Friday 28 June 2013

कुछ कहती है बुँदे.......!!!

मुझ को भिगोती है बुँदे......        
तुम्हारा प्यार बन कर......
मुझे छूती बुँदे.....
तुम्हारा एहसास बन कर....
कुछ कहती है बुँदे.....
तुम्हारी आवाज़ बन कर.....
मुझ पर ठहरती है बुँदे....
तुम्हारी नजर बन कर.....
मुझे थामती है ये बुँदे....
तुम्हारी बाहें बन कर....
मेरे होटों पर बिखर जाती है बुँदे....
तुम्हारी कविता बन कर....
हर कोई अनजान है इनसे.....
मेरे आंसुओं में घुल जाती है बुँदे.....
बहुत रुलाती है बुँदे......
तुम्हारी याद बन कर.....

Saturday 22 June 2013

जवाब क्या होता...........?

क्यों मुझे हरने दिया.......
मेरी हार तुम्हारी हार नही थी.........?
क्यों मुझे टूटने दिया......
क्या मेरे टूटने से तुम भी बिखर न जाते.......?
क्यों मुझे तनहा छोड़ दिया.........
क्या मेरी यादे तुम्हे भी बेचैन न करती.....?
ऐसे बहुत से सवाल थे....
जो मैं तुमसे पूछना चाहती थी...
पर अच्छा  ही है नही पूछा.....
क्यों कि तुम कोई जवाब नही देते........
हमेशा की तरह खामोश रह कर.........
मुझे इस उलझन के साथ छोड़ देते...........
कि अगर तुम जवाब देते...........तो जवाब क्या होता...........?

Tuesday 18 June 2013

चाँद तुम साक्षी हो ......!!!

चाँद तुम साक्षी हो......                 
मेरे प्यार के....मेरे दर्द के...

मेरे आंसूओं के......
तुम साक्षी हो .....
मेरी कोशिशो के....

मेरी दुआओं के.....
तुम साक्षी हो......
रात भर जागती मेरी आखों के....

मेरे टूटते ख्वाबो के...
तुम साक्षी हो....
दूर तक जाती मेरी अँधेरी राहों के....

ख़ामोशी में धड़कती मेरी धडकनों के....
तुम साक्षी हो........
रात से लम्बी हमारी बातो के.......

यादो में गुजरती उन काली रातो के......
तुमसे कहूँ तो क्या कहूँ....... 

कि तुमने सम्हाला है मुझे;
हर दौर में....

बचपन में मेरे लिए...
खिलौना बन कर....
जब बड़ी हुई तो मेरी आखों में...

हज़ारो ख्वाब बन कर.......
जब तनहा हुई.......

हमसफ़र बन कर हर रोज़..
मेरी बातो को सुना है तुमने....
न जाने कितनी राते यूँ ही तुम्हे निहारती......

कुछ तुममे तलाशती गुजारी है मैंने.......
तुम साक्षी हो......
मेरी लिखी इन पंक्तियों के...
तुम साक्षी हो......
सबसे छिप कर किसी कोने में...

सुनाई देती मेरी सिसकियों के......
तुम साक्षी हो.....
मेरे टूट कर बिखरने के ......

मेरी उम्मीदों के बधने के.........