हर किसी में तुम्ही को ढूढती हूँ मैं....
मिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......
इस तरह लिपटे है मुझसे.....
कि किसी और का
एहसास मुझे छूता ही नही......
हर मोड़ हर राह कि....
मंजिल तुम्ही को देखती है.....मैं....
तुम्हारे साथ जीती हूँ मैं....
तुम गुज़रते हो जिस राह से,
उन्ही कदमो के निशाँ पर चलती हूँ मैं.......
जब भी धड़कने धड़कती है मेरी .....
हर धड़कन में तुम्हे महसूस करती हूँ मैं.....
हर खुशी,हर गम में,
अपने हर सवाल का जवाब
तुमसे ही पूछती हूँ मैं.....
तुम कहो न कहो तुम.....
मुझे चाहते हो....
तुम्हारी आखों में पढ़ सकती हूँ मैं..........
जब कलम उठाती हूँ मैं,
तुम को ही सोचती हूँ मैं,
तुम्ही से रूठती हूँ,
तुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं.....
हर दुआ में तुम्हारी ही दुआ मांगती हूँ......
हर बार तुम्हारे ही सजदे में सर झुकाती हूँ मैं......!!!
:))
ReplyDeleteओह!!! कितना चाहती हूँ मैं तुम्हें
ReplyDeleteतुममे ही जीती हूँ
और तुमसे ही जीती हूँ मैं...
एहसास के समंदर में डूबती उतरती रचना ..खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकभी कभी किसी एक में ही हम जीवन का सार पा जाते हैं...वो कोई इंसान हो या फिर ईश्वर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..
पढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ
ReplyDeleteकितनी सरलता से व्यक्त कर लेती हैं गहरी बातों को सुषमा जी
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
pyar par bahut hi khoobsurat prastuti......!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteहर बार तुम्हारे ही सजदे में सर झुकाती हूँ मैं .....बहुत सुंदर हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteअहसासो की सुन्दर अभिव्यक्ति..आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास
ReplyDeleteभावों की सरल एवं सशक्त अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteवैसे अग्रिम क्षमा याचना के साथ...एक लघु टिप्पणी.....
मेरे बारे में कहा, माना दिल की बात...
व्यक्त नहीं करते प्रिय, ऐसे यूँ जज्बात..
ऐसे यूँ जज्बात, लोग हैं नज़र लगाते..
दो लोगों की प्रीत, को घूरें आँख गड़ाते...
कह मनोज की भीत ही प्रीत की मीठी रीत..
चलो कहीं छुपकर चलें, गायें प्रेम के गीत... .... (मनोज)
रोचक खोज...
ReplyDeleteजब भी धड़कने धड़कती है मेरी .....
ReplyDeleteहर धड़कन में तुम्हे महसूस करती हूँ मैं.....bahut khub....
बहुत ही प्यार भरी प्रस्तुति ...
ReplyDeletesirf itnaa hee kah do
ReplyDeletetumhaare liye jeetee hoon
nice one
सुंदर रचना।
ReplyDeleteगहरे अहसास।
खूबसूरत ..नाजुक सी रचना के लिए बधाई..
ReplyDeleteजब कलम उठाती हूँ मैं,
ReplyDeleteतुम को ही सोचती हूँ मैं,
तुम्ही से रूठती हूँ,
तुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं.....
क्या बात है ...वाह!
कल 30/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
तुम्हारे ख्याल,तुम्हारे एहसास
ReplyDeleteइस तरह लिपटे है मुझसे.....
कि किसी और का
एहसास मुझे छूता ही नही......
उत्तम भाव-सृजन !
बहुत सुंदर अहसास की मीठी कविता.
ReplyDeleteयादेँ ही अपनी यादों को ...ढूंढती हैं !
ReplyDeleteखूबसूरत अहसास !
जब भी धड़कने धड़कती है मेरी .....
ReplyDeleteहर धड़कन में तुम्हे महसूस करती हूँ मैं.....
हर खुशी,हर गम में,
अपने हर सवाल का जवाब
तुमसे ही पूछती हूँ मैं.....
तुम कहो न कहो तुम.....
मुझे चाहते हो....
तुम्हारी आखों में पढ़ सकती हूँ मैं........इन आँखों में ही तो होता है सबकुछ
सुखद अहसासों वाली कविता...
ReplyDeleteबहोत अच्छे ।
ReplyDeleteनया ब्लॉग
http://hindidunia.wordpress.com/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जब कलम उठाती हूँ मैं,
ReplyDeleteतुम को ही सोचती हूँ मैं,
तुम्ही से रूठती हूँ,
तुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं.....
हर दुआ में तुम्हारी ही दुआ मांगती हूँ......
हर बार तुम्हारे ही सजदे में सर झुकाती हूँ मैं......!!!
सकारात्मक प्रेम की पराकाष्ठा, वाह !!!!!!!!!!!!!
सम्पूर्ण समर्पण भाव बहुत सुन्दर
ReplyDeleteक्या बात है ...वाह
ReplyDeleteप्रेमपगी रचना.....सुंदर अहसास
ReplyDeleteअब तो आइना भी देखू तो सूरत तेरी नजर आती है .
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासों से लबरेज़ रचना।
ReplyDeletePehli baar aapki kavita padhi bahut achi lagi :)
ReplyDeleteतुम्ही से रूठती हूँ,
ReplyDeleteतुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं.....
हर दुआ में तुम्हारी ही दुआ मांगती हूँ......
हर बार तुम्हारे ही सजदे में सर झुकाती हूँ मैं......!!!
बहुत खूब ..अनुपम भाव संयोजन ।
विशुद्ध समर्पण की सुन्दर झांकी!
ReplyDeleteप्रेम का सुन्दर अहसास |
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteदेखा है तेरी आँखों में प्यार ही प्यार....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजब मैं खो जाता है तू ही तू रह जाता है...प्रेम की यही रीत है, सुंदर कविता!
ReplyDeletewhere is my comment sushma ji?
ReplyDeleteसुंदर ...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteशानदार |
ReplyDeleteवाह! कोमल एहसास के साथ बेहद ख़ूबसूरत और मनमोहक रचना लिखा है आपने!
ReplyDeletevery nicely maintained the rhythm of the poem..liked it and enjoyed...:)
ReplyDeleteलाज़वाब! बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteसार्थक, सुन्दर व बेहतरीन प्रस्तुती ,
har taraf bas too hi too...bahut pyari kavita.
ReplyDeletekhoob soorat sahsasat ke sundar rachana ....badhai sushma ji .....mere naye post pr amantran sweekaren
ReplyDeleteसच है किसी खास का अहसास इस तरह लपेटता है कि किसी और का अहसास होने नहीं देता...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..... कहने के लिये उचित शब्दों का चयन कठिन,,,,
ReplyDeleteनेता,कुत्ता और वेश्या
हृदय में अंकित हो जाने वाली रचना.......
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या
समर्पित प्रेम की बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहर किसी में तुम्ही को ढूढती हूँ मैं....
ReplyDeleteमिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......
हर किसी में तुम्ही को ढूढती हूँ मैं....
ReplyDeleteमिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......
हर किसी में तुम्ही को ढूढती हूँ मैं....
ReplyDeleteमिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......
हर किसी में तुम्ही को ढूढती हूँ मैं....
ReplyDeleteमिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......
हर किसी में तुम्ही को ढूढती हूँ मैं....
ReplyDeleteमिलू किसी से भी तुम्ही को ढूढती हूँ मैं......
गहरे जज्बात के साथ लिखी बेहतरीन पंक्तियाँ ... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteपुरवईया : आपन देश के बयार: कलेंडर
"जब कलम उठाती हूँ मैं,
ReplyDeleteतुम को ही सोचती हूँ मैं,
तुम्ही से रूठती हूँ,
तुम्हारे लिए ही मान जाती हूँ मैं."
Wah.. Behatreen :)
बहूत हि सुंदर प्यारी रचना है --
ReplyDeleteयही है प्यार का जज़्बा । सुंदर भावभीनी रचना ।
ReplyDeleteमेरे प्यार,मेरे समर्पर्ण को,
ReplyDeleteमेरी कमजोरी न समझना
मिट सकती हूँ किसी पर
तो मिटा भी सकती हूँ मैं....
खुद पर आ जाऊं तो
इस दिल को पत्थर भी बना सकती हूँ मैं......
यही है प्यार