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तुमने पूछा मुझसे..
कि क्या चहिये...?
मैंने कहा....
कि जो तुम्हारी मर्जी हो,
वो दे दो...
तुम नही माने कहाँ...
जो तुम मांगोगी...
वो तुम्हे दूंगा...
मैंने हँस पड़ी ...
कहाँ रहने दो..
तुम नही दे पाओंगे..
मैंने पुछा......
तुम बताओ तुम्हे क्या चहिये...?
तुम बोले....कि
"वैलेंटाइन डे"का पूरा दिन,हर लम्हा...
तुम्हारे साथ...जीना चाहता हूँ....
मैंने हँस कर कहा.…
बस इतना ही.... ?
तुम बोले कि क्यों?
तुम क्या चाहती हो...?
मैंने कहाँ......
मैं इक पूरी जिन्दगी.....
तुम्हारे साथ,
"वैलेंटाइन डे"की तरह,
जीना चाहती हूँ.... दे पाओगे..?
और तुम कुछ नही बोले...
हमेसा की तरह खामोश हो गये....
और मैं हँसती रही..
क्यों की मेरा रोना..
तुम्हे पसंद नही था...........!!!
वाह, बहुत सुंदर कविता। पूरी जिंदगी का साथ मांगते ही, ऐसा ही कुछ मांगते ही ,ज़बान को लकवा क्यों मार जाता है।
ReplyDeleteााा
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteगहरे एहसास जगाती हुयी रचना ...
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ReplyDeletetҺanks admin
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दिल को छू लेने वाली पंक्तिया ..............साभार
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