मैंने यूँ ही हँसते हुए....
इक दिन कह दिया था...
कि मुझमे सिर्फ
तुम ही तुम हो...
मैं तो ही नही......
हाँ सच भी तो यही है...........
तुम्हारे हर फैसले में तुम ही तुम थे....
मैं तो कही थी नही...
तुम्हारे सपने तुम्हारी चाहते थी...
मैं तो कही थी ही नही...
तुम्हारी मंजिले.....
तुम्हारे रास्ते.....
मैं तो कही थी ही नही....
तुम्हारा प्यार....तुम्हारा इन्तजार....
तुम्हारा घर....तुम्हारा परिवार....
तुम्हारी दुनिया.....
जिसमे मैं तो कही थी नही...
तुम्हारी मुस्कराहटे......
तुम्हारी उदासियाँ......
तुम्हारी खुशिया.....
तुम्हारे गम...
सब तो तुम्हारा था..मेरी जिन्दगी में...
पर तुममे मैं तो कही थी ही नही....
हाँ तब मैं थी..
जब तुम उदास हुए.....तब मुस्कराते हुये मैं थी...
जब तुम कमजोर पड़े...अकेले हुये.....
तब तुम्हारा हाथ थाम कर.....
तुम्हारे साथ थी.........
जब नींद तुम्हारी आखों से कोसो दूर थी....
तब अपनी आखों के सपने लेकर....
तुम्हारे साथ थी......
जब भी टूट कर बिखरने लगे.....
तुम तुम्हे अपने आंचल में....
समटने के लिए....मैं थी...
तुम्हारे लड़खड़ाते कदमो को...
सम्हालने के लिए मैं थी....
मैं बेशक तुम्हारी जिन्दगी में....कही नहीं थी...
पर सच तो ये भी है .......
तुम भी मेरे बैगर कुछ नही थे......!!!
इक दिन कह दिया था...
कि मुझमे सिर्फ
तुम ही तुम हो...
मैं तो ही नही......
हाँ सच भी तो यही है...........
तुम्हारे हर फैसले में तुम ही तुम थे....
मैं तो कही थी नही...
तुम्हारे सपने तुम्हारी चाहते थी...
मैं तो कही थी ही नही...
तुम्हारी मंजिले.....
तुम्हारे रास्ते.....
मैं तो कही थी ही नही....
तुम्हारा प्यार....तुम्हारा इन्तजार....
तुम्हारा घर....तुम्हारा परिवार....
तुम्हारी दुनिया.....
जिसमे मैं तो कही थी नही...
तुम्हारी मुस्कराहटे......
तुम्हारी उदासियाँ......
तुम्हारी खुशिया.....
तुम्हारे गम...
सब तो तुम्हारा था..मेरी जिन्दगी में...
पर तुममे मैं तो कही थी ही नही....
हाँ तब मैं थी..
जब तुम उदास हुए.....तब मुस्कराते हुये मैं थी...
जब तुम कमजोर पड़े...अकेले हुये.....
तब तुम्हारा हाथ थाम कर.....
तुम्हारे साथ थी.........
जब नींद तुम्हारी आखों से कोसो दूर थी....
तब अपनी आखों के सपने लेकर....
तुम्हारे साथ थी......
जब भी टूट कर बिखरने लगे.....
तुम तुम्हे अपने आंचल में....
समटने के लिए....मैं थी...
तुम्हारे लड़खड़ाते कदमो को...
सम्हालने के लिए मैं थी....
मैं बेशक तुम्हारी जिन्दगी में....कही नहीं थी...
पर सच तो ये भी है .......
तुम भी मेरे बैगर कुछ नही थे......!!!
आपकी लिखी रचना शनिवार 03 जनवरी 2015 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपको नव वर्ष 2015 सपरिवार शुभ एवं मंगलमय हो।
ReplyDeleteकल 04/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-01-2015) को "एक और वर्ष बीत गया..." (चर्चा-1848) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
नव वर्ष-2015 की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteमें को उनकी हर शै में ढूंढना ... शायद मिल जाए कहीं ...
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो ...
मैं बेशक तुम्हारी जिन्दगी में....कही नहीं थी...
ReplyDeleteपर सच तो ये भी है .......
तुम भी मेरे बैगर कुछ नही थे......!!!
सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति… यही कटु सत्य है!
ReplyDelete