हर कोई पढ़ लेता है आँखे,
मेरी और तुम्हारी...
हम बताये या ना बताये,
लोग खुद ही कितने किस्से गढ़ लेते है...
मेरे और तुम्हारे....
हम मुस्करा भी दे,
गर इक-दूजे को देख कर,
कितने कहकहे बना लेते है..
मेरे और तुम्हारे...
मैं कुछ लिख भी दूँ,
तो मेरे शब्दों में अंदाज़ तुम्हारे पढ़ लेते है...
मैं लिखती तो सिर्फ कविता हूँ,
उनमे लोग कहानियां गढ़ लेते...
मेरी और तुम्हारी....
बहुत सही.. सचमुच लोग कहानियां गढ़ने लगते हैं. सुंदर रचना 👏 👏 👏
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