वो रात कुछ ऐसी थी...
मैं चुपके से जा कर........
तुम्हारे सिरहाने बैठी थी...
तुम सो रहे थे...
मैं ढूंढ़ रही थी.....
तुम्हारे चेहरे पर वो सुकून...
जो दुनिया की भीड़ में,
कही खो गया था..
मैं ढूंढ़ रही थी.....
तुम्हारे लबो पर वो मुस्कान.....
जो न जाने कितनी मुश्किलो में,
कही गुम हो गयी थी....
जबरदस्ती बंद करके सोयी.....
तुम्हारी आखों में नींद कही नही थी....
सिर्फ वो थकान थी....
जिसने कुछ सोचते-सोचते...
तुम्हे सुला लिया था...
मैं फिर इक बार...
तुम्हारे सर पर हाथ फेर कर,
सुलाना चाहती थी..
वो सुकून की नींद....
तुम्हारी आँखों को देना चाहती थी..
जिसमे कोई बच्चा सोते-सोते मुस्करा देता है...
पर ये मुमकिन नही था...
मैं पास तो थी.....तुम्हारे पर...
तुम्हे सुकून से सुला नही सकती थी...
बहुत मजबूर थी....
तुम्हारे लबो पर वो मुस्कान...
नही ला सकती थी...
मैं तो सिर्फ इक तुम्हारी परछाई थी...
जो तुम तक जा कर भी..
तुम्हे छू नही सकती थी.........!!!
मैं चुपके से जा कर........
तुम्हारे सिरहाने बैठी थी...
तुम सो रहे थे...
मैं ढूंढ़ रही थी.....
तुम्हारे चेहरे पर वो सुकून...
जो दुनिया की भीड़ में,
कही खो गया था..
मैं ढूंढ़ रही थी.....
तुम्हारे लबो पर वो मुस्कान.....
जो न जाने कितनी मुश्किलो में,
कही गुम हो गयी थी....
जबरदस्ती बंद करके सोयी.....
तुम्हारी आखों में नींद कही नही थी....
सिर्फ वो थकान थी....
जिसने कुछ सोचते-सोचते...
तुम्हे सुला लिया था...
मैं फिर इक बार...
तुम्हारे सर पर हाथ फेर कर,
सुलाना चाहती थी..
वो सुकून की नींद....
तुम्हारी आँखों को देना चाहती थी..
जिसमे कोई बच्चा सोते-सोते मुस्करा देता है...
पर ये मुमकिन नही था...
मैं पास तो थी.....तुम्हारे पर...
तुम्हे सुकून से सुला नही सकती थी...
बहुत मजबूर थी....
तुम्हारे लबो पर वो मुस्कान...
नही ला सकती थी...
मैं तो सिर्फ इक तुम्हारी परछाई थी...
जो तुम तक जा कर भी..
तुम्हे छू नही सकती थी.........!!!
और अपनी विवशता पर केवल रो सकती थी..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूब .....पर सच तो ये है ,,,कि तुमसे मेरा वजूद था ,,,,,,मैं तो सिर्फ इक तुम्हारी परछाई थी...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-01-2015) को ""आसमान में यदि घर होता..." (चर्चा - 1863) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तुम्हारे सर पर हाथ फेर कर,
ReplyDeleteसुलाना चाहती थी..
वो सुकून की नींद....
तुम्हारी आँखों को देना चाहती थी..
बहुत प्यारे रिश्ते के लिए उतने ही प्यारे भाव.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteतमन्ना इंसान की ......
दिल के एहसास शब्दों में पिरो दिए ... भावपूर्ण ...
ReplyDeleteBahut khoob Sushma!! Last four lines sum it up all!!
ReplyDeleteदर्द की इन्तेहाँ !!!!! मगर ,
ReplyDeleteजिसका दर्द उसका उसका दर्द
बाक़ी सब तमाशाई ……
अति सुंदर भावपूर्ण..
ReplyDeleteउम्दा....बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
बहुत खूब
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