Saturday 28 January 2012

तुम्ही को ढूढती हूँ मैं........!!!


हर किसी में तुम्ही को ढूढती हूँ मैं....                                   
मिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......

तुम्हारे ख्याल,तुम्हारे एहसास
इस तरह लिपटे है मुझसे.....
कि किसी और का
एहसास मुझे छूता ही नही......
हर मोड़ हर राह कि....
मंजिल तुम्ही को देखती है.....मैं....
तुम्हारे साथ जीती हूँ मैं....
तुम गुज़रते हो जिस राह से,
उन्ही कदमो के निशाँ पर चलती हूँ मैं.......

जब भी धड़कने धड़कती है मेरी .....
हर धड़कन में तुम्हे महसूस करती हूँ मैं.....
हर खुशी,हर गम में, 
अपने हर सवाल का जवाब
तुमसे ही पूछती हूँ मैं.....
तुम कहो न कहो तुम.....
मुझे चाहते हो....
तुम्हारी आखों में पढ़ सकती हूँ मैं..........

जब कलम उठाती हूँ मैं,
तुम को ही सोचती हूँ मैं,
तुम्ही से रूठती हूँ,
तुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं.....
हर दुआ में तुम्हारी ही दुआ मांगती हूँ......
हर बार तुम्हारे ही सजदे में सर झुकाती हूँ मैं......!!!

Friday 20 January 2012

तुम पर विश्वास करती हूँ.......!!!


मैं निष्पक्ष,निस्वार्थ हमेसा तुम्हारे साथ रहती हूँ.....             
इसलिए नही कि ...मैं तुमसे प्यार करती हूँ........
बल्कि इसलिए....तुम पर विश्वास  करती हूँ....

मैं तुम्हारी हर बात पर,
तुम्हारे किये हर फैसले के साथ रहती हूँ.....
इसलिए नही कि...मैं तुमसे प्यार करती हूँ.....
बल्कि इसलिए....तुम  कभी गलत नही होते हो....
मैं तुम पर विश्वास करती हूँ......

मोड़ चाहे कोई भी हो.....हालात चाहे कोई भी हो.....
मुश्किले हो.... नाकामिया मिले चाहे जितनी .....
मैं तुम्हारे साथ रहती हूँ....इसलिए नही कि...
मैं तुमसे प्यार करती हूँ....
बल्कि इसलिए.....तुम्हे जीतना आता है.... 
मैं तुम पर विश्वास करती हूँ.....

मुझे विश्वास है कि....तुम समझोगे एक दिन,
फर्क प्यार और विश्वास में....
खुद से अधिक जब हम किसी पर विश्वास करते है....
तभी हम उससे प्यार करते है.........

Tuesday 10 January 2012

एक किताब में बंद है कहीं .......!!!


मेरे ख्वाब मेरी ख्वाईशे                                           
एक किताब में बंद है कही.......

यह जो दिख रही है खुशिया,
मेरे आस-पास वो भी मेरी है नही ......
मेरे होटों की हसीं भी....
एक किताब में बंद है कहीं ..... 

मुझे प्रस्तुत करती........
ये पंक्तिया भी मेरी है नही .....
मैं तो खुद एक किताब में बंद हूँ कहीं ..........

कब से इंतज़ार कर रही हूँ की.....
कोई पढ़ेगा मुझे 
इस इंतज़ार में खुद को अभी तक पढ़ा ही नही.........!!!

Wednesday 4 January 2012

सागर की अथाह गहराइयो में........!!!



आज मैं उतर जाना चाहती हूँ....                                    
सागर की अथाह गहराइयो में....
मैं  ढूढ लेना चाहती हूँ.... वो शब्द.....
जो खुद में समेट ले मेरी तन्हाइयो को........ 






आज मैं छू लेना चाहती हूँ ....आसमान की उचाईयो को,
मैं थाम लेना चाहती हूँ....मुझसे भागती मेरी परछाइयो को....


आज मैं बुन लेना चाहती हूँ....खुबसूरत कहानियो को......
मैं मिटा देना चाहती हूँ...जिन्दगी की वीरानियो को.......


आज मैं सिमट जाना चाहती हूँ....प्यार की सरगोशियो में....
मैं शब्दों में पिरो देना चाहती हूँ ..... अपनी खामोशियो को......