Sunday 9 June 2019

फिर इक बार तुम्हे लिखती हूँ मैं..!!!

तुम्हे आज लिखती हूँ मैं,
फिर इक बार तुम्हे लिखती हूँ मैं...
उजली सुबह लिखती हूँ मैं,
ढलती शामे लिखती हूँ मैं..
गहरी खमोश राते लिखती हूँ मैं..
फिर इक बार तुम्हे लिखती हूँ मैं..
मन की पगडंडियाँ,
सँकरी गालियां लिखती हूँ मैं,
मेरी तुम्हारी प्रेम की गवाह,
सहेलियां लिखती हूँ मैं...
फिर इक बार तुम्हे लिखती हूँ मैं..
सिरहाना धरती का लिखती हूँ मैं,
बाहें आसमान की लिखती हूँ मैं..
गले लगा कर भिगोती बारिशें लिखती हूँ मैं..
फिर इक बार तुम्हे लिखती हूँ मैं..
खूबसूरती चाँद सी लिखती हूँ मैं,
बेरुखी सूरज सी लिखती हूँ मैं...
सुकून तुम्हारे साथ जिंदगी लिखती हूँ मैं..
फिर इक बार तुम्हे लिखती हूँ मैं..!!!

Saturday 8 June 2019

बैठी हो साथ मेरे...!!!

उम्र के इस पड़ाव में उसका साथ छूट जाना,
तब सिर्फ सांसे चलती है,
जीना तो वो अपने साथ ले जाता है...
बहुत अरमानो से हमने घर बनाया था,
इक-दूसरे के प्यार में एक-दूसरे के,
रिश्तो को सम्हाला, संजोया..
बहुत खुशिया,दर्द,अधूरी चाहते,
समेट अपने अंदर..और मेरे तुम्हारे रिश्तो को,
हमने को हमारे रिश्ते बना कर,
रूठते,मनाते इक उम्र गुजारी थी हमने...
कुछ ख्वाइशें मैंने तुम्हारी पूरी कर दी थी,
उम्र इस पड़ाव पर,
और कुछ ख्वाइशें पूरी करने का,
वादा किया था,उम्र के उस पड़ाव पर.
हमने मिल कर सोचा था,
जब सारी जिम्मेदारियां पूरी हो जएँगी,
तब हम सिर्फ इक-दूसरे की ख्वाइशें पूरी करँगे,
तुम जो कहोगे वो मैं तुम्हारे लिए खाने में बनाऊंगी,
मै जो कहँगी वो तुम मेरे लिए लाओगे...
यही तिनको को जोड़ कर रखा था,
इक-दूसरे के लिए..बहुत सारी बाते तो,
अभी भी सीने में अभी भी छिपी थी..
तुमसे कहनी थी यूँ फुरसत में,
गार्डन में बैठ कर,तुम्हारे हाथों की...
एक कप चाय पीते-पीते...
यही फुरसत के पलो का,
इंतजार ही तो कर रहे थे,दोनो साथ-साथ,
अब साथ कहाँ रहा साथ मेरे,
तुम्हारे साथ कि तलाश,
मैं घर का कोना तलाशता हूँ,
जिस तरह तुम करीने से सवांर कर रखती थी चीजे,
मैं भी उन्हें रख देता हूँ,जब थक कर बैठ जाता हूँ,
तुम्हारे साथ कि तलाश करते-करते,
तभी इक पल के लिए ये महसूस होता है,
कि तुम आ कर मेरे काँधे पर,
सर रख कर बैठी हो साथ मेरे...!!!