Friday 28 October 2016

काल चक्र घूमता है....!!!

काल चक्र घूमता है....
कल तक जो हाथ दीया लिए हुए,
दहलीज़ पर खड़े पुरे,
घर को रौशन कर रहे थे...
कि आज उन्ही हाथो ने,
मेरे हाथों में दीया थाम कर,
मुझे दहलीज़ पर खड़ा कर दिया है....
कल तक अंधेरो की,
परवाह किये बैगर,....जिस रौशनी पर,
मैं गुमान कर रहा था,
आज उसी रौशनी की कीमत,
मेरे अंधेरो ने मुझसे ली है....
कल तक जिन हाथो से,
मैं फुलझड़ियों की जिद,
पटाखों के शोर मांगता था...
आज उन्ही फुलझड़ियों की चिंगारी से,
पटाखों के शोर से,
मैं इस घर बचा रहा हूँ...
काल चक्र घूमता है....
कल तक मैं जहाँ महफूज़ था,
गहरी नींद में सो रहा था...
आज देर रात तक जागता हूँ...
काल चक्र घूमता है....
कल तक तुम जहाँ खड़े थे साथ मेरे,
आज वही अकेले मैं खड़ा हूँ..!!!

तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!

मैं आज भी इक दीया,
तुम्हारी दहलीज पर रख आती हूँ,
कि मेरे दीये का उजाला,
तुम्हे अंधेरो से बचायेगा.....
जब भी दीये की लहराती,
जलती बाती पर तुम्हारी नजर जायेगी,
तुम्हे कुछ याद आयेगा और,
होंठो पर तुम्हारे मुस्करायेगा...
मैं कहूँ न कहूँ किसी से,
तुम बताओ या ना बताओ किसी से..
तुम्हारी दहलीज़ पर रखा मेरा दीया,
तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!

Saturday 15 October 2016

तुम्ही मेरे सात जन्मों के साथी बनो....!!!

मांग में सिंदूर की लम्बी रेखा,
माथे पर गोल चाँद सी बिंदी,
गले दो धागों का मंगलसूत्र,
हाथो में चूड़ियां खनकती है,
पैरो में पायल,महावर लगी हुई,
उँगलियों में बिछियां सजी हुई...
ये सभी निशानियां है,तुम्हारे होने की..
तुम नही होते हो...
तब भी तुम्हारे होने का एहसास कराती है,
किसी की भी नजर मुझे नही लगती,
जब मांग के सिंदूर पे उसकी नजर जाती है...
बहुत प्यार से खुद को,
आज सजाया है सिर्फ तुम्हारे लिये,
इसलिए नही कि...
मैं कमजोर हूँ,स्त्री हूँ,अबला हूँ,मजबूर हूँ,
बल्कि इसलिए कि...
तुमसे ही मुझे ये सौभाग्य मिला है..
किसी मज़बूरी में नही...
मैंने आज करवाचैथ रखा है,
बल्कि अपनी मर्जी से
अपनी खुशी से,तुम्हारे लिए कुछ करने का मन है...
मुझे पता ये व्रत,
रखने से किसी की उम्र नही बढ़ जाती,
सब जानती हूँ मैं..
पर तुम्हारे प्यार के आगे,
ये तुम्हारा विज्ञान भी मुझे झूठा लगता है...
बस कुछ नही सुनुगी,
चाँद का इंतजार करुँगी,
चाँद के साथ तुम्हे देख कर,
तुम्हारी सलामती की दुआ करुँगी,
तुम्ही मेरे सात जन्मों के साथी बनो,मांग लुंगी...!!!

Thursday 13 October 2016

नही मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में....!!!

उस दिन शाम को कॉफ़ी पीते-पीते,
तुम वही घिसा-पीटा डायलॉग बोल कर चले गये,कि हर किसी को नही मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में..और कितनी आसानी से कह दिया कि हमे अलग हो जाना चाहिए...पर आज मैंने तुम्हे रोका नही,ना ही मनाने की कोशिश ही की,क्यों की तुम हमारे प्यार के रिश्ते को किस्मत पर छोड़ गये थे,अपनी कमजोरियों को मजबूरियों का नाम देकर तुमने हर रिश्ते से पीछा छुड़ा लिया...मैं सोचती रही ये सब तुम सिर्फ कहते हो,पर कही ना कही तुम भी मुझे नही छोड़ पाओगे,पर मैं गलत थी,तुम्हारे लिये हमारा रिश्ता तो इन चंद लाइनों में ही रहा...सच ही कहा तुमने...हर किसी को नही मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में....!!!

Tuesday 11 October 2016

आज चाँद हठ करके के बैठा है...!!!

आज चाँद हठ करके के बैठा है,
मेरी खिड़की पर...
कि आज मैं कविता उस पर लिखूं....
बहुत उलझन में पड़ गयी हूँ,
जो खुद कविता हो,
उस पर मैं कविता कैसे लिखूं...
कहता है तुम जिस पर कविता लिखती हो,
उसे चाँद सा कहती हूँ...
और मुझ पर कुछ नही लिखती हो,
आज तो मैं तब तक नही जाऊंगा,
जब तक तुम मुझ पर....
कविता नही लिखती हो,
गर रात नही ढलेगी..
तो इल्जाम तुम पर आयेगा,
तुमने चाँद का दिल तोड़ दिया,
यही तुमको कहा जायेगा...
मैं मुस्कराती हूँ,कहती हूँ..
मैंने कब चाहा कि,
तुम मुझे छोड़ कर जाओ,
तुम मुझसे मिलने आते हो,
तभी तो इन्तजार में तुम्हारे,
खिड़की पर बैठी रहती हूँ...
अपनी सारी कविताएं तो,
तमको ही सुनाती हूँ,
तुम ही मेरी कविता वाले चाँद हो,
तुम्हारी चांदनी ना रुठ हो जाये,
तभी तो तुम्हे नही बताती हूँ....!!!

Sunday 9 October 2016

तुम ही तो मेरे हो.....!!!

तुमने मुझे हँसना सिखाया,
उड़ना सिखाया...
तुमने ही बेरंग तस्वीरो में,
रंग भरना सिखाया....
सब जब मैं तुम जैसी हो गयी हूँ,
तुममे ही...तुम तक...दुनिया मेरी है...
तुम्हारा हाथ थाम कर,
तुम्हारे ही सफर पर चल कर,
तुम्हारी ही मंजिल पर आ गयी हूँ...
तुम्हारी पहचान लिए,
तुम्हारा नाम लिए,तुम संग साथ चलती हूँ...
डरती हूँ,तुमसे हाथ न मेरा छूट जाये,
मैं खो जाऊं ना तुमसे...
कोई पूछे जो नाम मेरा,
मैं नाम तुम्हारा ही लेती हूँ..
तुमको ही मैंने अपना माना,
मेरा क्या है?
तुम ही तो मेरे हो.....

Sunday 2 October 2016

अधूरी सी रह गयी हूँ....!

आज यूँ रोजमर्रा के काम करते-करते,
अलमारी की दराज़ में छिपाई,
डायरी अचानक से गिर गई,
साथ ही कुछ फूल,कुछ खत,
कुछ अधलिखी पंक्तिया,
कुछ ख्वाब गिर गये...
कितने ही सालों से,
इन्हें छिपा कर रखा था,
आज ऐसे बिखर गये मेरे सामने,
कि मेरे सामने,मेरा वजूद बिखर गया हो...
जब मैं तुम्हारे साथ इस घर में आयी थी,
तो ये डायरी..
कुछ यादे ले कर आयी थी,
सोचा था कि खूब लिखूंगी..
पर जिंदगी की आपाधापी में,
सब भूल गयी..
तुम्हे क्या पसंद है,तुम क्या चाहते हो,
तुमको कैसे खुश रखूं,
बस तुम ही तुम रह गये,
मैं तो इस डायरी में,
कही गुम सी हो गयी...
ऐसा नही कि...
तुमसे कोई शिकायत हो,
तुमने मुझे बहुत कुछ दिया..
पर क्या ये वही था,जो मैं चाहती थी,
या वो जो तुम चाहते थे...
तुम्हे भी तो मेरी कविताएं ही पसंद थी,
फिर तुमने कभी क्यों नही पूछा,
कि मैं अब क्यों नही लिखती हूँ,
तुमने अब क्यों कुछ सुनने की जिद नही की,
शायद मेरी तरह तुम भी भूल गये थे...
आज ना जाने क्यों,
अपनी अधलिखी पंक्ति पढ़ कर लगता है,
कि मैं भी यूँ ही अधूरी सी रह गयी हूँ....!

कुछ देर मेरे पास बैठो....!!!

सुनो आओ...
कुछ देर मेरे पास बैठो,
मैं लौटा दूंगी तुम्हारा खोया हुआ,
विश्वास...
कुछ देर बैठो...
मेरे हाथों को थाम कर,
मैं लौटा दूंगी तुम्हे जीने का एहसास...
कुछ देर देखो...
तुम मेरी आँखों में,
मैं लौटा दूंगी...
तुम्हारी आँखों के ख्वाब...
कुछ देर सुन लो,
तुम इन धड़कनो की आवाज़,
तुम्हे मिल जायँगे,सवालो के जवाब....