वो एक कप कॉफ़ी का साथ...
बस कुछ लम्हे होते थे हमारे पास....
और उन लम्हों में करनी होती थी......
हमें हजारो बात.......!
मेरे साथ होते हुए भी....
दुसरो को देखती.......
तुम्हारी वो शरारती आंखे..
उतनी ही शरारती थी...........
तुम्हारी वो बाते...............
तुम्हारी हर बात पर....
मेरी मुस्कराती आखों का जवाब.....
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफ़ी का साथ......!!
सबसे नज़र हट कर....
जब तुम्हारी मुझ पर नज़र टिकती थी.....
तो कुछ सहम कर तुम्हारे चहरे से....
मैं नजरे फेर लेती थी......
डरती थी की कही....
तुम पढ़ न लो मेरी नजरो में......
मेरी दिल की बात.............
वो तुम्हारे कुछ पूछने पर......
मेरा मुस्करा देना.............मैं कुछ कहूँगी.....
तुम्हारी नजरो का वो इन्तजार करना...
नही पता की कॉफ़ी कैसी थी......
नही जानती की......
वो वक़्त क्यों इतनो जल्दी गुजर रहा था....
मैं उस गुजरते वक़्त को थामना चाहती थी........
तुम्हारे हाथ को थाम कर........
कुछ देर और बैठना चाहती थी..........
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफ़ी का साथ......!!
बस कुछ लम्हे होते थे हमारे पास....
और उन लम्हों में करनी होती थी......
हमें हजारो बात.......!
मेरे साथ होते हुए भी....
दुसरो को देखती.......
तुम्हारी वो शरारती आंखे..
उतनी ही शरारती थी...........
तुम्हारी वो बाते...............
तुम्हारी हर बात पर....
मेरी मुस्कराती आखों का जवाब.....
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफ़ी का साथ......!!
सबसे नज़र हट कर....
जब तुम्हारी मुझ पर नज़र टिकती थी.....
तो कुछ सहम कर तुम्हारे चहरे से....
मैं नजरे फेर लेती थी......
डरती थी की कही....
तुम पढ़ न लो मेरी नजरो में......
मेरी दिल की बात.............
वो तुम्हारे कुछ पूछने पर......
मेरा मुस्करा देना.............मैं कुछ कहूँगी.....
तुम्हारी नजरो का वो इन्तजार करना...
नही पता की कॉफ़ी कैसी थी......
नही जानती की......
वो वक़्त क्यों इतनो जल्दी गुजर रहा था....
मैं उस गुजरते वक़्त को थामना चाहती थी........
तुम्हारे हाथ को थाम कर........
कुछ देर और बैठना चाहती थी..........
कुछ यू था......
तुम्हारे साथ एक कप कॉफ़ी का साथ......!!
Bahut sunder shabdon me likhi anokhi prastuti.Badhaai aapko.
ReplyDeleteपूरी कविता ही बहुत खूबसूरत है बधाई और शुभकामनाएं|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-07-2014) को ""क़ायम दुआ-सलाम रहे.." (चर्चा मंच-1686) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खूबसूरत रचना व लेखन , सुष्मा जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
wah pyari .....pyar say bhari sundar rachna...ye barast ...tumhare aur coffee kay saath
ReplyDeleteवाह क्या बात है. बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteKhoobdurat...
ReplyDeleteEk coffee ka sath...baut khoob.
ReplyDeleteआSह वो एक कप कॉफी का साथ........।
ReplyDeleteएक कप कॉफी भी ज़िन्दगी का इतिहास बन जाती है ,सुन्दर
ReplyDeleteएक कप कॉफी भी ज़िन्दगी का इतिहास बन जाती है ,सुन्दर
ReplyDeleteकिसी का साथ हो और सदियों गुजर जाए पता नहीं चलता
ReplyDeleteखूबसूरत अहसास लिए !
कॉफी का मग ही आता अक्सर ख्यालों की गवाही लेने।
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति।
नई रचना : इंसान
स्मृतियों से उपजी कविता का सौंदर्य निराला होता है।
ReplyDeleteअति सुंदर ।