Sunday, 6 March 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-25

219.
कोई सफ़र तुम्हारे बैगेर अब मुमकिन नही...
ये और बात है कि,
किसी सफ़र पर तुम मेरे साथ नही..
220.
मुझे यकीन है कि मैं इन राहो,इन गलियों में,
फिर कभी नही आऊँगी,फिर भी,
मैंने इन्हें अलविदा नही किया....
कि इन्हें इन्तजार रहेगा मेरे लौटने का,
और मुझे उम्मीद रहेगी,
इन्हें अलविदा कहने फिर आऊँगी..
221.
फिर किसी सम्मान का इन्तजार नही,
मेरी कविताओं को.... 
जो तुम सिर्फ इक बार,
पढ़ कर मुस्करा दो....
222.
अहसासों और भावनाओं को शब्द देते-देते.....
जिन्दगी कब कब अर्थहीन हो गयी..............
पता ही नही चला.....
223.
मेरी पंक्तियों को पढ़ कर,
जितना आसान था तुम्हारे लिय,
खामोश होना,उतना ही मुश्किल था,
मेरे लिये, तुम्हे लिखना....
224.
आँखों को पढ़ने का 
हुनर मिल गया.....
तुम जो मिले.... 
मेरी ज़िंदगी को,
सफ़र मिल गया.....
225.
मेरी डायरी में रक्खी तुम्हारी लिखी चिठ्ठियाँ,
मुझसे पूछ रही है....
अरसा बीत गया,
तुमने लिखी नही कोई चिठ्ठी...
क्या अब नही आती तुम्हे हिचिकिया...
मुझसे पूछ रही है..
226.
तुम्हारे अक्स को,
अपने शब्दों में उतारना..
अभी बाकी था....
तुम्हारी बाहों में,
मेरा टूट कर बिखरना..
अभी बाकी था...
227.
इक शाम तुम्हारा हाथ थाम कर,
चली क्यों नही आती..
इक शाम तन्हाई का हाथ थाम कर,
चली क्यों नही जाती..
228.
आज जब तुम्हे लिखते-लिखते,
मेरी उंगलियां ठहरती है,तो आपस में उलझ जाती है..
इस सोच में कि किस तरह से,
मेरी उंगलियां  तुम्हारी उंगलियों से जुदा हुई थी
इस बार जब मिलना तो,
अपनी उंगलियों को मेरी उंगलियों से उलझा कर,
मेरी उँगलियों की उलझन सुलझा देना...
229.
नही चाहती कि तुम मेरे लिये आसमान के,
तारे तोड़ कर लाओ,शर्त ये है कि
तुम थाम लो हाथ मेरा,
तारे मैं खुद तोड़ लाऊंगी.
230.
शब्द"चाहे जितने हो मेरे पास....
जो तुम तक न पहुचे......सब "व्यर्थ" है......

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (08-03-2016) को "शिव की लीला अपरम्पार" (चर्चा अंक-2275) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत ही सुन्दर...गहरायी तक अपने आप में प्रेम को समेटे।
    सच, उसके बिना हर शब्द व्यर्थ, लेकिन एक सच्चाई यह नही की उसका ना होना -होना जो है, उसी से हर शब्द में धड़कन, हर शब्द में साँस है. जिस दिन वो नहीं, ये जीवन नहीं.

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