मैं तुम्हारे साथ तो रही...
तुम्हे पसंद भी करती थी....
पर ये नही जानती थी......
कि तुम्हे प्यार करती हूँ या नही
तुमसे बाते करना.....
तुम्हारे साथ वक़्त बिताना.....
सभी अच्छा लगता था......
पर तुम मेरी जरुरत हो...
ये नही जानती थी....
मैं क्यों तुम्हारे साथ हूँ....
ये भी नही जानती थी....
ऐसी कौन सी चीज है....
जो मैं तुम्हारे साथ हूँ......
इसी सवाल के जवाब की...
तलाश में मैं थी.....कि
इक दिन जब मैं तुम्हारे साथ थी....
कि अचनाक बादलो के...
गरजने के साथ-साथ...
बिजली का कड़कना कि.....अचनाक
मैंने तुम्हारे हाथों को....
कस के पकड़ लिया था....और
तुम्हारा ये कहना....मुझे सम्हालते हुए ....
कि कुछ नही हुआ.....
उस पल मुझे एहसास हुआ.....
कि तुम क्या हो मेरे लिये,
और मैं सिर्फ इतना कह पायी थी....कि
जब कभी जो कही मैं डर जाऊं...
या हार के टूटने लगूं..
तुम मेरा हाथ अपने हाथो में,
मजबूती से पकड़ कर रखना...
यक़ीनन मैं टूट भी गयी तो..
कभी बिखारुंगी नही......!!!
तुम्हे पसंद भी करती थी....
पर ये नही जानती थी......
कि तुम्हे प्यार करती हूँ या नही
तुमसे बाते करना.....
तुम्हारे साथ वक़्त बिताना.....
सभी अच्छा लगता था......
पर तुम मेरी जरुरत हो...
ये नही जानती थी....
मैं क्यों तुम्हारे साथ हूँ....
ये भी नही जानती थी....
ऐसी कौन सी चीज है....
जो मैं तुम्हारे साथ हूँ......
इसी सवाल के जवाब की...
तलाश में मैं थी.....कि
इक दिन जब मैं तुम्हारे साथ थी....
कि अचनाक बादलो के...
गरजने के साथ-साथ...
बिजली का कड़कना कि.....अचनाक
मैंने तुम्हारे हाथों को....
कस के पकड़ लिया था....और
तुम्हारा ये कहना....मुझे सम्हालते हुए ....
कि कुछ नही हुआ.....
उस पल मुझे एहसास हुआ.....
कि तुम क्या हो मेरे लिये,
और मैं सिर्फ इतना कह पायी थी....कि
जब कभी जो कही मैं डर जाऊं...
या हार के टूटने लगूं..
तुम मेरा हाथ अपने हाथो में,
मजबूती से पकड़ कर रखना...
यक़ीनन मैं टूट भी गयी तो..
कभी बिखारुंगी नही......!!!
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