तुम्हारे साथ जब मैं चलती हूँ,
राहे कहाँ याद रहती है मुझे,
गालिया भी मैं भूल जाती हूँ..
निगाहे तो सिर्फ अपनी,
मंजिल पर यानि,
तुम पर ठहरी रहती है..
किन राहो से पहुँची हूँ,
इसकी परवाह कहाँ करती हूँ....
तुम्हारे साथ जब सफर पर मैं रहती हूँ...
Saturday 24 June 2017
जब सफर पर मैं रहती हूँ...!!!
Friday 23 June 2017
यूँ ही इक पल की कहानी.....!!!
उस दिन जब मैं तुमसे नाराज हो रही थी की तुमको इतने काल की तो जवाब क्यों नही दिया,कितनी इमरजेंसी थी पता है तुमको....और तुमने बहुत बेबाकी से मुझसे कहाँ पचास बार फोन करोगी,तो इमरजेंसी में भी नही उठेगा...मैं तो जैसी अवाक् सी रही गयी तुम्हारे इस जवाब से,सोच में पड़ गयी की मैं कौन हूँ तुम्हारे लिए...उस दिन जिंदगी का इक बहुत बड़ा सबक तुमने मुझे दिया था,कि फ़ोन कौन कर रहा है वो अहमियत नही रखता,कितनी बार किया गया बस ये जरुरी है....मैं कितनी पीछे थी तुम्हारी इस सोच से तुम कितने आगे थे मुझसे...तभी मुझे याद आया मेरी इक सहेली जो तभी किसी को काल करती है जब उसको जरुरत होती है,वो कुछ भी नही कर रही होती है फिर भी कहती है बहुत बिजी हूँ...वो कहती है कि किसी को अपना वक़्त दो तो ये जताओ की कितनी मुश्किल से तुमने उसके लिए वक़्क्त निकाला है...तब तो तुम्हारी कोई अहमियत होगी,नही तो सामने वाला तुम्हे बेवकूफ समझेगा...मैंने भी तो कभी तुम्हे ये नही जताया कि मैं तुम्हारे लिए वक़्त बड़ी मुश्किल से निकाला है,बल्कि मेरा तो सारा वक़्क्त ही तुम्हारे लिए था...मैं कभी तुम्हे मना कर ही नही पायी...या यूँ कहो की जिंदगी में मैंने तुम्हे सबसे पहले रखा,तुम्हारे लिए ही वक़्त,तुमसे ही हर बात...मैंने तो बारिश की बूंदों की बात हो,या चांदनी रात हो..सबके बारे में तुमसे ही बात की...पर मुझे नही पता था,प्यार में दिमाग से काम लेना होता..
#यूँहीइकपलकीकहानी#
Monday 19 June 2017
मेरी और तुम्हारी...!!!
हर कोई पढ़ लेता है आँखे,
मेरी और तुम्हारी...
हम बताये या ना बताये,
लोग खुद ही कितने किस्से गढ़ लेते है...
मेरे और तुम्हारे....
हम मुस्करा भी दे,
गर इक-दूजे को देख कर,
कितने कहकहे बना लेते है..
मेरे और तुम्हारे...
मैं कुछ लिख भी दूँ,
तो मेरे शब्दों में अंदाज़ तुम्हारे पढ़ लेते है...
मैं लिखती तो सिर्फ कविता हूँ,
उनमे लोग कहानियां गढ़ लेते...
मेरी और तुम्हारी....