आज चाँद हठ करके के बैठा है,
मेरी खिड़की पर...
कि आज मैं कविता उस पर लिखूं....
बहुत उलझन में पड़ गयी हूँ,
जो खुद कविता हो,
उस पर मैं कविता कैसे लिखूं...
कहता है तुम जिस पर कविता लिखती हो,
उसे चाँद सा कहती हूँ...
और मुझ पर कुछ नही लिखती हो,
आज तो मैं तब तक नही जाऊंगा,
जब तक तुम मुझ पर....
कविता नही लिखती हो,
गर रात नही ढलेगी..
तो इल्जाम तुम पर आयेगा,
तुमने चाँद का दिल तोड़ दिया,
यही तुमको कहा जायेगा...
मैं मुस्कराती हूँ,कहती हूँ..
मैंने कब चाहा कि,
तुम मुझे छोड़ कर जाओ,
तुम मुझसे मिलने आते हो,
तभी तो इन्तजार में तुम्हारे,
खिड़की पर बैठी रहती हूँ...
अपनी सारी कविताएं तो,
तमको ही सुनाती हूँ,
तुम ही मेरी कविता वाले चाँद हो,
तुम्हारी चांदनी ना रुठ हो जाये,
तभी तो तुम्हे नही बताती हूँ....!!!
Tuesday 11 October 2016
आज चाँद हठ करके के बैठा है...!!!
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2494{ चुप्पियाँ ही बेहतर } में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद