श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने,
होंठो की लाली में,
तुम्हारे नाम को सजा लिया है मैंने,
माथे की बिंदिया में,
तुम्हे अपना मान बना लिया है मैंने,
मांग की सिंदूर से,
तुम्हारा सजदा किया है मैंने,
गले के मंगलसूत्र के धागों से,
तुम्हे जन्मों-जन्मों तक बांध लिया है मैंने,
हाथो की चूड़ियां तुम्हारा बन कर,
एहसास मुझे छुती है...
पायल की छम-छम ने,
तुम्हारे साथ-साथ चलने का वादा किया मैंने....
श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने....
दर्पन तुम्हारी आँखों को बना लिया है मैंने,
जीवन तुम्हारी साँसों से जोड़ दिया है मैंने....
मैं तुम हो गयी हूँ...
जब से श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने....!!!
Friday, 25 March 2016
श्रृंगार तुम्हारा किया है मैंने....!!!
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-03-2016) को "होली तो अब होली" (चर्चा अंक - 2293) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
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