Monday 22 June 2015

वो इक शाम...!!!

वो इक शाम जो...
तुम्हारे साथ गुजारी थी...
तुम्हे याद है.....
भीगी घास पर नंगे पाँव,
जब हम चल रहे थे....
तुम्हे पता है...
मैं तुम्हारा हाथ थाम कर,
दौड़ जाना चाहती थी....
वो इक शाम....
जब काफी के साथ चुपके से,
इक दुसरे को देख कर,
हम मुस्करा देते थे...
वो इक शाम....
जो सिर्फ तुम्हारी..
इक मुस्कान को देखने के लिए,
मैंने तुम्हारे साथ गुजारी थी....
वो इक शाम....
जब ख़ामोशी भी गुनगुनायी थी....
लिखा कुछ था मैंने...
वो ग़ज़ल तुमने सुनाई थी....
वो इक शाम....
जो ढलते हुए अपने साथ,
तुम्हारी याद लायी थी....
वो इक शाम....
शायद मैंने कुछ कहा था...
या फिर तुमने कानो में,
चुपके से कोई बात बतायी थी....
तुम्हारे साथ बीती,
हर शाम मेरी आने वाली...
हर शामो को महकाती है....
जब तुम नही होते हो...
तो बन कर हमसफ़र...
मेरे साथ बैठ जाती है...
वो इक शाम...!!!

Saturday 13 June 2015

इक साथ...!!!

मैं कब से ढूंढ रही...
इक साथ...
जो मेरे डरने से,
पहले मेरे हाथ थाम ले...
इक साथ जो मेरी आखों में,
आँसू आने से पहले,
होटों पर मुस्कान दे....
इक साथ जो...
मैं जब जिन्दगी से...
थक जाऊं तो...
वो मेरी आखिरी कोशिश बन के...
मुझको सम्हाल ले....
इक साथ जिसके साथ,
तपती धुप में भी चलना,
मुझे छाव लगे.....
इक साथ जिसके लिये....
मैं खुद को खो भी दूँ..
तो वो मुझसे कहे....
तुम्हारे लिये मैं हूँ ना...!!!

Friday 12 June 2015

इन शब्दों के बिना....!!!

कल रात सपने में...
मेरी शब्दों से मुलाकात हुई...
बिखरे पड़े थे...
इधर-उधर..बैचैन से...
मुझे देखा...बड़ी नारजगी से...
शिकायत थी उन्हें मुझसे...
कि मैंने उन्हें क्यों...
किसी कविता में पिरोया नही...
उन्हें नाराजगी थी....
कि क्यों....
मैंने उनसे अपने दिल की,
बाते नही कही....
मैं चुप थी....
ख़ामोशी से बिखरे पड़े...
शब्दों को देख रही थी..
तभी इक शब्द ने...
मुझसे आ कर कहा...
कि तुम्हारी ख़ामोशी को भी,
शब्दों की जरुरत पड़ेगी...
कि अचानक....
इक शब्द मुस्कराहट बन कर,
मेरे लबो को छू गया....
और सारी रात शब्दों से,
अपनी आपबीती कहती रही...
बिखरे शब्दों से साथ...
अपने बिखरे मन को भी,
समेटती रही....
सच ही तो है..
कहाँ मैं कुछ भी हूँ...
इन शब्दों के बिना....!!!