Thursday 28 July 2016

बरबस तुम्हारी याद आ जाती है...!!!

जब ना तब ये बारिश बरस जाती है...
इसका क्या ये तो.....
बरस के गुजर जाती है.
पर बारिश के साथ ही...
बरबस तुम्हारी याद आ जाती है...
बरसती बुँदे जमीं की प्यास तो बुझा देती,
सोंधी खुश्बुओं को बिखेर कर,
बुँदे गुजर जाती है...
पर इन बूंदो के साथ रेत पर तपती,
तुम्हारी यादे ठहर जाती है....
बिजलियाँ चमकती है...
बादल गरजते हुए....
हवाओं के साथ गुजर जाते है..
पर ये गरजते बादलो की,
गड़गड़ाहट के साथ तुम्हारी यादे,
धड़कनो में धड़कती ठहर जाती है...

Monday 18 July 2016

जिंदगी को जी भर कर जीना है....!!!

आज फिर तुम नाराज हो गये,
मेरे बचपने पर,मेरा तुमसे मिलने को कहना,
तुम्हे मेरी फालतू की जिद ही तो लगती है,
और तुम तो हर काम सोच के समझ कर,
सही वक़्त के आने पर करते हो,...,
और यही उम्मीद तुम मुझसे भी रखते हो,
समझदारी की...
कि किसी तरह की कोई जिद न करू,
तुम्हारी तरह हर चीज सोच समझ कर ही करू...
बहुत कोशिश की कि मैं समझदार बन जाऊं,
छोड़ दू ये बचपना ये जिद करना...
पर नही कर पायी..
क्यों कि समझदारी से प्यार नही किया जाता,
मैं नही समझा पायी तुम्हे कि,
ये छोटे-छोटे लम्हे ही है,
जो हमारी जिंदगी में...
जिन्दा होने का एहसास करवाते है...
नही तो सोच-समझ कर तो बस,
जिंदगी गुजारी जाती है....
जिंदगी जी नही जाती...
अब तुम ही बताओ की,
तुम्हे जिंदगी गुजारनी है,
या जिंदगी को जी भर कर जीना है....

Sunday 17 July 2016

इक खूबसूरत शाम...

इक खूबसूरत शाम...
तुम्हारे साथ इक कप कॉफ़ी,
जगजीत जी की वही गजल..."बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी"...कुछ ना कह कर भी इक-दूसरे को देख कर मुस्कराती हमारी आँखे....

इक खूबसूरत शाम...
तुम्हारे साथ इक लॉन्ग ड्राइव..किसी पुरानी फ़िल्म का वो गाना..."लम्बी सी इक गाड़ी में मैं तुमको ले कर जाऊंगा"...गाड़ी के ब्रेक को थामे तुम्हारे हाथ पर अपना हाथ रखना..कुछ इस तरह कि तुम्हे थाम लुंगी हर मोड़ मैं....कुछ ना कह भी इक-दूसरे को देख कर मुस्कराती हमारी आँखे...

इक खूबसूरत सी शाम...
तुमसे अपनी कोई कविता को सुनने की जिद..
मेज पर बिखरी हो,अमृता इमरोज़ की प्यार से महकती किताबे...तुमने उन्ही कविताओं से कुछ पढ़ा था,"और जब तू आ जाती है तो जिंदगी ग़ज़ल हो जाती है"तुम्हारे लब्ज़ों में कही गयी ये शब्द कि जैसे ये सिर्फ मेरे लिये तुमने लिखे हो.. जब इन्हें मैं अपने जहन में दोहराती हूँ तो हर शाम सिंदूरी हो जाती है...

Friday 15 July 2016

वो बारिश में भीगती मैं, वही बारिश में भीगते तुम थे....

वो बारिश में भीगती मैं,
वही बारिश में भीगते तुम थे....
तेज बारिश की आवाज़ थी,
खामोश से थे हम,
अल्फ़ाज़ हमारे गुम थे....
चमकती बिजिलियाँ,गड़गड़ाते बादल थे,
जोर से धड़कती हमारी धड़कने थी..
हम इक- दूजे में गुम थे....
वो बारिश में भीगती मैं,
वही बारिश में भीगते तुम थे....
बारिश में भीगती,आपस में उलझती थी,
उंगलियां हमारी...
वो झुकती नजरे थी मेरी,
वो मुझे छुती अखियाँ तुम्हारी..
सारा शहर हमे देख रहा था,
हम इक-दूजे की आखों में गुम थे....
वो बारिश में भीगती मैं,
वही बारिश में भीगते तुम थे....

Tuesday 12 July 2016

मेरी कविताओं में उतरते हो....!!!

तुम जब शब्द बन कर,
मेरी कविताओं में उतरते हो,
मेरे जहन की गहराइयों से गुजरते हो......
तुम जब भी बारिश की बुँदे,
बन कर मुझ पर बरसते हो,
भीगे हुए लफ़्ज़ों में...
मेरी कविताओ में उतरते हो,..
तुम जब कभी पुरवाई के ठन्डे झोकों में,
मुझे छु कर गुजरते हो,
ठिठुरते एहसासो से,
मेरी कविताओ में उतरते हो..
तुम जब कभी पूरनमासी के चाँद बन कर,
मुझे देखते हो...
इठलाते-झिझकते अंदाज़ से,
मेरी कविताओ में उतरते हो....
तुम जब कभी अमावस्य की रातो में,
मुझे ढूंढ़ते हो...
जुगनुओं की तरह,
मेरी कविताओं में उतरते हो....
तुम जब कभी...
सूरज की पहली किरण बन कर,
मेरी पलको को चूमते हो,
सर्दियों की खिली धुप से..
मेरी कविताओं में उतरते हो....
तुम जब कभी....
मेरी कविताओं को पढ़ते हो,
मेरी खामोशिया 'तुम' बन कर,
मेरे कागज़ों पर उतरती है..
तुम जब शब्द बन कर,
मेरी कविताओं में उतरते हो,
मेरे जहन की गहराइयों से गुजरते हो......

Sunday 3 July 2016

बारिश की बूंदों के साथ....!!!

जाने कितनी बार,
बारिश की इन बूंदों के साथ,
हम-तुम खेले है...
इन बूंदों के लिये ही,
मिले और बिछड़े है...
तुम्हारी जिद इन बूंदों को पकड़ लेने की,
मेरी जिद इन बूंदों में भीग जाने की...
ख्वाइशें फिर चाहे अलग हो,
बारिश की बूंदों के साथ,
खेलने की चाह इक थी....

गली के उस मोड़ पर......!!!

आज भी गली के उस मोड़ पर,
वो आम का पेड़ खड़ा है,
मेरे साथ वो भी....
तुम्हारे आने के इंतजार में,
तुम्हारी राह देखता है...
जिसके पीछे हम-तुम,
छुप्पन-छुपाई खेलते थे.....
जिसकी डाली पर,
सावन के झूले पड़ते थे,
और तुम मुझे झुलाते थे..,
ना जाने मैंने कब तुम्हे ढूँढने के लिये,
मैंने अपनी आँखे बंद की,
तुम यूँ छुप गये कि...
आज भी तुम्हे नही ढूंढ़ नही पाई...
वो झूला आज भी झूलता है,
ऐसे कि जैसे तुम उसे झूला रहे हो....
आज भी गली के उस मोड़ पर खड़े,
उस पेड़ के पास से जब मैं गुजरती हूँ,
कुछ देर अपनी आँखे बंद,
करके तुम्हे ढूँढती हूँ...