Tuesday 10 October 2017

बिखरती चली गई...!!!

प्यार इक शब्द...
जो दिल से दिल को जोड़ता है,
बस इतना ही तो मैं समझती थी..
कोई होता है जो,
जाने कब कहाँ मिल जाये,
कब वो किसी के ख्वाबो-ख्यालो,
पर छा जाये,
बस इतना ही तो जानती थी,
समझती थी मैं प्यार को...
तुम्हारे प्यार में यूं ही गहराइयों में,
उतरती चली गयी..
बहुत सीधी सी जो दिखती थी,
जो राहे तुम तक पहुँचने की,
जाने कब उलझती चली गयी...
मैं प्यार को अपने शब्दो से,
तुम तक पहुँचाना चाहती थी..
तुम्हारे शब्दो को घाव से,
मैं किसी असहनीय दर्द की खाई में,
धसती चली गयी....
तुम्हे मुस्कराने की वजह ढूंढती रही हर पल,
हर पल के साथ,
मै हँसी अपनी खोती चली गयी....
तुम्हारा साथ देने की जिद में..
मैं खुद को छोड़ कर,
तुमसे जुड़ती चली गयी...
तुम छोड़ कर जब चले गये..
मैं तब हर पल टूट कर,
बिखरती चली गई...!!!

Sunday 1 October 2017

तुम्हारे साथ जीना चाहती थी....!!!

मुझे हमेशा सरप्राइज पसंद थे,
और तुम हमेशा प्लानिंग में लगे रहते थे...
मैं तुम्हारे होठो पर इक मुस्कान के लिए,
कोई मौका नही गवाती थी,
गर वजह ना भी हो तो वजह बना लेती थी..
और तुम मुस्कराने में भी सोचते थे...
बहुत अलग थे हम दोनों...
बिल्कुल अलग...
मुझे प्यार की नादानियां पसंद थी,
तुम समझदारियो में उलझे रहे...
मैं बेवजह हँसना,
खिलखिलाना चाहती थी,
और तुम मुझे तहजीब और
अदब समझाते रहे...
मैं जिंदगी की मुश्किलें,
मुस्करा कर आसान करना चाहती थी,
तुम आसान जिंदगी को,
अपनी खामोशियो से,
मुश्किल बनाते चले गये...
मैं जिंदगी तुम्हारे रंग में,
ढालना चाहती थी और तुम,
मुझे बदलते चले गये...
अब क्या कहूँ तुमसे....बाबुमुशाय....
जिंदगी लम्बी नही....बड़ी होनी चाहिए....
मैं जिंदगी का हर पल सिर्फ गुजारना नही,
तुम्हारे साथ जीना चाहती थी....!!!