Thursday 24 July 2014

वो एक कप कॉफ़ी का साथ.....!!!

वो एक कप कॉफ़ी का साथ...                  
बस कुछ लम्हे होते थे हमारे पास....
और उन लम्हों में करनी होती थी......
हमें हजारो बात.......!
मेरे साथ होते हुए भी....
दुसरो को देखती.......
तुम्हारी वो शरारती आंखे..
उतनी ही शरारती थी...........
तुम्हारी वो बाते...............
तुम्हारी हर बात पर....
मेरी मुस्कराती आखों का जवाब.....
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफ़ी का साथ......!!
सबसे नज़र हट कर....
जब तुम्हारी मुझ पर नज़र टिकती थी.....
तो कुछ सहम कर तुम्हारे चहरे से....
मैं नजरे फेर लेती थी......
डरती थी की कही....
तुम पढ़ न लो मेरी नजरो में......
मेरी दिल की बात.............
वो तुम्हारे कुछ पूछने पर......
मेरा मुस्करा देना.............मैं कुछ कहूँगी.....
तुम्हारी नजरो का वो इन्तजार करना...
नही पता की  कॉफ़ी कैसी थी......
नही जानती की......
वो वक़्त क्यों इतनो जल्दी गुजर रहा था....
मैं उस गुजरते वक़्त को थामना चाहती थी........
तुम्हारे हाथ को थाम कर........
कुछ देर और बैठना चाहती थी..........
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफ़ी का साथ......!!

Tuesday 22 July 2014

तुम भी अपना ख्याल रखना..................!!!

मैं जा रहा हूँ पता नही फिर...                       
कब बात हो अपना ख्याल रखना.....!!
यही कुछ आखिरी शब्द थे....
तुम्हारे जो मेरे इनबॉक्स में........ 
तुमने लिख कर छोड़े थे...
उस दिन से आज तक.....
कितनी बार मैंने इनको पढ़ा है...
इक-इक शब्द जैसे...
दिल में गढ़ गये हो......
जितनी बार इन शब्दों को पढ़ती हूँ.....
ऐसा लगा कुछ अधूरे से लगे....
जैसे तुम कुछ और भी कहना चाहते थे.....
अगर मैं होती...
इक कसक सी दिल में.....
तुम ले कर चले गये................!
वैसे तो मैं हर रोज़.....
तुम्हारा इन्तजार करती थी....पर 
उस दिन चूक गयी....
मैं क्यों नही थी....?
जब तुम जा रहे थे......
बार-बार उस इनबॉक्स में पड़े..
मैसज को पढ़ मैं सोचती हूँ..............
मैं तुमसे क्यों नही कह पायी कि ...............
मैं तुम्हारा इन्तजार करुँगी.......
तुम भी अपना ख्याल रखना..................!!!
क्यों नही कह पायी........?
कुछ अधुरा सा अनकहा......
तुम लिख कर छोड़ गये......
कुछ अधुरा सा अनकहा ......मेरे दिल में रह गया.......????

Friday 18 July 2014

कुछ बाते अधूरी ही अच्छी लगती है.......!!!

                               

बारिश की खुबसूरत रात थी....                                                
मेरे हाथो में तुम्हारे हाथ थे .....
बारिश में भीगते मेरे महंदी वाले हाथ थे...
बारिश में गहराता मेरी महंदी का रंग था...
ये बादलों के गर्जना था....
कि तुम्हारे दिल की धड़कन थी....
तुम्हे भी कुछ कहना था....
कहनी मुझे भी तुमसे कोई बात थी....
गुजर गयी बरसात की वो रात..
कभी पूरी हुई ही नही हमारी वो बात....
कुछ बाते अधूरी ही अच्छी लगती है.......!!!        

                                             

Sunday 13 July 2014

किताबो में शायद खुद को ढूंढ़ रही थी मैं........!!!

आज किताबो के ढेर में......                      
एक धुल से लिपटी किताब मिली..
पुरानी यादो की साक्षी....
गुजरे लम्हों की गवाही दे रही थी.....
यूँ ही पन्ने पलटते-पलटते....
कुछ धुंधला सा लिखा दिखायी दिया..
जो धुंधला हो गया था....
पर अभी मिटा नही था....
मुझे आज भी याद है...
कि यूँ किताब पढ़ते-पढ़ते...
तुम्हारा ख्याल आया था..
और मैंने मुस्करा कर......
अपने नाम के साथ....
तुम्हारा नाम लिख दिया था....
वो लम्हा गुजर गया....इक अरसा बीत गया....
ये किताब बहुत सारी....
किताबो में कही खो गयी थी...
पर मेरे उन लम्हों की....
मेरी अनजानी मुस्कराहटो की गवाही है.....ये किताब...
 किताब के कुछ और पन्ने पलटे ...
 वही कही कई परतो में मुड़ा हुआ....
एक कागज का टुकड़ा मिला....
अरे ये तो वही ख़त है....
जो कभी तुम्हारे लिए लिखा था...
पर तुमको दिया नही था.....
इक अनकहे डर से कि....
तुम्हारा जवाब क्या होगा.....
मैंने ये ख़त खुद तक ही रखा.....
तुम तक कभी पंहुचा ही नही...
कितनी पागल थी.....
बिना कोई सवाल किये.......
तुम्हारे जवाब के इन्तजार में.....
इक सदी गुजर गयी....
जिन्दगी की कभी इक पल यूँ भी लगा.....
जैसे बेवजह जिन्दगी जी रही हूँ....
खुद को कही भीड़ में खो दिया था मैंने.....
कि आज इन पुरानी यादो के ढेर में.....
मेरे अनसुलझे सवालो के जवाब मिल गए....
इन किताबो में शायद खुद को ढूंढ़ रही थी मैं........!!!