यूँ ही तुम्हारे साथ इक सफर याद आ गया...
मेरी गोद में तुम सर रख सो रहे थे,
और मैं तुम्हे निहार रही थी...
और रेलगाड़ी की खिड़की से चाँद,
हम दोनों के साथ-साथ चल रहा था...
इक सुकून था तुम्हारे चेहरे पर,
और इक मुस्कराहट थी,
तुम्हे निहारते मेरी आँखों में....
बहुत बेचैन था,
उस सफर पर वो चाँद,
अपनी चांदनी की याद में...
हम दोनों को देखने को,
चाँद हमारे पीछे-पीछे भाग रहा था,
वैसे तो मुझे हर रोज चिढ़ाता था,
चाँद अपनी चांदनी के साथ...
आज तो मैं भी चाँद को देख कर,
यूँ मुस्करा रही थी,
कि जैसे कह रही हूँ..कि आज तो,
मैंने भी अपने चाँद के साथ हूँ..
Wednesday, 19 April 2017
यूँ ही तुम्हारे साथ इक सफर याद आ गया...!!!
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "काम की बात - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteचाँद हमारे पीछे-पीछे भाग रहा था,
ReplyDeleteवैसे तो मुझे हर रोज चिढ़ाता था,
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ !
nice
ReplyDeleteसंयोग और वियोग को एक छोटी सी रचना में संजो देने की भाषिक - कला का हार्दिक स्वागत है। यह रचना पाठक के सीधे दिल में उतर जाने में सक्षम है। बधाई।
ReplyDeleteसंयोग और वियोग को एक छोटी सी रचना में संजो देने की भाषिक - कला का हार्दिक स्वागत है। यह रचना पाठक के सीधे दिल में उतर जाने में सक्षम है। बधाई।
ReplyDeleteप्रेम भरी पाती सी रचना ... बहुत खूब ...
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