कभी मैं यूँ ही सोचती हूँ,
गर मैं तुम्हे ना मिलती तो कहां होती...
हाँ शायद खुले आसमान में,
उड़ रही होती....
कभी मैं यूँ ही सोचती हूँ,
गर मैं तुम्हे ना लिखती तो क्या होती...
हाँ शायद किसी कवि के ख्यालो की,
मैं भी कोई कविता होती...
[कभी मैं यूँ ही सोचती हूँ,
गर मैं तुम्हारी मंजिल ना होती,
तो क्या होती...
हाँ शायद किसी मुसाफ़िर का,
कोई भुला हुआ रास्ता होती...!!!
जीवन तो चलता रहता है और साथी मिलते रहते हैं , पर एक ख़ास साथी की तलाश हमेशा रहती है
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