Saturday 17 January 2015

मैं तो सिर्फ इक तुम्हारी परछाई थी.....!!!

वो रात कुछ ऐसी थी...                         
मैं चुपके से जा कर........ 
तुम्हारे सिरहाने बैठी थी...
तुम सो रहे थे...
मैं ढूंढ़ रही थी.....
तुम्हारे चेहरे पर वो सुकून...
जो दुनिया की भीड़ में,
कही खो गया था..
मैं ढूंढ़ रही थी.....
तुम्हारे लबो पर वो मुस्कान.....
जो न जाने कितनी मुश्किलो में,
कही गुम हो गयी थी....
जबरदस्ती बंद करके सोयी.....
तुम्हारी आखों में नींद कही नही थी....
सिर्फ वो थकान थी....
जिसने कुछ सोचते-सोचते...
तुम्हे सुला लिया था...
मैं फिर इक बार...
तुम्हारे सर पर हाथ फेर कर,
सुलाना चाहती थी..
वो सुकून की नींद....
तुम्हारी आँखों को देना चाहती थी..
जिसमे कोई बच्चा सोते-सोते मुस्करा देता है...
पर ये मुमकिन नही था...
मैं पास तो थी.....तुम्हारे पर...
तुम्हे सुकून से सुला नही सकती थी...
बहुत मजबूर थी....
तुम्हारे लबो पर वो मुस्कान...
नही ला सकती थी...
मैं तो सिर्फ इक तुम्हारी परछाई थी...
जो तुम तक जा कर भी..
तुम्हे छू नही सकती थी.........!!!

Tuesday 13 January 2015

बहुत देर तक बैठे रहे.... हम दोंनो...!!!

उस दिन उस घाट पर....                  
बहुत देर तक बैठे रहे.... 
हम दोंनो...
नदी के शांत पानी से शांत.....
बहुत देर तक बैठे रहे.....
हम दोनों.......
बहुत कुछ कहना था....
हम दोनों को..
सवालो-जवाबो की उथल-पुथल .थी..
हमारे अन्दर..
ऊपर से शांत दिख रहे.…
कितने तुफानो को छिपाये सीने में...
बहुत देर तक बैठे रहे हम दोंनो....
जानते थे की अब फिर,
कभी ना मिलेंगे हम...
और यही कहने के लिये आये थे हम..
पर कुछ कह नही पाये..
नजरे चुराये इक दूजे से....
बहुत देर तक बैठे रहे हम दोनों.....
ना कुछ कहा हमने..
ना ही कुछ सुना ही हमने..
पर हमारे मौन को सुनती रही वो नदी...
अपने सब्र को बांधे...
पढ़ती रही हमारी आखों को...
कोई उथल-पुथल नही हुई...
उस दिन उस शांत पानी में..
हम जुदा हो रहे है ये...
हमारे सिवा...उस नदी को भी मालूम था..
हम सब कुछ कह कर...
इक दूजे को वही घाट पर.. 
छोड़ कर चले आये हम.....
कहने को तो.. उस दिन कुछ नही हुआ था...
पर सुना हैं..... 
हमारे चले जाने के बाद...
कोई तूफान आया था उस नदी में....
और उस घाट पर बैठे....... 
हम दोनों बह गये थे..
उस तूफ़ान के साथ.....

Friday 2 January 2015

मैं तो कही थी नही........!!!

मैंने यूँ ही हँसते हुए....                       
इक दिन कह दिया था...
कि मुझमे सिर्फ
तुम ही तुम हो...
मैं तो ही नही......
हाँ सच भी तो यही है........... 
तुम्हारे हर फैसले में तुम ही तुम थे....
मैं तो कही थी नही...
तुम्हारे सपने तुम्हारी चाहते थी...
मैं तो कही थी ही नही...
तुम्हारी मंजिले.....
तुम्हारे रास्ते.....
मैं तो कही थी ही नही....
तुम्हारा प्यार....तुम्हारा इन्तजार....
तुम्हारा घर....तुम्हारा परिवार....
तुम्हारी दुनिया.....
जिसमे मैं तो कही थी नही...
तुम्हारी मुस्कराहटे......
तुम्हारी उदासियाँ......
तुम्हारी खुशिया.....
तुम्हारे गम...
सब तो तुम्हारा था..मेरी जिन्दगी में...
पर तुममे मैं तो कही थी ही नही....
हाँ तब मैं थी..
जब तुम उदास हुए.....तब मुस्कराते हुये मैं थी...
जब तुम कमजोर पड़े...अकेले हुये.....
तब तुम्हारा हाथ थाम कर.....
तुम्हारे साथ थी.........
जब नींद तुम्हारी आखों से कोसो दूर थी....
तब अपनी आखों के सपने लेकर....
तुम्हारे साथ थी......
जब भी टूट कर बिखरने लगे.....
तुम तुम्हे अपने आंचल में....
समटने के लिए....मैं थी...
तुम्हारे लड़खड़ाते कदमो को...
सम्हालने के लिए मैं थी....
मैं बेशक तुम्हारी जिन्दगी में....कही नहीं थी...
पर सच तो ये भी है .......
तुम भी मेरे बैगर कुछ नही थे......!!!

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-13

107-
कभी गुजरी थी जो इक शाम तुम्हारे साथ..
वो शाम तो गुजर गयी....
पर जिन्दगी उस शाम ठहर गयी थी....

108-
नही याद की चाय और कॉफ़ी का स्वाद क्या था...
सिर्फ ये याद रह गया....
कि उस शख्स की आखों में क्या-क्या था......

109-
तुम एहसास हो जिसे शब्दों में बांध कर..
मैं कविता बनाती हूँ...
मुझमे जब तुमको पढ़ते है लोग...
तब मैं कविता बन जाती हूँ.....

110-
खुद को बंद कर आयी हूँ..
किन्ही गुज़रे पलों के दरवाजों में....
खुद को खोने के बाद....
खुद को तलाश कर रही हूँ...
दूसरों के एहसासों में.....

111-
वो तुम्हारे सांसो की गर्म तपिश..
वो तुम्हारे धडकनों की आवाज़..
.वो दूर तक फैली ख़ामोशी...
वो रात का गहराता राज..
ना जाने कब हो गया सवेरा...
कि जैसे मैं देख रही थी कोई ख्वाब......!!!

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-12


   97-
सभी ने बधाईयाँ दे दी मुझे...
आने वाले साल के लिये...
उन्हें कैसे समझाऊं..
ये साल तो बीत जायेगा..
पर इक चेहरा है...
जो मुझसे भुलाया नही जायेगा....

98-
तुम्हारे साथ असमान के तारे गिनना अभी बाकी है...
तुमसे कर लूँ जल्दी-जल्दी बाते सभी..
कि दिसम्बर अभी बाकी...

99-
जब से तुमने मेरा साथ छोड़ा है...
मैं तेज और तेज चलने लगी हूँ...
तारीखों में तो साल आज गुजर रहा है..
मेरी जिन्दगी में हर इक पल में सदिया गुजर गयी है...

100-
फिर तारीखे बदलेंगी..
फिर साल गुज़र जायेगा...
कुछ तुममे सिमटेगा..
कुछ मुझमे छिप जायेगा..
जब तारीख यही आयेगी...
गुजरा हुआ वो पल..
हर वो दिन याद आयेगा...
वादा है खुद से..
फिर इस साल सच कर दिखायंगे...
कुछ टूटे हुए सपने......

102-
जब भी किसी सफ़र पर नींद आयी मुझे..
तुम्हारे कांधे पर सर रख लिया मैंने...
फिर नींद तो नही आयी...
यूँ ही सपनो में...
पूरी जिन्दगी का सफ़र तय कर लिया हमने..

103-
ये कोहरा ये धुंध हमे दुनिया से छिपा लेते है...
जब दिखते नही किसी को रास्ते.....
हम हाथो में हाथो को थाम कर...
चल देते है...रास्ते बना लेते है... 


104-
ठिठुरती ठण्ड...
और चाय की चुस्किया...
कुल्हड़ को थाम कर...
गर्म होती मेरी हथेलियाँ....
फिर लौट आये...
वो हमारी बाते...
वो मस्तियां...और मेरी सहेलियाँ..


105-
तुम्हारी मुस्कराहटे....
मेरी दम तोड़ती जिन्दगी में.....
साँसों का काम करती है...

106-
कभी हाथो में टूटती चूडिया...
कभी आखों का बिखरता काजल...
कभी तेज होती साँसे...
कभी धडकनों की हलचल.....
ये और कुछ नही.....निशानिया है प्यार की....!!!