Thursday 20 April 2017

तुम तो हार तभी गये थे...!!!

तुम्हारे लिए मुझे त्याग देना आसान था,
क्यों की तुम महान बनाना चाहते थे...
तुम खुद को संयम में,
बांध कर जीना चाहते थे,
क्यों कि तुम इक मिशाल बनाना चाहते थे...
मुझे नही पता कि,
तुम्हे तकलीफ हुई थी या नही...
पर तुम मुझे तकलीफ में छोड़ कर,
मुझे नजरअंदाज करके,
छोड़ कर चले गये...क्यों कि
इक आदर्श बनाना चाहते थे...
तुम्हे दिखाना था कि,
तुम किस तरह सब कुछ..
छोड़ सकते हो,
तुम्हे सभी को बताना था कि,
ये दुनिया....ये समाज तुम्हारे लिए,
कितना मायने रखता है....
मैने कोई शिकायत नही की तुमसे,
तुम्हारी हर नाराजगी पर चुप हो गयी..
तो तुमने खुद को योद्धा मान लिया...
मैंने प्यार में तुम्हे सर्वस्व अर्पित कर,
तुम्हारे सजदे में,
अपना सर झुका दिया...
तो तुमने खुद को महात्मा मान लिया....
तुम्हारी हर मुश्किल में,
मैं ढाल बन कर खड़ी रही,
तुम्हारी हर कमजोरी में,
तुम्हारा संबल बनी रही...
तो तुमने इसे मेरी जरुरत मान लिया....
तुम गलत थे...
हाँ मेरे लिए तुम महान,आदर्श,योद्धा,महात्मा,
सब कुछ थे..
कभी खुद को मेरी नजरो से देखते...
पर तुमने खुद को,
हमेशा दुनिया की नजरों से देखा...
इसलिए मेरी नजरो में,
तुम्हारे लिए जो सम्मान,जो प्यार था...
तुम देख ही नही पाये...
मैं जब भी कमजोर पड़ी,
तुम्हारे साथ के लिए गिड़गिड़ाई,
तो तुमने इसे...
अपनी जीत मान लिया......
मैं तो सिर्फ इक रिश्ते को,
निभाने की हर भरकस कोशिश कर रही थी,
पर अफ़सोस तुमने,
इसे भी मेरी जरुरत समझ लिया....
पर सच तो ये है...
तुम तो हार तभी गये थे,
जब तुम्हारी वजह से,
मेरी आँखों में आंसू थे....!!!

Wednesday 19 April 2017

यूँ ही तुम्हारे साथ इक सफर याद आ गया...!!!

यूँ ही तुम्हारे साथ इक सफर याद आ गया...
मेरी गोद में तुम सर रख सो रहे थे,
और मैं तुम्हे निहार रही थी...
और रेलगाड़ी की खिड़की से चाँद,
हम दोनों के साथ-साथ चल रहा था...
इक सुकून था तुम्हारे चेहरे पर,
और इक मुस्कराहट थी,
तुम्हे निहारते मेरी आँखों में....
बहुत बेचैन था,
उस सफर पर वो चाँद,
अपनी चांदनी की याद में...
हम दोनों को देखने को,
चाँद हमारे पीछे-पीछे भाग रहा था,
वैसे तो मुझे हर रोज चिढ़ाता था,
चाँद अपनी चांदनी के साथ...
आज तो मैं भी चाँद को देख कर,
यूँ मुस्करा रही थी,
कि जैसे कह रही हूँ..कि आज तो,
मैंने भी अपने चाँद के साथ हूँ..