Friday 25 March 2016

श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने....!!!

श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने,
होंठो की लाली में,
तुम्हारे नाम को सजा लिया है मैंने,
माथे की बिंदिया में,
तुम्हे अपना मान बना लिया है मैंने,
मांग की सिंदूर से,
तुम्हारा सजदा किया है मैंने,
गले के मंगलसूत्र के धागों से,
तुम्हे जन्मों-जन्मों तक बांध लिया है मैंने,
हाथो की चूड़ियां तुम्हारा बन कर,
एहसास मुझे छुती है...
पायल की छम-छम ने,
तुम्हारे साथ-साथ चलने का वादा किया मैंने....
श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने....
दर्पन तुम्हारी आँखों को बना लिया है मैंने,
जीवन तुम्हारी साँसों से जोड़ दिया है मैंने....
मैं तुम हो गयी हूँ...
जब से श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने....!!!

Saturday 19 March 2016

तुम्हारे साथ वो... होली आखिरी थी...

कहाँ खबर थी,तुम्हारे साथ वो...
होली आखिरी थी...
नही तो जी भर कर...
खेल लेती मैं होली...
तुम्हारी हथेलियों से...
मेरे गालो पर लगा वो गुलाल,
तो कब का मिट गया गया था..
पर तुम्हारी हथेलियों के निशां,
आज भी मेरे गालो पर नजर आते है....
मुझे याद है...जब तुमने हँसते हुऐ,
गुलाल से सिंदूर भर दिया था,
तुम्हारे लिए वो महज...
इक वो होली का रंग था,
पर मेरे लिये जिंदगी जैसे...
उसी इक रंग पर ठहर गयी हो.....
कहाँ खबर थी..
तुम्हारे साथ वो होली आखिरी थी,
नही तो जवाब..
सारे गुलाल के तुमसे पूछ लेती...!!!

Monday 14 March 2016

तुमने कह दिया होता....!!!

कभी कोई बात जो मैंने कही नही,
तुमने सुन लिया होता....
कभी जो मैं खामोश हुई,
तो तुमने कह दिया होता....
बेशक मैंने तुम्हे रोका नही,
फिर भी मैं वही खड़ी थी,
तुम्हारे जाने तक...
तुमने मुड़ कर देखा तो होता...
कुछ एहसास अब भी है हमारे दरमियाँ....
तुमने जो इक बार मेरे ख़्यालो को,
छु कर देखा होता...
बेशक मैंने तुमसे कभी कहा नही,
फिर भी मैं आज भी तुम्हे लिखती रही,
तुमने जो कुछ पल ठहर कर,
इक बार जो मेरी आँखो को,
पढ़ा तो होता....!!!

Monday 7 March 2016

तुम्हारे साथ कॉफी पीना....!!!

तुम्हारे साथ कॉफी पीना,
सिर्फ कॉफ़ी पीना नही होता था....
उस कॉफी के साथ,
तुम्हारे साथ गुजरी जिंदगी की,
कई सारी यादो को दोहराना होता था.....
कॉफी के बहाने ही सही....
तुम्हारा आना.....और उस इक पल ही सही...
मेरा तुम्हे पाना होता था.....
कॉफी के साथ...
तुमसे पूछना कि कैसा चल रहा है सब,
तुम्हारा बेपरवाही से कहना...सब ठीक है....
बस इतना सा ही तो था....
तुम्हारा मेरे साथ कॉफी पीना.....
और मेरा कॉफ़ी पीने के साथ,
तुम्हारी आखों में...
कुछ छिपा हुआ पढ़ना होता था.....!!!

Sunday 6 March 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-25

219.
कोई सफ़र तुम्हारे बैगेर अब मुमकिन नही...
ये और बात है कि,
किसी सफ़र पर तुम मेरे साथ नही..
220.
मुझे यकीन है कि मैं इन राहो,इन गलियों में,
फिर कभी नही आऊँगी,फिर भी,
मैंने इन्हें अलविदा नही किया....
कि इन्हें इन्तजार रहेगा मेरे लौटने का,
और मुझे उम्मीद रहेगी,
इन्हें अलविदा कहने फिर आऊँगी..
221.
फिर किसी सम्मान का इन्तजार नही,
मेरी कविताओं को.... 
जो तुम सिर्फ इक बार,
पढ़ कर मुस्करा दो....
222.
अहसासों और भावनाओं को शब्द देते-देते.....
जिन्दगी कब कब अर्थहीन हो गयी..............
पता ही नही चला.....
223.
मेरी पंक्तियों को पढ़ कर,
जितना आसान था तुम्हारे लिय,
खामोश होना,उतना ही मुश्किल था,
मेरे लिये, तुम्हे लिखना....
224.
आँखों को पढ़ने का 
हुनर मिल गया.....
तुम जो मिले.... 
मेरी ज़िंदगी को,
सफ़र मिल गया.....
225.
मेरी डायरी में रक्खी तुम्हारी लिखी चिठ्ठियाँ,
मुझसे पूछ रही है....
अरसा बीत गया,
तुमने लिखी नही कोई चिठ्ठी...
क्या अब नही आती तुम्हे हिचिकिया...
मुझसे पूछ रही है..
226.
तुम्हारे अक्स को,
अपने शब्दों में उतारना..
अभी बाकी था....
तुम्हारी बाहों में,
मेरा टूट कर बिखरना..
अभी बाकी था...
227.
इक शाम तुम्हारा हाथ थाम कर,
चली क्यों नही आती..
इक शाम तन्हाई का हाथ थाम कर,
चली क्यों नही जाती..
228.
आज जब तुम्हे लिखते-लिखते,
मेरी उंगलियां ठहरती है,तो आपस में उलझ जाती है..
इस सोच में कि किस तरह से,
मेरी उंगलियां  तुम्हारी उंगलियों से जुदा हुई थी
इस बार जब मिलना तो,
अपनी उंगलियों को मेरी उंगलियों से उलझा कर,
मेरी उँगलियों की उलझन सुलझा देना...
229.
नही चाहती कि तुम मेरे लिये आसमान के,
तारे तोड़ कर लाओ,शर्त ये है कि
तुम थाम लो हाथ मेरा,
तारे मैं खुद तोड़ लाऊंगी.
230.
शब्द"चाहे जितने हो मेरे पास....
जो तुम तक न पहुचे......सब "व्यर्थ" है......

जिंदगी के सफ़र पर....

कभी जब तुम यूँ ही...
अचानक सरे-आम....
मेरा हाथ थाम कर,
चलने लगते हो,
तो शायद तुम भूल जाते हो,
कि मेरा इस तरह तुम्हारा हाथ थामना,
तुम्हे पसंद नही है...
तब मुझे महसूस होता है...
कि तुम मेरी फ़िक्र में,
कही मैं खो ना जाऊं,
तुम मुझे साथ रखना चाहते हो...
और मैं भी इससे अन्जान होकर कि....
तुमने मेरा हाथ कुछ दूर के लिये थामा है,
फिर भी....
मैं तुम्हारा थाम कर चल पड़ती हूँ..
जिंदगी के सफ़र पर...,!!!