Wednesday 26 December 2012

मुझे सिर्फ एक ख़ामोशी मिली है........

आज मुझसे यूँ ही एक दोस्त पूछ बैठी की मैंने कुछ क्यों नही लिखा? दिल्ली वाली घटना पर मैं उसके इस सवाल पर मेरे पास कोई जवाब नही था और....मैं खामोश रही....और सोचने लगी,ऐसे बहुत सारे सवाल थे जिनका जवाब में मेरे पास सिर्फ....एक लम्बी ख़ामोशी थी....जब से मैंने इस घटना के बारे में पढ़ा या सुना है मैं समझ नही पा रही हूँ की मैं क्या कहू?कैसे कहूँ? मैं उस दिन से हर उस शख्स से बच रही हूँ जो इस बारे में बात भी करता है क्यों की मैं अगर ये कहूँ की हाँ मुझे भी दुःख हुआ,वो कम ही होगा क्या? मैं सच में इस घटना से नाराज हूँ या उससे भी कही ज्यादा मैं दुखी हूँ....सच कहूँ तो बहुत कोशिश की अपने दर्द को शब्दों में लिखने की पर मेरे शब्दों में इतनी शक्ति ही नहीं जो उस दर्द बयां कर सके, मैं समझ नही पा रही हूँ की मैं किस कानून की बात करूँ ? ऐसा क्या बदल दूँ कि जो कुछ हुआ वो ठीक हो जाए....दुःख होता है जब जिस देश में सोनिया जी,शीला जी, मीरा कुमार जी,मायावती जी जैसे लोग हो वहां भी एक नारी के दर्द को समझाने के लिए हमें सड़को पर उतरना पड़ रहा है, कहते है...एक नारी ही दूसरी नारी का दर्द समझ सकती है पर ये क्या है? मैं हैरान हूँ की वो आम आदमी अपना सब कुछ छोड़ का निस्वार्थ भाव से सिर्फ इसलिए लड़ रहा है कि इन्साफ हो सके, और वो अभिनेता जो देश की सेवा करने की बड़ी -बड़ी बाते करते है वो चुप हो कर देख रहे है...हाँ उन्हें दुःख हुआ ऐसा कह कर चुप क्यों है ? मैं नही समझ पाती हूँ कि अभी कुछ दिन ही हुए अन्ना हजारे के आन्दोलन में यही अभिनेता आकर समर्थन की बात कर रहे थे, अब जब देश की नारी के सम्मान की बात हो रही है तो ये ख़ामोशी क्यों है...? बस इन्ही सवालो के जवाब में मुझे सिर्फ एक ख़ामोशी मिली है...ये ख़ामोशी क्यों है??              

Sunday 16 December 2012

मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है....!!

मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने,                                          
क्या गुनगुना रही है....
खनक-खनक मेरे हाथो में,

याद तुम्हारी दिला  रही है.....

पूछ न ले कोई सबब इनके खनकने का,
मैं इनको जितना थामती हूँ...
नही मानती मेरी बे-धड़क

शोर मचा रही है,
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ

न जाने क्या गुनगुना रही है.....

मैं कुछ कहूँ न कहूँ मेरा हाल-ए-दिल...
मेरी चूड़ियां सुना रही है.....
आज भी तुम्हारी उँगलियों की छुअन से,
मेरी चूड़ियाँ शरमा रही है...
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..

मेरी हाथो से है लिपटी,
एहसास तुम्हारा दिला रही है.....
मैं कब से थाम कर बैठी हूँ,
अपनी धडकनों को....
जब भी खनकती है मेरे हाथो में,
धड़कने तुम्हारी सुना रही है.....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..

तुम्हारी तरह ये मुझसे ये रूठती भी है,
रूठ कर टूटती  भी है....
मैं इनको फिर मना रही हूँ....
सहज कर अपने हाथो में सजा रही हूँ,
ये फिर मचल कर तुम्हारी बाते किये जा रही है....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..

Tuesday 11 December 2012

मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे ......!!!

मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ.......तुम्हे          
अब तक जितना भी लिख चुकी हूँ....तुम्हे
फिर भी अधुरा-अधुरा सा रहा है.....
अभी कहाँ पूरी तरह से जान पायी हूँ......तुम्हे
मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे

जब यकीन होता है कि,
तुमने अपना मान लिया है मुझे....
जब भी यकीन होता है कि,
मैंने जान लिया है........तुम्हे,
ये भ्रम भी टूटा है हर बार,
मैं कहाँ खुद में ढाल पायी हूँ.......तुम्हे 
मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे ......!!!

Saturday 1 December 2012

हर पल हर लम्हा........!!!

हर पल हर लम्हा खुद से ही लड़ रही हूँ मैं...
सवाल जवाबो के इन उलझनों में,
खुद के अन्दर चल रहे.....तुफानो से हर पल
बिखर रही हूँ मैं.......
एक तरफ मेरे साथ मेरी भावनाओ की गहराइयाँ है.....
इक तरफ मेरी तन्हाईयाँ है,
मंजिल की तलाश में दर-दर भटक रही हूँ मैं.....
किसी के इन्तजार में अंजान किसी आहट पर,
सहम कर ठहर  रही हूँ मैं......
अपनी चाहतों,अपनी ख्वाइशों में,
टूटने की हद तक गुजर रही हूँ मैं.......
इक रौशनी की तलाश में कितने,
अंधेरो से घिर रही हूँ मैं.....
इतनी तन्हा हो गयी हूँ कि......
खुद को भी अनजान सी लग रही हूँ मैं........!!!