Tuesday 13 January 2015

बहुत देर तक बैठे रहे.... हम दोंनो...!!!

उस दिन उस घाट पर....                  
बहुत देर तक बैठे रहे.... 
हम दोंनो...
नदी के शांत पानी से शांत.....
बहुत देर तक बैठे रहे.....
हम दोनों.......
बहुत कुछ कहना था....
हम दोनों को..
सवालो-जवाबो की उथल-पुथल .थी..
हमारे अन्दर..
ऊपर से शांत दिख रहे.…
कितने तुफानो को छिपाये सीने में...
बहुत देर तक बैठे रहे हम दोंनो....
जानते थे की अब फिर,
कभी ना मिलेंगे हम...
और यही कहने के लिये आये थे हम..
पर कुछ कह नही पाये..
नजरे चुराये इक दूजे से....
बहुत देर तक बैठे रहे हम दोनों.....
ना कुछ कहा हमने..
ना ही कुछ सुना ही हमने..
पर हमारे मौन को सुनती रही वो नदी...
अपने सब्र को बांधे...
पढ़ती रही हमारी आखों को...
कोई उथल-पुथल नही हुई...
उस दिन उस शांत पानी में..
हम जुदा हो रहे है ये...
हमारे सिवा...उस नदी को भी मालूम था..
हम सब कुछ कह कर...
इक दूजे को वही घाट पर.. 
छोड़ कर चले आये हम.....
कहने को तो.. उस दिन कुछ नही हुआ था...
पर सुना हैं..... 
हमारे चले जाने के बाद...
कोई तूफान आया था उस नदी में....
और उस घाट पर बैठे....... 
हम दोनों बह गये थे..
उस तूफ़ान के साथ.....

6 comments:

  1. तूफ़ान के साथ बह जाना ही अच्छा है बशेते वो तूफ़ान प्रेम का हो ...

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  2. लाजवाब रचना...

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. बहुत अच्छी लगी ये रचना...खास तौर पर ये पंक्तियाँ..


    हम दोनों बह गये थे..
    उस तूफ़ान के साथ..

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