मैं आज भी इक दीया,
तुम्हारी दहलीज पर रख आती हूँ,
कि मेरे दीये का उजाला,
तुम्हे अंधेरो से बचायेगा.....
जब भी दीये की लहराती,
जलती बाती पर तुम्हारी नजर जायेगी,
तुम्हे कुछ याद आयेगा और,
होंठो पर तुम्हारे मुस्करायेगा...
मैं कहूँ न कहूँ किसी से,
तुम बताओ या ना बताओ किसी से..
तुम्हारी दहलीज़ पर रखा मेरा दीया,
तुम्हारा ही कहलायेगा......!!!
जो अपने होते हैं उनके नाम का एक दीया हमेशा जलता है मन के कोने में ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
दीपावली की शुभकामनाएं!
दिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहें
ReplyDeleteचलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-10-2016) के चर्चा मंच "हर्ष का त्यौहार है दीपावली" {चर्चा अंक- 2510} पर भी होगी!
ReplyDeleteदीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDeletewaah!
ReplyDelete