मैं डाली फूलो की थी,
मैं खुशबु बागो की थी
कभी मैं शोखी झूलो की थी
तितली मैं हुआ करती थी....
ख्वाबो में रंग भरा करती थी,
कभी बाते परियों की मैं भी किया करती थी
चिड़ियों के साथ दूर आसमान तक
मैं उड़ा करती थी...
बादलो की तरह सखियों के साथ,
लुका-छिपी भी खेला करती थी..
वो वक़्त भी कितना हसीं था,
कुछ भी नही था...
फिर भी खुशियों की कमी न थी......
बारिशो में पहले भी भीगा करती थी,
बूंदों से खेलना अच्छा लगता था
बारिशों में आज भी भीगती हूँ,
क्यों कि बूंदों के संग,
आसुओं का बह जाना अच्छा लगता है...
कभी किसी टूटते सितारे से अपने,
सपने पूरे होने कि दुआ माँगा करती थी.
आज उसी टूटते सितारे के साथ,
कोई इक सपना टूटता है मेरा.....
कभी यादों को संजो,
छोटी-छोटी चीजो को भी,
समेट कर रख लेती थी...
आज रिश्तों को संजोती हूँ,
तो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कितना अजीब है न.........
जिंदगी है ही एक अजीब शय.....................
ReplyDeleteआपके मनोभाव हमारे दिल में भी उपजते हैं अक्सर....
कभी यादों को संजो,
ReplyDeleteछोटी-छोटी चीजो को भी,
समेट कर रख लेती थी...
आज रिश्तों को संजोती हूँ,
तो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कितना अजीब है न..
खुबसूरत सपनों का संसार अद्भुत प्यार .सहेजिये अपने आँचल में हमने भेजा है अपना दुलार ........
आज रिश्तों को संजोती हूँ,
ReplyDeleteतो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
भावपूर्ण सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
मन की उलझन सुलझाए कोई .....
ReplyDeleteगहरे एहसास !
शुभकामनाएँ!
जिन्दगी ऐसी ही है एक डोर सुलझाते है तो दूसरा उलझता है..
ReplyDeleteकुछ भी नही था...
ReplyDeleteफिर भी खुशियों की कमी न थी......wah.....bahot sunder.
सुन्दर और शानदार रचना।
ReplyDeleteBahut acha, Dil ko chhune waala tha...
ReplyDeleteespecially the lines
कभी किसी टूटते सितारे से अपने,
सपने पूरे होने कि दुआ माँगा करती थी.
आज उसी टूटते सितारे के साथ,
कोई इक सपना टूटता है मेरा.....
नारी मन के भावों को शब्द दे दिए ...बहुत खूब
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत।
ReplyDeleteसादर
हाँ बहुत अजीब है ये जिंदगी भी, बिखरने समेटने में बीत जाती है... कोमल अहसास
ReplyDeleteआज रिश्तों को संजोती हूँ,
ReplyDeleteतो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कुछ खोकर पाना है या कुछ पाकर कुछ खोना है
bilkul sahi aankalan kiya hai aapne kisi bhi cheej ko sahejne me bahut waqt lagta hai par bikhrne ke lye pal bahr me sab bikhar jaata hai---
ReplyDeletebahut hi badhiya
poonam
कभी यादों को संजो,
ReplyDeleteछोटी-छोटी चीजो को भी,
समेट कर रख लेती थी...
आज रिश्तों को संजोती हूँ,
तो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कितना अजीब है न.........अब जाना मोह कितना भरमाता है , तरसाता है और रुलाता है
acchi rachna .
ReplyDeleteयह जिंदगी भी अजीब है तरतीब से चलती ही नही । बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteपूरा जीवन ही एक अचम्भा है...
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चयन और बेहतरीन अभिव्यक्ति
सुंदर संवेदनाएँ सुंदर अभिव्यक्ति सुंदर रचना.
ReplyDeleteबधाई.
जावन इसी कों कहते हैं ... एक कों समेटते दूसरा बिखर जाता है ..
ReplyDeleteपर फिर भी यादें ही संबल देने आती हैं ..
मन की व्यथा का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteजीवन विरोधाभासों की टोकरी है!! उत्तम कृति.
ReplyDeleteवैसे यह पंक्ति "बादलो की तरह सखियों के साथ" अगर "बादलों के साथ,सखियों की तरह" होती तो शायद ज्यादा भावप्रद होती.
सुंदर अहसास व दिल को छूने वाली रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteजीवन में जो स्वाभाविक होता है वह सत्य है लेकिन रिश्तों और जीवन के बीच का संघर्ष टीस देता है. बहुत खूब कविता है.
ReplyDeleteआज रिश्तों को संजोती हूँ,
ReplyDeleteतो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कितना अजीब है न...
सच में जिंदगी ही बहुत अजीब है..
पल भर में क्या मौसम ले आये
समझना मुश्किल है..
बहुत ही सुन्दर भावमयी करती रचना..
raat aayi he to din bhi niklega...
ReplyDeletesab waqt ek se nahi hote....kucchh anubhav zindgi k sikha denge...kuchh ye zindgi ki dhoop....tab ye zindgi sawar jayegi....thoda sabr karo ye tabiyet behel jayegi...:-)
आज रिश्तों को संजोती हूँ,
ReplyDeleteतो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कितना अजीब है न....
बिल्कुल सच ... बेहतरीन प्रस्तुति।
dil ko chhu lene wali kavita...
ReplyDeletebahut hi sundar, par bahut hi dard bhari...!!
बारिशो में पहले भी भीगा करती थी
ReplyDeleteबूंदों से खेलना अच्छा लगता था
बारिशों में आज भी भीगती हूँ
क्यों कि बूंदों के संग
आसुओं का बह जाना अच्छा लगता है.
आपकी ये पंक्तियां कविता को अनुपम बना रही हैं।
बहुत और बहुत ही बढि़या।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति......
ReplyDeleteनाजुक एहसास.
ReplyDeleteKhoobsoorti se varnan kiya hai.. Badhai
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