Monday 18 June 2012

बहुत मुश्किल सा दौर है ये.....!!!

बहुत मुश्किल सा दौर है ये...                                           
किसी को समझना इतना मुश्किल होगा...
ये नही पता था ?

जिन्दगी इस रूप में भी आएगी,
सामने ये नही पता था?
कुछ था जो खामोश था..
कुछ अनकहा था.....
पर क्या था?
ये भी नही पता था....!!!

जवाब ढूंढ़ रही हूँ पर क्यू?
शायद सवालो का भी नही पता था......
बहुत मुश्किल सा दौर है ये...
उसको को समझना इतना मुश्किल होगा...
ये नही पता था?????

कुछ पूछना था शायद किसी से,
या कुछ बताना था शायद मुझको 
ख़ामोशी कुछ इस तरह फैली थी हमारे बीच
यूँ लग रहा था,
कहने और सुनने के लिए कुछ नही बचा था .............

Thursday 7 June 2012

मैं डाली फूलो की थी.....

मैं डाली फूलो की थी,                                                       
मैं खुशबु बागो की थी
कभी मैं शोखी झूलो की थी
तितली मैं हुआ करती थी....

ख्वाबो में रंग भरा करती थी,
कभी बाते परियों की मैं भी किया करती थी
चिड़ियों के साथ दूर आसमान तक
मैं उड़ा करती थी...

बादलो की तरह सखियों के साथ,
लुका-छिपी भी खेला करती थी..
वो वक़्त भी कितना हसीं था,
कुछ भी नही था...
फिर भी खुशियों की कमी  न थी......

बारिशो में पहले भी भीगा करती थी,
बूंदों से खेलना अच्छा लगता था
बारिशों में आज भी भीगती हूँ,
क्यों कि बूंदों के संग,
आसुओं का बह जाना अच्छा लगता है...

कभी किसी टूटते सितारे से अपने,
सपने पूरे होने कि दुआ माँगा करती थी.
आज उसी टूटते सितारे के साथ,
कोई इक सपना टूटता है मेरा.....

कभी यादों को संजो,
छोटी-छोटी चीजो को भी,
समेट कर रख लेती थी...
आज रिश्तों को संजोती हूँ,
तो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कितना अजीब है न.........

Friday 1 June 2012

वो खुद मिल गया है मुझे...मंजिल बन कर...

इक शख्स मुझको यूँ ही,                                        
किसी मोड़ पर मिल गया था....
कुछ बात तो नही हुई थी,
उस पहली मुलाकात में....

फिर भी इक अनजाना सा एहसास था,
उसके मेरे साथ होने पर....
उसकी आवाज़ थी जो ना जाने कब,
सीधे मेरे दिल में उतर गयी थी..... 

उसकी आखें जो दिल की,
सारी बाते  कह जाती थी.... 
ये शायद उसको भी पता नही था.....
वो अनजान था अपने ही दिल से,
मैं न जाने कब उसके दिल के,
इतने करीब आ गयी....

कहाँ कुछ भी नही था उसने,
सुना मैंने भी कुछ नही था,
उसकी खामोशियाँ सब कह रही थी....और
मैं नही मेरी धड़कने सब समझ रही थी.....
कुछ भी इक जैसा नही था हमारे बीच,
फिर हम इक-दूसरे के होते जा रहे थे......

इक शख्स मुझको यूँ ही,
किसी मोड़ पर मिल गया था....
सुना तो था की जिन्दगी का कोई मोड़,
हमें किसी न किसी मंजिल पर पहुँचाता है....
पर इस  मोड़ पर वो खुद मिल गया है मुझे...मंजिल बन कर....