Wednesday 14 November 2012

बस अब और नही....!!!

साल बदलते है....तारीखे बदलती है..                              
घड़ी की सुइयों की तरह,
कुछ भी ठहरता नही है.....
हर साल की तरह दिवाली आती है होली आती है,
न दीयों की रौशनी ही ठहरती है...
न ही होली का कोई रंग ही चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...

हर बार ख्वाब टूटते है उम्मीदे टूटती है....
हर बार सम्हलती हूँ और.....
फिर टूट कर बिखरती हूँ मैं....
हर बार ढूंढ़ कर लाती हूँ खुद को,
और हर बार भीड़ में खो जाती हूँ...
खुद के ही सवालो में उलझ कर रह जाती हूँ ......

सफ़र पर चलती हूँ सबके साथ,
सभी मुझसे आगे निकल जाते है,
और मैं न जाने किसके
इन्तजार में पीछे रह जाती हूँ......

डायरी के खाली पन्नो की तरह,
मैं भी खाली हो चुकी हूँ....
न शब्द ही मिलते है मुझे,
न ही अर्थ समझ पाती हूँ.....अपने इस खालीपन का...

थक चुकी हूँ....
इन शब्दों से खुद को बहलाते-बहलाते,
थक चुकी हूँ....
खुद को समझाते-समझाते,
बस अब और नही....

बस अब और नही......
ठहर जाना चाहती हूँ.....
बिखर जाना चाहती हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह.... 
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ......!!!

Saturday 10 November 2012

चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है...!!!


चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है,                                                                                                     
जहाँ तक हद है नज़रों की,
अँधेरा वहां तक मिटा देते है....

अपनों के लिए बहुत कुछ किया है अभी तक
एक दिया किसी अजनबी के लिए,
जला कर उसे भी अपना बना लेते है.... 

एक दिया जला कर किसी के बिखरे हुए,
ख्वाबों को समेट कर 
उसकी आखों में,
कुछ और ख्वाब सजा देते है....

एक दिया जला कर किसी के उदास चहेरे,
पर एक मुस्कान ला देते है....

एक दिया जला कर किसी के गुजरे हुए,
खुबसूरत लम्हों को आज में मिला देते है....

एक दिया जला कर किसी राहों में,
उसे मंजिल से मिला देते है....

एक दिया जला कर हमसे रूठे हुए
उजालो को मना लेते है,,,,,,

चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है
जहाँ तक हद है नज़रों की,
अँधेरा वहां तक मिटा देते है........!!!

Thursday 1 November 2012

कोई मिल जाए ऐसा...!!!


कोई मिल जाए ऐसा..... जो सिर्फ,                                      
मेरे हाथो को थाम कर चलना चाहे.......
कोई मिल जाए......
ऐसा जो मेरे साथ,
चाँद को निहारते हुए सारी रात गुजारना चाहे........

कोई मिल जाए ऐसा....
जो मेरी ख़ामोशी को समझ जाए,
जो मेरी मेरी धडकनों को सुनना चाहे.........

कोई मिल जाए ऐसा...
जिसके काँधे पर सर रख,
मैं दुनिया को भूल जाऊं....
जो मेरी साँसों में घुलना चाहे.........

कोई मिल जाए ऐसा...
जिसकी आखों में,                 
मैं बेइंतहा प्यार देखूं,
जो मेरी आखों में,
सिर्फ खुद को देखना चाहे......

कोई मिल जाए ऐसा.....
जिससे हर बार मैं जीत जाऊं,
जो मेरी एक मुस्कान पर....
अपना सब कुछ हारना चाहे.......

कोई मिल जाए ऐसा...
जिसके साथ गुजरा इक-इक पल,
एक पूरी जिन्दगी लगे...
जो सिर्फ मेरे साथ....
अपनी पूरी जिन्दगी जीना चाहे......

कोई मिल जाए ऐसा...
जिसके सजदे सर,
मेरा हमेशा झुकता रहे,
जो अपनी दुआओं  में...
मुझे ही पाना चाहे....

कोई मिल जाए ऐसा...जिसका एहसास,
मेरी हर कविता में हो,
जो मेरे लिखे...
हर शब्द का अर्थ बनना चाहे......!!!