वो बारिश में भीगती मैं,
वही बारिश में भीगते तुम थे....
तेज बारिश की आवाज़ थी,
खामोश से थे हम,
अल्फ़ाज़ हमारे गुम थे....
चमकती बिजिलियाँ,गड़गड़ाते बादल थे,
जोर से धड़कती हमारी धड़कने थी..
हम इक- दूजे में गुम थे....
वो बारिश में भीगती मैं,
वही बारिश में भीगते तुम थे....
बारिश में भीगती,आपस में उलझती थी,
उंगलियां हमारी...
वो झुकती नजरे थी मेरी,
वो मुझे छुती अखियाँ तुम्हारी..
सारा शहर हमे देख रहा था,
हम इक-दूजे की आखों में गुम थे....
वो बारिश में भीगती मैं,
वही बारिश में भीगते तुम थे....
Friday, 15 July 2016
वो बारिश में भीगती मैं, वही बारिश में भीगते तुम थे....
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुषमा जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
आपके लेख https://sushma-aahuti.blogspot.in/ पर देखे। खास बात ये है की आपके लेख बहुत ही अच्छे एवं तार्किक होते हैं।
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प्रतीक सिंह
(शब्दनगरी संगठन)
शब्दनगरी
0512-6795382
info@shabdanagari.in
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lovely... romantic
ReplyDeletebeautiful...
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