नही है...
इक तुम्हारे होने के एहसास के साथ,
पहरों गुजर जाते है...
शायद इस इंतजार में कि,
तुम भी कभी मुझे ढूंढते हुए...
मुझ तक पहुँच जाओगे...!!!

Friday 1 September 2017

मैं तो सिर्फ तुम्हारी होना चाहती हूं....!!!

मेरी-तुम्हारी सोच से कही परे था...
अमृता,साहिर और इमरोज़ को समझना...
इक ऐसी उलझन,
जिसे जैसे कोई सुलझाना ही ना चाहता हो..
बस इन तीनो की प्यार की,
गहराई की हदो के पार की,
परिभाषाएं समझना चाहते है...
जहां अमृता साहिर की होना चाहती है...
वही इमरोज़ अमृता के होना चाहते है....
कोई किसी को पाना नही चाहता,
सिर्फ उसी का हो जाना चाहता है....
अच्छा सुनो...
तुम क्या बनना चाहते हो,
अमृता,साहिर या इमरोज़..
तुम जो भी बनो...
मैं तो सिर्फ तुम्हारी होना चाहती हूं....!!!

कभी मैं यूँ ही सोचती हूँ....!!!

कभी मैं यूँ ही सोचती हूँ,
गर मैं तुम्हे ना मिलती तो कहां होती...
हाँ शायद खुले आसमान में,
उड़ रही होती....
कभी मैं यूँ ही सोचती हूँ,
गर मैं तुम्हे ना लिखती तो क्या होती...
हाँ शायद किसी कवि के ख्यालो की,
मैं भी कोई कविता होती...
[कभी मैं यूँ ही सोचती हूँ,
गर मैं तुम्हारी मंजिल ना होती,
तो क्या होती...
हाँ शायद किसी मुसाफ़िर का,
कोई भुला हुआ रास्ता होती...!!!