Sunday 31 January 2016

Valentine day खतो की डायरी...

रोज मर्रा के कामो में मैं व्यस्त,
जैसे ही कलेंडर का महीना बदला की देखा कि,
1 February है, ये तो वही महीना,
वही दिन....
जब तुम्हारा मेरे साथ ख़तो का,
सिलसिला शुरू हुआ था,
मुझे याद है....
तुम मुझे प्यार से हीर कहते थे,
आज ही के दिन तुमने मुझे,
पहला खत दिया था,जिसको मैंने इतने बार पढ़ा था,
कि उस खत का इक-इक शब्द,।जैसे जहन में उतर गया, जिसमे लिखा था...
मेरी हीर,
आज के दिन से मैं तुम्हे हर रोज इक खत लिखूंगा...valentineday तक.... तुम्हे लिखूंगा किस तरह तुम मेरे ख़्यालो में रहती हो...तुम्हे लिखूंगा कि अपनी feelings को बताने के लिये,मेरे इक खत काफी नही है..मैं तुम्हारे करीब खुद को इन ख़तो के सिलसिलों से ले आऊंगा...जिसकी खुसबू तमाम उम्र तुम्हारे साथ रहेगी....
                                                  सिर्फ तुम्हारा
                                                    राँझा

Tuesday 12 January 2016

मेरे शब्दों के है.......,!!!

तुमसे रिश्ते मेरे सभी...
शब्दों के है....
तुमने सुना नही कभी,
मैंने कहा नही कभी.....
तुम पढ़ लेते हो मुझको,
मैं लिख लेती हूँ तुमको..
तुमसे एहसास मेरे सभी....
शब्दों के है....
हम सदा अंजान ही रहे इक दूजे से,
तुम मिल लेते हो मुझसे
मैं छु लेती हूँ तुमको,
तुमसे बयाँ करते जज्बात मेरे सभी,
शब्दों के है....
इक दुरी सी थी हमारे दरमियाँ,
इक गहरी खामोशी की तन्हाईयाँ,
तुम्हारे सवालो के जवाब सभी,
मेरे शब्दों के है.......!!!

Friday 8 January 2016

तुम भी इस घर में आते हो....!!!

जब भी रात में दरवाज़े के हिलने की,
आहट सी रहती है...
यूँ ही लगता है कि....
जैसे हवा के झोंके के साथ...
तुम भी इस घर में आते हो.....
तुम्हे याद है घर का वो लॉन...
जिसकी बगियाँ को,
तुमने सींचा था,
मुझे याद है कि...
तुम अपनी क्यारी के फ़ूलो को,
मेरे नाम से पुकारते थे...
हवा के झोकों से जब वो झूलते है..
तो यूँ लगता है कि...
तुम भी इस घर में आते हो....
तुम्हे याद है वो किचन,
जिसमे कितनी ही बार तुमने,
वो अदरक वाली चाय बनायीं थी,
हवा में आज भी उस चाय की,
खुसबू महसूस करती हूँ..
तो लगता है...
तुम भी इस घर में आते हो...
तुम्हे याद है वो दर्पन,
जिसमे मैं जब सजती संवरती थी,
वो तुम्हारा पीछे से,
मुझे बाँहो में भर लेना...
हवा के झोकों में वो परछाइयाँ,
आज भी दिखती है..
तो लगता है कि...
तुम भी इस घर में आते हो..
तुम्हे याद है वो खिड़की,
जिससे मैं घंटो चाँद को निहारती थी...
आज भी जब खिड़की के पर्दे,
हवा में लहरा कर मुझे छूते है..
तो लगता है कि...
तुम भी इस घर में आते हो.....
तुम्हे याद है वो तकिया,
जिससे कितनी ही लड़ाईया,
तुमने हारी...मैंने जीती है....
मैं जब भी हवा के झोकों में,
तुम्हे अपनी सांसो में पाती हूँ...
तो तकिया को समेट कर,
अपने सीने से लगा लेती हूँ....
जब भी रात में दरवाज़े के,
हिलने की आहट सी रहती है..
यूँ ही लगता है कि...
जैसे हवा के झोंके के साथ,
तुम भी इस घर में आते हो.....