Friday 23 June 2017

यूँ ही इक पल की कहानी.....!!!


उस दिन जब मैं तुमसे नाराज हो रही थी की तुमको इतने काल की तो जवाब क्यों नही दिया,कितनी इमरजेंसी थी पता है तुमको....और तुमने बहुत बेबाकी से मुझसे कहाँ पचास बार फोन करोगी,तो इमरजेंसी में भी नही उठेगा...मैं तो जैसी अवाक् सी रही गयी तुम्हारे इस जवाब से,सोच में पड़ गयी की मैं कौन हूँ तुम्हारे लिए...उस दिन जिंदगी का इक बहुत बड़ा सबक तुमने मुझे दिया था,कि फ़ोन कौन कर रहा है वो अहमियत नही रखता,कितनी बार किया गया बस ये जरुरी है....मैं कितनी पीछे थी तुम्हारी इस सोच से तुम कितने आगे थे मुझसे...तभी मुझे याद आया मेरी इक सहेली जो तभी किसी को काल करती है जब उसको जरुरत होती है,वो कुछ भी नही कर रही होती है फिर भी कहती है बहुत बिजी हूँ...वो कहती है कि किसी को अपना वक़्त दो तो ये जताओ की कितनी मुश्किल से तुमने उसके लिए वक़्क्त निकाला है...तब तो तुम्हारी कोई अहमियत होगी,नही तो सामने वाला तुम्हे बेवकूफ समझेगा...मैंने भी तो कभी तुम्हे ये नही जताया कि मैं तुम्हारे लिए वक़्त बड़ी मुश्किल से निकाला है,बल्कि मेरा तो सारा वक़्क्त ही तुम्हारे लिए था...मैं कभी तुम्हे मना कर ही नही पायी...या यूँ कहो की जिंदगी में मैंने तुम्हे सबसे पहले रखा,तुम्हारे लिए ही वक़्त,तुमसे ही हर बात...मैंने तो बारिश की बूंदों की बात हो,या चांदनी रात हो..सबके बारे में तुमसे ही बात की...पर मुझे नही पता था,प्यार में दिमाग से काम लेना होता..
#यूँहीइकपलकीकहानी#

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (25-06-2016) को "हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी" (चर्चा अंक-2649) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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