वक़्त ने आज फिर वही पन्ने पलटे है,
वही तुम्हारे नाम पर,
फड़फड़ा कर रुक गये है..
फिर वही कहानी जो किसी मोड़ पर आकर l,
हम दोनों छूट गये थे....यकीन था.
फिर मिलेंगे हम दोनों,
मिले भी हम ऐसे...
नदी के दो छोर हो जैसे....
कहानी वही थी,चहेरे वही थी...
किरदार बदल गए थे....
वक़्त ने आज फिर वही पन्ने पलटे है,
वही तुम्हारे नाम पर फड़फड़ा कर रुक गये है..
तुमने कुछ पूछा नही,
हमने भी कुछ छुपाया नही....
राज सभी दिलो के हमने,
आखों अपनी आँखों में पढ़ लिये थे,
नजरे तो वही थी...
बस समझने के नजरिये बदल गए थे....
वक़्त ने आज फिर वही पन्ने पलटे है,
वही तुम्हारे नाम पर फड़फड़ा कर रुक गये है..
Wednesday, 10 August 2016
वही पन्ने पलटे है....!!!
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-08-2016) को "भाव हरियाली का" (चर्चा अंक-2432) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'