Friday 26 July 2013

मेरा पागलपन सा लगता है..... !!!

वो तुम्हारा इन्तजार करना.....                     
सब कुछ छोड़ कर....तुम्हे याद करना....
खुद पर हँसती हूँ,
जब याद आता है......वो बचपना मेरा....
मेरा पागलपन सा लगता है.....
वो बचपना मेरा.......!

वो तुम्हारे इक कॉल का इन्तजार करना...
कही चूक ना जाऊ....तुमसे बात करने में,
वो हर  वक़्त फ़ोन को......
अपने पास रखना मेरा........
जाने कितनी बार.....
तुम्हारा नंबर
को फ़ोन पर देखा ....
और डायल भी किया....
पर तुम तक खबर पहुँचती.....
इससे पहले ही न जाने किस डर से,

वो कॉल को काट देना मेरा.......
मेरा पागलपन सा लगता है......
वो बचपना मेरा......................!!

वो हर वक़्त,हर पल,हर बात में,
तुम्हारा ही ख्याल आना.......
अकेले ही यूँ ही बैठे-बैठे,
तुमको याद करके......वो मेरा मुस्करा देना......
वो मेरा सजना सँवरना,
यूँ ही आईने में खुद को...
देख कर नजरे झुका लेना......
मेरा पागलपन सा लगता है.......
वो बचपना मेरा.....................!!!

वो तुमको देख कर भी......अनजान बनना,
वो तुमसे ही नजरे चुरा कर,
तुमको ही देखना मेरा......
वो तुम्हारी बाते न करके भी,
हर बात में तुम्हारा ही जिक्र लाना मेरा.......
वो बेफिक्र तुम्हारे ख्यालो में,
खोये रहना मेरा.......
मेरा पागलपन सा लगता है.........
वो बचपना मेरा.....................!!!!

Tuesday 23 July 2013

बहुत जादुवी है ये शब्द.....!!!

इन शब्दों को क्या कहूँ.....                               
कभी खुद के लिखे शब्द जख्म दे जाते है.......
जो हम कहते नही खुद से,
वो सब कुछ ये शब्द कह जाते है.......

कभी ख़ामोशी को शब्द मिल जाते है,          
तो कभी शब्दों में ख़ामोशी खो जाती है....
कुछ एहसासों को अर्थ देते-देते,
ये शब्द भी कभी खामोश हो जाते है.......

कभी हमारे मौन में,                              
यही शब्द चीखते है-चिल्लाते है....
तो कभी हम कुछ कहना भी चाहे,
तो शब्द नही मिल पाते है.........
कितनी ही बार हमारे वजूद को,
वयक्त करते शब्द निशब्द हो जाते है......

कभी ये शब्द खूबसूरती को समेट कर,
पन्नो पर बिखेर देते है......
कभी अतीत में लिपट कर,
इतिहास भी रच देते है.....
अपनी जिद पर आ जाये तो,
अनजानी-अनसुनी सी भाषा को भी,
खास बना देते है......

कभी ये शब्द सरल सीधे,
दिल में उतर जाते है.....
कभी ये कठोर पत्थर की तरह बिखर जाते है.......
कभी ये शब्द लबो की मुस्कान बनते है,
तो कभी आसुओं का सबब बनते है.....

बहुत जादुवी है ये शब्द.....
जिसने इन्हें समझा नही,
तो जीती हुई बाजी भी हारी है उसने.....
जिसने भी इनका जादू समझ लिया,
हारी हुई जंग भी जीती है उसने................!!!

Friday 19 July 2013

वो ख्वाबो वाला प्यार.....!!!


मुझे भी कभी मिल जायेगा.....             
वो ख्वाबो वाला प्यार.....
जिसमे जुबा कुछ नही कहती,
आखों में सारी बाते होती है.....
मुझे भी कभी मिल जायेगा
वो आखों ही आखों वाला प्यार.....

जिसमे हर आहट पर धडकने धडकती है,
किसी का नाम लेकर साँसे चलती है,
रात भर जागती आखों वाला प्यार.....
मुझे भी कभी मिल जायेगा.....
वो ख्वाबो वाला प्यार.....

जिसमे ढलती शामो के साथ,
किसी के होने का एहसास होता है....
कोई दूर हो कितना पर,
दिल के पास होता है.....
सामने होकर भी इशारों में,
होती बातो वाला प्यार......
मुझे भी मिल जायेगा,
कभी वो इशारो वाला प्यार.......
मुझे भी कभी मिल जायेगा.....
वो ख्वाबो वाला प्यार.....

जिसमे इतिहास के किस्से....और,
परियों की कहानिया होती है....
हर पल प्यार की निशानियाँ होती है
हो जाए मुझे भी वो किताबो वाला प्यार.....
मुझे भी कभी मिल जायेगा.....
वो ख्वाबो वाला प्यार.....!!

Friday 12 July 2013

बस तुम नही हो....!!!!!

वही सावन के झूले है....                                            
वही बरसता पानी है....
वही भिगोती बुँदे है...
बस तुम नही हो.....!!

वही टेढ़ी मेढ़ी राहे है....                                  
वही ठंड से कांपती हवाये है.....
वही तुम्हारे इन्तजार में थमी निगाहें है.....
वही बैचैन करती आहे है.....
बस तुम नही हो....!!

वही बिखरते हुए सपने है....
वही टूटी हुई कसमे है....
वही लोगो की बाते है...
वही दुनिया की रश्मे है...
बस तुम नही हो....!!

वही दूर तक फैला समंदर है....
वही आती हुई लहेरे है....
वही कभी न खत्म  होती राहे है....
वही ठहरी हुई मंजिले है...
बस तुम नही हो....!!

वही आधी-अधूरी बाते है....
वही नींदों से कोसो दूर उदास आखें है...
वही तुम्हारा नाम लेती मेरी साँसे है....
बस तुम नही हो....!!

वही तुममे ही डूबी मेरी भावनाये है.....
वही तुम्हारे लिए ही रची मेरी रचनाये है....
बस तुम नही हो....!!

Tuesday 2 July 2013

तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.....!!1

हर बार खुद को ढूंढ़ कर....                  
खुद से मिलाती हूँ मैं.....
तुम मिले थे....

कभी जिन राहो में...
फिर उन्ही राहो पर कही रुक ना जाऊं....
उन राहो से तुम्हारे निशानों को,
मिटाती हूँ मैं....
तुम अब फिर न मिलोगे कभी.....
साथ न दोगे कभी...
तुम अब कही नही हो....
हर बार ये सच...
खुद को बताती हूँ मैं.....समझाती हूँ मैं.....
जब कभी कोई ख्वाब सजाती हूँ मैं....
खुद को ही नही उसमे पाती हूँ मैं....
कितना भी ले आऊं खुद को......तुमसे दूर...
हर बार खुद से ही हार जाती हूँ मैं....
चलती हूँ....किसी भी राह...
तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.....