मेरी-तुम्हारी सोच से कही परे था...
अमृता,साहिर और इमरोज़ को समझना...
इक ऐसी उलझन,
जिसे जैसे कोई सुलझाना ही ना चाहता हो..
बस इन तीनो की प्यार की,
गहराई की हदो के पार की,
परिभाषाएं समझना चाहते है...
जहां अमृता साहिर की होना चाहती है...
वही इमरोज़ अमृता के होना चाहते है....
कोई किसी को पाना नही चाहता,
सिर्फ उसी का हो जाना चाहता है....
अच्छा सुनो...
तुम क्या बनना चाहते हो,
अमृता,साहिर या इमरोज़..
तुम जो भी बनो...
मैं तो सिर्फ तुम्हारी होना चाहती हूं....!!!
रचना लाज़वाब ! उम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,
ReplyDeleteआभार ''एकलव्य"
सुन्दर भावात्मक अभिव्यक्ति एक प्रेमकथा का मर्म समेटे हुए। बधाई।
ReplyDeleteअमृता और इमरोज का प्रेम अलौकिक था !
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया रचना
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