जब भी रात में दरवाज़े के हिलने की,
आहट सी रहती है...
यूँ ही लगता है कि....
जैसे हवा के झोंके के साथ...
तुम भी इस घर में आते हो.....
तुम्हे याद है घर का वो लॉन...
जिसकी बगियाँ को,
तुमने सींचा था,
मुझे याद है कि...
तुम अपनी क्यारी के फ़ूलो को,
मेरे नाम से पुकारते थे...
हवा के झोकों से जब वो झूलते है..
तो यूँ लगता है कि...
तुम भी इस घर में आते हो....
तुम्हे याद है वो किचन,
जिसमे कितनी ही बार तुमने,
वो अदरक वाली चाय बनायीं थी,
हवा में आज भी उस चाय की,
खुसबू महसूस करती हूँ..
तो लगता है...
तुम भी इस घर में आते हो...
तुम्हे याद है वो दर्पन,
जिसमे मैं जब सजती संवरती थी,
वो तुम्हारा पीछे से,
मुझे बाँहो में भर लेना...
हवा के झोकों में वो परछाइयाँ,
आज भी दिखती है..
तो लगता है कि...
तुम भी इस घर में आते हो..
तुम्हे याद है वो खिड़की,
जिससे मैं घंटो चाँद को निहारती थी...
आज भी जब खिड़की के पर्दे,
हवा में लहरा कर मुझे छूते है..
तो लगता है कि...
तुम भी इस घर में आते हो.....
तुम्हे याद है वो तकिया,
जिससे कितनी ही लड़ाईया,
तुमने हारी...मैंने जीती है....
मैं जब भी हवा के झोकों में,
तुम्हे अपनी सांसो में पाती हूँ...
तो तकिया को समेट कर,
अपने सीने से लगा लेती हूँ....
जब भी रात में दरवाज़े के,
हिलने की आहट सी रहती है..
यूँ ही लगता है कि...
जैसे हवा के झोंके के साथ,
तुम भी इस घर में आते हो.....
Friday, 8 January 2016
तुम भी इस घर में आते हो....!!!
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-01-2016) को "विवेकानन्द का चिंतन" (चर्चा अंक-2217) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भावपूर्ण रचना ।
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