Friday, 12 June 2015

इन शब्दों के बिना....!!!

कल रात सपने में...
मेरी शब्दों से मुलाकात हुई...
बिखरे पड़े थे...
इधर-उधर..बैचैन से...
मुझे देखा...बड़ी नारजगी से...
शिकायत थी उन्हें मुझसे...
कि मैंने उन्हें क्यों...
किसी कविता में पिरोया नही...
उन्हें नाराजगी थी....
कि क्यों....
मैंने उनसे अपने दिल की,
बाते नही कही....
मैं चुप थी....
ख़ामोशी से बिखरे पड़े...
शब्दों को देख रही थी..
तभी इक शब्द ने...
मुझसे आ कर कहा...
कि तुम्हारी ख़ामोशी को भी,
शब्दों की जरुरत पड़ेगी...
कि अचानक....
इक शब्द मुस्कराहट बन कर,
मेरे लबो को छू गया....
और सारी रात शब्दों से,
अपनी आपबीती कहती रही...
बिखरे शब्दों से साथ...
अपने बिखरे मन को भी,
समेटती रही....
सच ही तो है..
कहाँ मैं कुछ भी हूँ...
इन शब्दों के बिना....!!!

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-06-2015) को "जुबां फिसलती है तो बहुत अनर्थ करा देती है" { चर्चा अंक-2005 } पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, १३ जून, २०१५ की बुलेटिन - "अपना कहते मुझे हजारों में " में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

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  3. आप तो शब्दों के बिना भी हैं..शब्द अपना अर्थ आपसे पाते हैं..

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