Tuesday 30 August 2016

सात फेरे....!!!

सात फेरो का साथ मेरा तुम्हारा,
सातो वचन याद थे हम दोनों को,
तुम साथ-साथ चल भी रहे थे,
राहे एक थी हमारी,मंजिल के करीब भी थे हम...
कैसे तुम इतने निर्मोही हो गये,
छोड़ कर मझधार में साथ,
छोड़ कर चले गये...
मुझे गुमान था उन सात फेरो पर,
वचन दिया था तुमने मुझे,
मंजिल पर पहुचँगे हम साथ-साथ,
मुझे गुमान था कि...
तुम जब तक मेरे माथे पर सजते रहे,
मैं सारी दुनिया को हरा सकती थी,
तभीे तुम्हे जीत लिया था मैंने,...
फिर भी तुमने छोड़ा है साथ मेरा,
तुम भूल गए वो सात फेरे,..पर,
मैं अब तुम्हारे हिस्से के,
वचन भी निभाऊंगी....
छोड़ गए हो तुम जो अपने पीछे,
उनकी ढाल बन जाउंगी,
अभी तक थी सिर्फ मैं ममता की मूरत,
अब पत्थर भी बन जाऊंगी...
तुम इंतजार करना मेरा,
मैं तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी करके,
तुमसे उन सात फेरो का,
हिसाब करने आऊंगी....!!!

Wednesday 24 August 2016

मैं तुम्हारी राधा बन जाऊं....!!!

मैं और तुम से कही उस पार,
क्यों ना तुम्हारी राधा बन जाऊं....
तुम जी लो सदियो की तरह मुझे,
मैं पा लूँ जन्मो-जन्मो की तरह तुम्हे...
क्यों ना तुम्हारी राधा बन जाऊं...
तुम रहो ना मेरे साथ जिंदगी भर,
तुम चलो ना मेरे साथ किसी सफर पर...
फिर भी मैं तुम्हारी मंजिल बन जाऊं,
क्यों ना मैं तुम्हारी राधा बन जाऊं....!!!

Tuesday 23 August 2016

और मैं तुम्हे जी लुंगी......!!!

मेरी डायरी से....
अचानक से गिरे तुम्हारे खत,
एकटक जैसे मुझे देखते रहे,
खतो में लिखे तुम्हारे लफ्ज़,
बिना खुले जैसे मुझे पुकारते रहे,
मैं तुम्हे पढ़ लूँ,जी लूँ उन लम्हो को,
जो तुमने मुझे इन खतो में भेजे थे....
पर ना जाने क्यों आज भी,
मैं नही पढूंगी....
यूँ ही मोड़ कर खतो को रख दूंगी,
उसी डायरी में....
इस इन्तजार में....
कि इक दिन तुम आओगे,
इन खतो को पढोगे...
और मैं तुम्हे जी लुंगी......!!!

Monday 22 August 2016

कोई उम्र तय की है क्या तुमने प्यार की...!!!

कोई उम्र तय की है क्या तुमने प्यार की...
क्यों अब इंतजार....
तुम्हारी आँखों में नही दिखता,
क्यों अब वो मुझ पर एतबार,
तुम्हारी बातो में नही मिलता,
क्यों अब तुम रंग,
कैनवास पर नही उतारते,
क्यों अब तुम लफ़्ज़ों को,
कविता में नही उतारते,
क्यों अब तुम ढलती शामो की,
स्याह रातो की यादे नही दुहराते...
कोई उम्र तय की है l,
क्या तुमने प्यार की...
कि अब हम साथ चलते है,
तो भी हमारी उँगलियाँ टकराती नही,
तुम बढे चले जाते हो,
ना जाने किस मंजिल की तरफ,
कि अब तुम्हारी नजर,
मेरी राहो पर जाती नही है...
बच कर गुजरती तुम्हारी नजरे,
मेरी नजरो इस सवाल पर ...
कोई उम्र तय की है,
क्या तुमने प्यार की...!!!

Thursday 18 August 2016

तुम्हारे एहसास को...!!!

रात बेवक़्त जब नींद खुलती है,
मैं तुम्हारे ख्यालो की स्याही से,
आँखों के रत-जगे लिख देती हूँ..
हवा का कोई झोंका,
जब दरवाज़े का सांकल खटखटाती है
मैं तुम्हारे आने की आहट लिख देती हूँ....
अधखुली आँखों से जब अपने,
साथ जागते चाँद को देखती हूँ,
बाते सारी उसे अपने दिल की कह देती हूँ.....
तुम नही रहते हो मेरे आस-पास,
फिर भी तुम्हारे एहसास को,
हर पल मैं जी लेती हूँ....!!!

Friday 12 August 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-27

241.
हमारे प्यार के गवाही देंगे,ये पल,
लम्हे,शाम-ओ-सहर...
गवाह बनेगें..वो ख्वाब की रात,
वो मुस्कराती सुबह,वो दिन के पहर....

242.
सुनो आहुति....
तुम्हारे साथ वो सुबह जो नींद में होकर भी तुम्हे बंद पलकों से चुपके से देख लेना,इस डर से कि कही मैं तुम्हारे साथ हूँ,ये कोई सपना तो नही...तुम पास हो इस यकीन से मुस्कराना...कि मेरे सपने भी सच होते है..

243.
मैं इसलिये नही लिखती कि,
मुझे लिखना अच्छा लगता है...
मैं इसलिए लिखती हूँ कि,
तुम्हे पढ़ना अच्छा लगता है.....

244.
एहसास शब्दों में बयाँ होते तो बताती तुमको,
इन बूंदों संग मैं भी लिपट जाती तुमसे...

245.
खामोशियो से खामोशियों का,
पता लगाना जानते हैं ........
वो जितना कह भी नही पाते,
उतना हम खामोश होना जानते हैं ...!

246.
नही भाती तुम्हारे चेहरे पर उदासियां,
मुझे अंदर से तोड़ती है तुम्हारी खामोशियाँ.....

247.
हाँ सच है तुम्हारे लिये आँखो में आँसू है...
इक सच और भी,
ये आँसू तुम्हारी वजह से नही है......

248.
तुम्हारी ख़ामोशी जो टूटती नही है....
मुझे तोड़ती जाती है....

249.
दो ही वजह है मेरे लिखने की....
तुम्हारे लिये ही मैं लिखती हूँ...
और तुम ही हो जो..
मुझसे लिखवा लेते हो....

250.
तूफानों से कह दो कि आ जाये जैसे आना हो,
मैंने भी उनका हाथ थाम कर रखा है....

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-26

231.
हमारी जिंदगी हम पर ही बोझ तब हो जाती है,
जब हम किसी इक शख्स को,
अपनी जिंदगी मान लेते है...
और उस शख्स के लिए हम...
महज उसकी जिंदगी का हिस्सा होते है...

232.
कभी-कभी लगता है कि...
मैं तुम्हे समझ ही नही पायी,जिन एहसासों को लगता था,
तुम बिना कहे समझोगे,
वो कह कर भी तुम्हे समझा ना पायी.....

233.
जब तुम प्यार को समझना तो,
मुझे भी बता देना,....
जब कभी बेपरवाह, बेफिक्री से चाहना जीना,
मुझे हमसफ़र अपना बना लेना....

234.
मेरी कविताओं में तुम हो,या यूँ कहूँ की,
तुम से ही मेरी कविताएं है....

235.
कभी-कभी सब कुछ होते हुए भी...
कितना खालीपन सा लगता है....

236.
गर तुम कहते हो,मेरी कविताओं को...
तुम्हे पढ़ना अच्छा लगता है...
यकिनन मुझे भी....
तुम्हे कविताओं में लिखना अच्छा लगता है...

237.
तुम हो तो मुझे सभी पढ़ लेते है
मुस्कराते हुए....मैं तुम्हारी दीवानी हूँ...कह देते हैे...

238.
अगर तलाश कर सको तो मेरे शब्दों में खुद को....
तो मेरे शब्दों को अर्थ मिल जायेंगे....
कविता कभी मैंने लिखी ही नही...
लिखनी आती भी नही......सिर्फ शब्द है.......और इन शब्दों मैं नही सिर्फ 'तुम' हो.........

239.
आई है मेरा प्यार बन कर ये घटायें,
तुम जो इक इशारा करो तो ये बरस जाये..

240.
मुझे लगे ना किसी की नजर, कुछ इस तरह आँखो में,
रह जाओ नजर बन कर....

Wednesday 10 August 2016

वही पन्ने पलटे है....!!!

वक़्त ने आज फिर वही पन्ने पलटे है,
वही तुम्हारे नाम पर,
फड़फड़ा कर रुक गये है..
फिर वही कहानी जो किसी मोड़ पर आकर l,
हम दोनों छूट गये थे....यकीन था.
फिर मिलेंगे हम दोनों,
मिले भी हम ऐसे...
नदी के दो छोर हो जैसे....
कहानी वही थी,चहेरे वही थी...
किरदार बदल गए थे....
वक़्त ने आज फिर वही पन्ने पलटे है,
वही तुम्हारे नाम पर फड़फड़ा कर रुक गये है..
तुमने कुछ पूछा नही,
हमने भी कुछ छुपाया नही....
राज सभी दिलो के हमने,
आखों अपनी आँखों में पढ़ लिये थे,
नजरे तो वही थी...
बस समझने के नजरिये बदल गए थे....
वक़्त ने आज फिर वही पन्ने पलटे है,
वही तुम्हारे नाम पर फड़फड़ा कर रुक गये है..

Wednesday 3 August 2016

फुरस्तो का प्यार था हमारा....!!!

तुमने फुरस्तो में समझ मुझे,
फुरस्तो में पढ़ा मुझे,
मैं हमेशा अपने लिए,
तुम्हारे वक़्त का इन्तजार करती रही,
कि क्या कहूँ की....
फुरस्तो का प्यार था हमारा....
मैं हर लम्हे में तुम्हे जीती रही,
तुम फुर्सत से वक़्त निकालते रहे,
मैं तुम्हे ख्वाइशें अपनी बताना चाहती थी,
तुम्हारा हाथ थाम कही दूर,
निकल जाना चाहती थी,
तुम फुरस्तो में इन्हें टालते रहे है...
कि क्या कहूँ की...
फुरस्तो का प्यार था हमारा....
मैं भीड़ में तुम्हारी आँखों में,
अपने लिये प्यार देखना चाहती थी,
बहुत उलझनों में भी,
तुम्हारे होठो से....
अपना नाम सुनना चाहती थी....
पर तुम मेरे लिये...
अपनी फुरस्तो का प्यार तलाशते रहे,
मैं भागती रही जाते हुए,
वक़्त को थामने के लिये,
तुम हमारे प्यार को फुरस्तो में टालते रहे....
कि क्या कहूँ की फुरस्तो का प्यार था हमारा....